लोकमान्य तिलक ने कहा था शिक्षा राष्ट्रीय आदर्शों पर आधारित नहीं तो वह एक धोखाधड़ी है- दिवेकर
लोकमान्य तिलक शिक्षण समिति द्वारा आयोजित शिक्षक अभ्यास वर्ग का शुभारंभ शुक्रवार को हुआ। इसके अंतिम सत्र में शिक्षकों को अलग-अलग समूहों में प्रायोगिक गतिविधियों के माध्यम से नई शिक्षा पद्धति से अवगत कराया। साथ ही शिक्षकों के लिए बौद्धिक स्पर्धा का भी आयोजन किया गया।
अभ्यास वर्ग का शुभारंभ लोकमान्य तिलक शिक्षण समिति के न्यासी एवं नाक-कान-गला विशेषज्ञ डॉ. एसके जेथलिया की अध्यक्षता में हुआ। उद्घाटन सत्र में अतिथि के रूप में ज्ञान प्रबोधिनी संस्थान पुणे से आए डॉ. प्रशांत दिवेकर, डॉ. सुरेंद्र ढाकुर देसाई, डॉ. मिलिंद नाइक, डॉ. आदित्य शिंदे और अभ्यास वर्ग की संयोजिका वसुधा केसकर, प्राचार्य लोति हासे विद्यालय पानदरीबा उपस्थित थे।
इस अवसर पर लोकमान्य तिलक शिक्षण समिति के अध्यक्ष किशोरी खंडेलवाल, सचिव विश्वनाथ सोमण, कार्यपालन अधिकारी गिरीश भालेराव एवं इकाइयों के संस्था प्रमुख भी उपस्थित थे। डॉ. जेथलिया ने आयोजनों के महत्व को रेखांकित करते हुए शिक्षकों का सहभागिता हेतु उत्साहवर्धन किया। डॉ. दिवेकर ने ज्ञान प्रबोधिनी संस्थान पुणे के कार्यक्षेत्र से सभी को परिचित कराया। अभ्यास वर्ग की संयोजिका केसकर ने बताया कि द्वितीय सत्र का विषय राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 था।
वक्ता डॉ. दिवेकर ने वक्तव्य की शुरुआत लोकमान्य तिलक के विचारों से की। लोकमान्य तिलक जी ने कहा था कि यदि शिक्षा राष्ट्रीय आदर्शों पर आधारित नहीं है तो वह एक दिखावा और धोखाधड़ी है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 इसी विचारधारा पर आधारित है। भारत अगले 10 वर्षों में विश्व का नेतृत्व करने वाला है। इसके लिए हमारी शिक्षा नीति राष्ट्रीय हित पर आधारित होना अत्यावश्यक है।
शिक्षा के उद्देश्य पर चर्चा तृतीय सत्र का विषय एनईपी संबद्ध शब्दावली था। वक्ता डॉ. देसाई ने अपने वक्तव्य में शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यचर्या संबंधी उद्देश्य एवं दक्षताओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता के पहले, पश्चात एवं वर्तमान समय की आवश्यकताएं भिन्न-भिन्न है। इसके अनुसार शिक्षा नीति के उद्देश्य पुनः परिभाषित किए जाने चाहिए।