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कर्णभारम् एवं मालविकाग्निमित्रम् की मनमोहक प्रस्तुति हुई


उज्जैन- कालिदास संस्कृत अकादमी, उज्जैन द्वारा बालनाट्य महोत्सव (संस्कृत
नाटकों पर एकाग्र) का आयोजन प्रारम्भ हुआ। प्रथम दिवस कला चैपाल संस्था, उज्जैन द्वारा श्री

विशालसिंह कुशवाह के निर्देशन में महाकवि भास विरचित कर्णभारम्, एवं सिन्धु प्रवाह एकेडमी, उज्जैन
द्वारा महाकवि कालिदास विरचित मालविकाग्निमित्रम् की प्रस्तुति श्री कुमार किशन के निर्देशन में की गई।
दोनों ही प्रस्तुतियों ने दर्शकों को बहुत प्रभावित किया। विशेषकर यह बात निर्मूल सिद्ध हुई कि
संस्कृत के नाटका दर्शकों की समझ से परे हैं। प्रथम प्रस्तुति में इन्द्र] कर्ण के संवाद प्रभावी रहे तो वही
दूसरी प्रस्तुति में मालविकाग्निमित्रम् में विदूषक ने दर्शकों को अपने अभिनय से बहुत गुदगुदाया। निर्देशकों
का निर्देशन अत्यन्त प्रभावी रहा। मंच सज्जा, संगीत तथा भरतमुनि की नाट्यशास्त्रीय परम्परा का निर्वहन
अत्यन्त दक्षता से किया गया।
अकादमी के निदेशक डॉ गोविन्द गन्धे ने यह जानकारी देते हुए बताया कि कार्यक्रम का शुभारम्भ
दिनांक 13 सितम्बर, 2024 को सायं 06ः00 बजे कालिदास संस्कृत अकादमी, उज्जैन के अभिरंग नाट्यगृह
में माननीय प्रो. विरूपाक्ष जड्डीपाल, सचिव, महर्षि सांदीपनि राष्ट्रीय वेदविद्या प्रतिष्ठान, उज्जैन के मुख्य
आतिथ्य, माननीय श्री सतीश दवे, वरिष्ठ रंगकर्मी, उज्जैन की अध्यक्षता एवं माननीय श्री संजय नाहर, पूर्व
सदस्य कार्यपरिषद् विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के विशिष्ट आतिथ्य में सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम के
विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित श्री संजय नाहर ने अपने उद्बोधन में कहा कि जीवन में नाटक की
अच्छी बातों को ग्रहण करना चाहिए तथा बुराई को त्यागने का प्रयास करना चाहिए। रंगमंच से जुड़कर
भविष्य में देश और प्रदेश का नाम गौरवान्वित हो ऐसा प्रयास करना चाहिए। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो.
विरूपाक्ष जड्डीपाल ने कहा कि हमारे पूर्वजों ने हमें सब कुछ दिया है। हमें केवल सिद्धी का मार्ग अपनाना
है। रंगमंच भी एक वेद है, इसमें सम्पूर्ण वेद का सार है। अपनी कला चेतना को जागृत रखें। अध्यक्षीय
उद्बोधन देते हुए श्री सतीश दवे ने कहा कि संस्कृत नाट्य परम्परा आज भी कायम है। वर्तमान युवा पीढ़ी
को इसे निरन्तर आगे बढ़ाते रहना है।
कार्यक्रम का संचालन डॉ महेन्द्र पण्ड्या ने किया एवं आभार कार्यक्रम प्रभारी श्री अनिल बारोड़ ने
व्यक्त किया।

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