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निर्मला जी, आपका यह कैसा राजनीतिक चरित्र....?-दिनेश निगम ‘त्यागी’ ( वरिष्ठ पत्रकार )


राज-काज
* दिनेश निगम ‘त्यागी’ ( वरिष्ठ पत्रकार ) 
0 निर्मला जी, आपका यह कैसा राजनीतिक चरित्र....?
- राजनीति में नैतिकता और चरित्रिक गिरावट के उदाहरणों की श्रंखला में बीना विधायक निर्मला सप्रे का नाम भी जुड़ गया है। उन्होंने ऐसे राजनीतिक चरित्र का परिचय दिया कि पहले लोकसभा चुनाव के दौरान वे कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुईं। ऐसा दलबदल कई नेता करते हैं, इसलिए इसे सामान्य घटना के तौर पर लिया गया, हालांकि पहली बार जीते विधायक से इतना स्वार्थी होने की उम्मीद नहीं की जाती। खबर थी कि उन्होंने बीना को जिला बनाने की शर्त पर भाजपा ज्वाइन की है। कई बार टलने के बाद मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव का बीना दौरा हुआ लेकिन बीना को जिला बनाने की घोषणा नहीं हुई। इस बीच नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार के नोटिस पर विधानसभा सचिवालय निर्मला को पत्र लिखकर लगातार जवाब मांग रहा था कि आप किस दल में हैं, भाजपा या कांग्रेस में, स्पष्ट करें? पहले तो निर्मला जवाब टालती रहीं और बाद में कह दिया कि उन्होंने दल बदला ही नहीं। यह जवाब राजनीतिक चरित्र में गिरावट की पराकाष्ठा है क्योंकि निर्मला को बाकायदा मंच में गमछा डालकर मुख्यमंत्री डॉ यादव ने भाजपा की सदस्यता दिलाई थी। लोकसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा का प्रचार किया था और मुख्यमंत्री के बीना दौरे के दौरान वे भाजपा के रंग में रंगी थीं। निर्मला ऐसा रंग बदलेंगी, किसी को उम्मीद नहीं थी। कांग्रेस अब उनकी सदस्यता समाप्त करने कोर्ट जाने की तैयारी में है।
0 गोपाल के तर्क से मेल नहीं खाते राजनीतिक हालात....
- गोपाल भार्गव भाजपा के वरिष्ठतम विधायक हैं। वे कह रहे हैं कि प्रदेश के दोनों उप मुख्यमंत्रियों, कुछ मंत्रियों के साथ उनकी मुलाकात को अन्य किसी संदर्भ में नहीं लिया जाना चाहिए। उनका कहना है कि वे लगभग एक माह बाद भोपाल आए और क्षेत्र के कामों को लेकर उन्हें इनसे मिलना था। सभी से मेरे 25 से लेकर 40 साल तक पुराने संबंध हैं, इसलिए ये खुद मुझसे मिलने आ गए। भार्गव जो कह रहे हैं, वह सच हो सकता है लेकिन राजनीतिक हालात उनके तर्क से मेल नहीं खाते। पहला, भार्गव एक माह बाद उसी समय भोपाल आए जब सरकार और अफसरों के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले विधायकों को भोपाल तलब किया गया। इधर नेतृत्व ने विधायकों की क्लास ली और उधर भार्गव से दोनों उप मुख्यमंत्रियों ने मुलाकात की। इसे मान मनौव्वल से जोड़ना स्वाभाविक है। दूसरा, मासूमों के साथ रेप की घटनाओं को लेकर भार्गव का ट्वीट चर्चा में था। उन्होंने लिखा था कि एक तरफ कन्या पूजन हो रहे हैं और दूसरी तरफ मासूमों के साथ दुष्क्रत्य। वह भी जब आरोपियों के लिए कड़ी सजा का प्रावधान किया गया है। इस ट्वीट को उनकी नाराजगी से जोड़ कर देखा गया था। उन्होंने देवरी क्षेत्र के विधायक बृज विहारी पटैरिया के समर्थन में भी एक ट्वीट किया था। इसलिए भार्गव भले कहें की मीडिया गलत अर्थ निकाल रहा है लेकिन राजनीतिक हालात अलग ही संकेत दे रहे थे।
0 शिवराज के बेटे की राह में आ गए दिग्विजय....! 
