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सनातन धर्म के मंदिरों में तो हजारों वर्ष से है सामाजिक समरसता की पुजारी परंपरा


उज्जैन। देश के मंदिरों में हजारों वर्ष से सनातन धर्म, संस्कृति और सभ्यता के साथ सामाजिक समरसता की भावना रही हैं। हमारे ऋषि-मुनियों ने भी सामाजिक समरसता का पालन किया है जहां आज भी ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य के साथ ओबीसी, एससी, एसटी और दलित समुदाय के लोग पुजारी है। 

अखिल भारतीय मठ-मंदिर सनातन धर्म रक्षा मोर्चा के अध्यक्ष किशोर कुशवाह ने इस विषय पर कहा कि हाल ही में ज्ञात हुआ कि मंदिरों में एससी, एसटी वर्ग को पुजारी बनाने की बात कही जा रही है। जिसका विश्लेषण करने पर पता चलता है कि सनातन धर्म के मंदिरों में तो पहले से ही हजारों वर्ष से सामाजिक समरसता रही हैं। उज्जैन नगर के कई ऐसे मंदिर है जैसे भूखीमाता, चौबीस खंबा, गड़कालिका, हरसिद्धि, हामुखेड़ी बिजासन माता, राम मंदिर सहित देश और प्रदेश के हजारों मंदिरों में एससी, एसटी, ओबीसी, आदिवासी और दलितवर्ग के पुजारी है जो अपनी वंश परंपरा के अनुसार पूरी निष्ठा से पूजन करते हैं। जिनका सम्मान समाज का सभी वर्ग भी करता हैं। अर्थात जो वर्ग जहां पुजारी है वहां उन्हें पूरा सम्मान मिलता हैं। साथ ही समाज के सामने यह प्रश्न भी है कि यदि सामान्य वर्ग के पुजारी के स्थान पर एससी एसटी के पुजारी बनाएंगे तो क्या एससी, एसटी वर्ग के पुजारी के स्थान पर सामान्य वर्ग के पुजारी को नियुक्त करेंगे? यदि ऐसा होता हैं तो इसका स्वागत हैं। सरकार को भी सनातन धर्म के मंदिरों में लगभग 5 हजार साल से चली आ रही व्यवस्था के विषय में कुछ करने से पहले सभी विषयों को ध्यान में रखकर योजना बनाई जाना चाहिए।

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