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परिवार से संबंध रखने वाले लोगों को महामंडलेश्वर नहीं बनाएं - सनातन धर्म की शुद्ध स्थापना के लिए अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष से पुजारी महासंघ की मांग


उज्जैन- सनातन धर्म के पालन में चार प्रमुख नियम बताए गए है जिसमें ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास शामिल है जिससे मनुष्य सनातन धर्म के अनुसार जीवन यापन करता है। लेकिन देखने में आ रहा है कि सनातन धर्म में लगातार विकृति आ रही हैं क्योंकि लोग धनबल के जरिए धर्म के नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं। उदाहरण के लिए हाल ही में पैसे लेकर महामंडलेश्वर, आचार्य, श्री महंत आदि बनाने की घटना प्रमुख रूप से सामने आई है।  
शास्त्रों में महामंडलेश्वर, महंत, श्री महंत आदि बनाने का कहीं भी उल्लेख नहीं है। हमें ऐसा भी प्रतीत होता है कि यह परंपरा अखाड़े में एक दूसरे को मान, सम्मान, प्रतिष्ठा दिलाने के लिए आरंभ की गई होगी। क्योंकि आदि शंकराचार्य से पूर्व भारत में ऋषि मुनि परंपरा थी जो जंगलों में निवास करते थे और पूर्ण रूप से ब्रह्मचर्य का पालन करते थे। सतयुग, द्वापर, त्रेता और कलयुग में भी हमारे धर्म शास्त्रों, पुराणों और धर्म ग्रंथों में महामंडलेश्वर की परंपरा का उल्लेख नहीं है तो फिर किस शास्त्र और कानून में अखाड़ों के द्वारा साधु और गृहस्थों को महामंडलेश्वर बनाने का क्रम प्रारंभ हुआ। यह जानकारी अखिल भारतीय पुजारी महासंघ के राष्ट्रीय सचिव रूपेश मेहता ने पत्र के माध्यम से अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रविंद्र पुरी महाराज से जानना चाही है। पत्र में सनातन धर्म के चार स्तंभों को लेकर बात कही गई हैं जिसमें ब्रह्मचर्य 25 वर्ष तक, गृहस्थ 25 से 50 वर्ष तक, वानप्रस्थ 50 से 75 वर्ष तक और संन्यास 75 वर्ष से है जो हमारे धर्म शास्त्रों लिखित में मिलता है जो व्यक्ति या गृहस्थ, वानप्रस्थ आश्रम में जाते हैं उन्हें अपने बच्चे, पत्नी, नाती,पोते, पोती सभी से संबंधों को त्याग कर जंगल में जाना होता है। रविंद्र पुरी जी से यह निवेदन किया गया है कि आप अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष हैं आपका कर्तव्य और धर्म है कि आप पहले साधुओं को वानप्रस्थ और संन्यास आश्रम के बारे में बताए। क्योंकि यह देखने में आ रहा हैं कि अखाड़ों द्वारा जिन साधुओं और गृहस्थों को महामंडलेश्वर बनाया जा रहा है और जिन्हें बनाने वाले हैं वह लोग अपने पत्नी, बच्चों के साथ परिवार में रह रहे हैं। यह धर्म में विकृति लाने का कार्य हैं और सनातन संस्कृति के विपरीत और अनुचित हैं। पहले इन्हें इनके परिवार का त्याग करवाना चाहिए और जो महामंडलेश्वर यह नहीं कर सकते उन्हें अखाड़े से निकाल देना चाहिए और गृहस्थों को महामंडलेश्वर नहीं बनाना चाहिए। देश, समाज और धर्म के लिए कार्य करना ही अखाड़ों की स्थापना का मूल उद्देश्य हैं। इसलिए हम आपसे मांग करते हैं कि पहले धर्म के आधार पर जीवन यापन करावे फिर योग्यता हो तभी इन्हें पदवी दी जाए तभी सनातन धर्म की शुद्ध स्थापना हो पाएगी।

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