- प्रदेश सरकार के मंत्री नागर सिंह चौहान की पत्नी अनीता सिंह को अपवाद के तौर पर छोड़ दें तो नरेंद्र मोदी- अमित शाह के नेतृत्व वाली भाजपा आमतौर पर एक परिवार के दो सदस्यों को चुनाव नहीं लड़ाती। इसके कारण ही कैलाश विजयवर्गीय के बेटे आकाश और प्रहलाद पटेल के भाई जालम सिंह का पत्ता कट गया। नरेंद्र सिंह ताेमर अपने बेटे को टिकट नहीं दिला पाए। ऐसे में शिवराज सिंह बेटे कार्तिकेय को बुदनी विधानसभा सीट से भाजपा का टिकट दिला पाएंगे, इसकी संभावना पहले ही कम थी। फिर भी दावेदारों में सबसे ऊपर कार्तिकेय का ही नाम चल रहा था। हाल में सपरिवार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनकी मुलाकात को इसी से जोड़कर देखा जा रहा था। हालांकि शिवराज कह चुके थे कि वे बेटे की शादी का निमंत्रण देने गए थे। फिर भी दिग्विजय सिंह राह में आ गए। उन्होंने सवाल किया कि ‘क्या संयोग है कि आज ही बुधनी उपचुनाव के लिए भाजपा का उम्मीदवार तय होना है और आज ही पूरे परिवार के साथ शिवराज सिंह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिले हैं।’ उन्होंने सवाल किया कि ‘क्या मोदी ने कार्तिकेय को आर्शीवाद दे दिया है? क्या हम कार्तिकेय को बधाई दे दें?’ दिग्विजय ने लिखा है कि ‘परिवारवाद के खिलाफ भाजपा नेताओं के बयान रद्दी की टोकरी में जाएं।’ कार्तिकेय को टिकट मिलने की संभावना पहले ही नहीं थी, बची कसर दिग्विजय के ट्वीट ने पूरी कर दी। अंतत: पूर्व सांसद रमाकांत भार्गव बाजी मार ले गए।
0 शिक्षकों के लिए फिर सड़कों पर उतरेंगे सिंधिया....!
- सच जो भी हो लेकिन चर्चा यही है कि केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ के एक वाक्य से आहत होकर समर्थक विधायकों के साथ कांग्रेस छोड़ दी थी। अपनी मांगों को लेकर मिलने गए अतिथि शिक्षकों से सिंधिया ने कह दिया था कि आपकी मांगें पूरी न हुईं तो मैं भी आपके साथ सड़क पर उतर जाऊंगा। कमलनाथ से इस पर प्रतिक्रिया चाही गई तो उनका जवाब था कि ‘तो उतर जाएं सड़क पर, कौन रोकता है?’ इससे नाराज होकर सिंधिया ने कांग्रेस की सरकार गिरा दी थी। अतिथि शिक्षक फिर सड़कों पर हैं। सरकार उनकी मांगें पूरी करने तैयार नहीं है। उन्होंने जेल भरो आंदोलन का एलान कर दिया है। अतिथि शिक्षक सिंधिया को भी अपनी फरियाद सुना चुके हैं।  कांग्रेस की तरह इस विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा ने भी अतिथि शिक्षकों की मांगें पूरी करने की घोषणा की थी। सवाल है कि क्या अब भी सिंधिया सड़क पर उतर कर शिक्षकों की मांगों का समर्थन करेंगे? अब भी वे जिस दल में हैं, राज्य में उसी दल भाजपा की सरकार है लेकिन सिंधिया मौन हैं। इसलिए कहा जा रहा है कि कमलनाथ का बयान महज बहाना था, सिंधिया ने तय कर रखा था कि उन्हें कांग्रेस छोड़नी है क्योंकि वे मुख्यमंत्री नहीं बन सके थे। दूसरी वजह शिवपुरी लोकसभा सीट के चुनाव में उनकी पराजय थी। दिग्विजय खुलासा कर चुके हैं कि सिंधिया ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने का प्रस्ताव ठुकरा दिया था।
0 विश्नोई के आरोप ने उड़ाई भाजपा नेतृत्व की नींद....
- वरिष्ठ विधायक अजय विश्नोई द्वारा भाजपा के सदस्यता अभियान को लेकर आइना दिखाने से पार्टी नेतृत्व की नींद उड़ गई है। कांग्रेस ने भी विश्नोई के आराेप के आधार पर भाजपा के सदस्यता अभियान को फर्जी ठहरा दिया। भाजपा ने पहले विश्नोई के आरोप को नकारा। इसके बाद हड़बड़ाहट में दो शहरों में एफआईआर दर्ज करा दी। दरअसल, मिस्ड कॉल के जरिए भाजपा के सदस्यता अभियान पर प्रारंभ से सवाल उठते रहे हैं, क्योंकि इसके जरिए कई अपराधियों, विरोधी दलों के नेताओं, अफसरों तक के भाजपा सदस्य बन जाने की खबरें लगातार आ रही हैं। भाजपा नेतृत्व ने एलान किया था कि जो ज्यादा सदस्य बनाएगा, उसे सरकार-संगठन की नियुक्तियों में महत्व मिलेगा। इधर, विश्नोई के पास एक फोन आया, जिसमें ठेके पर उनके अकाउंट से सदस्य बनाने का ऑफर दिया गया। विश्नोई ने एक्स पर लिखा कि ‘भाजपा के सदस्य बनवाने हैं तो पैसे खर्च करिए। जिस तरह मेरे पास फोन आया, इसी तरह की और भी एजेंसी होंगी, जिनकी मदद से गणेश परिक्रमा करने वाले आधारहीन नेता सदस्य बनाकर बड़े बन रहे हाेंगे। यह नया ट्रेंड है। पहले विज्ञापन छपवा कर, नेताओं के सम्मान, स्वागत और घर के भीतर सेवाएं देकर नेता बनते थे। अब अकाउंट से ज्यादा सदस्य बना कर बड़े नेता बन रहे हैं। हम जैसे पुराने कार्यकर्ता इस गिरावट पर अफसोस के अलावा क्या कर सकते हैं?’ अब तो फोन करने वाले ने भी सदस्य बनाने की बात स्वीकार कर ली है।
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