शिप्रा के घाटों पर काई से तीर्थयात्री फिसलकर गिरे तो स्थानीय युवाओं ने शुरू कर दी सफाई
शिप्रा नदी को लेकर जिम्मेदार इतने बेशर्म हैं कि सुरक्षा व सुविधा तो छोड़िए उनसे घाटों पर काई तक साफ नहीं हो रही है। गुरुवार सुबह कई तीर्थयात्री घाट की सीढ़ियों पर पैर रखते ही फिसलकर गिर पड़े। ये देख स्थानीय तैराक व लोगों ने हाथ में ब्रश, झाड़ू, जुगाड़ की ईंट उठाई और खुद ही काई साफ करने में जुट गए। चंद घंटों में लोगों ने एक घाट का प्लेटफार्म चकाचक कर दिया।
शिप्रा नदी का जलस्तर बढ़ा होने से वहां सीढ़ी और प्लेटफार्म पर जमी काई की मोटी परत दिखाई नहीं देती थी लेकिन जैसे ही जलस्तर तीन फीट कम किया तो शिप्रा नदी के हर घाट पर काई की लंबी मोटी परत दिखने लगी व उस पर पैर रखते ही तीर्थयात्री फिसलकर घायल हो रहे हैं। नगर निगम हर माह शिप्रा के घाटों की सफाई पर लाखों रुपए खर्च कर रहा है लेकिन काई उससे साफ नहीं हो पा रही है। यहां घाटों पर स्नान को आने वाले बाहर के यात्रियों को गिरता देख गुरुवार को तैराक विनोद चौऋिषया, संतोष सोलंकी के साथ कई लोग काई की सफाई में जुटे।
बच्चों तक ने घाट पर काई साफ करने में श्रमदान किया। नदी की सफाई, देखरेख के लिए निगम के पास लाखों का बजट है लेकिन सिर्फ रस्म अदायगी अर्थात औपचा किता की जा रही है। घाट पर काफी समय से अनाउं समेंट सिस्टम बंद है। सिर्फ एक-दो चीलम ही काम कर रही है। पानी कहां गहरा है व कहां स्नान करें, कोई सूचना बोर्ड नहीं है।
चेंजिंग रूम को लेकर ध्यान नहीं दिया जा रहा। 13.30 करोड़ की योजना भी स्मार्ट सिटी व नगर निगम वाले क्रिय न्वित नहीं कर पाए। लाइफ गार्ड चौऋषिया ने बताया कि शिप्रा नदी के घाट पर प्रतिदिन ही तीन से चार लोग ऐसे होते हैं, जिन्हें घायल होने पर प्राथमिक उपचार की जरूरत होती है। यहां घाट के आसपास पॉली क्लीनिक खुले। पहले क्लीनिक घाट से कुछ दूर था, जिसे काफी साल से बंद कर दिया। वहीं एक एम्बुलेंस घाट पर स्थायी रूप से खड़ी रहना चाहिए, ताकि कोई इमरजेंसी हो तो तत्काल उपचार सुविधा मिल सके।
नदी में केमिकल उपयोग नहीं किया जा सकता था, क्योंकि मछलियां मरती है। समय-समय पर सफाई करवा रहे हैं। जलस्तर बढ़ने से काई हो जाती है। अब प्रयास करेंगे कि ज्यादा से ज्यादा सफाई हो सके। -आशीष पाठक, आयुक्त नगर निगम