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ऐ भाई, जरा देखकर चलो...!


निरुक्त भार्गव,वरिष्ठ पत्रकार

खेती-किसानी, पढ़ने-पढ़ाने और त्योहारी एवं कारोबारी व्यस्तताओं के बीच कब विधान सभा चुनावों का प्रचार अभियान परवान चढ़ा और कितनी जल्दी मतदान की तिथि यानी नवम्बर 17, 2023 आ गई—पता ही नहीं चला! इस दौरान विभिन्न राजनीतिक दलों सहित स्वतंत्र  प्रत्याशियों ने आम मतदाता को लुभाने, रिझाने, बहकाने, भड़काने, फुसलाने और भ्रमित करने के हर संभव नुस्खे और हथकंडे अपनाए! मतदाता कितने प्रभावित हुए, इसका आंकलन कोई भी नहीं कर सकता! हां, ये बात निर्विवादित है कि अबका मतदाता 21वीं सदी का मतदाता है और उसकी मंशाओं का प्रकटीकरण शुक्रवार को ईवीएम में कैद हो जाएगा!

  इस बार के चुनाव कई मायनों में पिछले अवसरों से अलहदा और दिलचस्प बन गए. जिस मध्य प्रदेश भाजपा का संगठन पूरे देश में सर्वश्रेष्ठ माना जाता था, वो शुरू से हाशिये पर धकेल दिया गया! सारी कमान मोटा भाई-छोटा भाई ने अपने हाथों समेट ली और चुनाव मैनेजमेंट के लिए उनके दो विश्वस्त, किन्तु तेजतर्रार, कैबिनेट मंत्रियों को तैनात कर दिया, राजधानी भोपाल में! किसको कहां से टिकट दें या किस-किस का टिकट ड्राप करें, इसको लेकर सरकार और शीर्ष नेतृत्व उधेड़बुन में दिखाई दिया!  और, अंततः जब बाजी हाथ से फिसलती लगी, तो आरएसएस के कन्धों पर बंदूक रख दी गई?

 उधर, कमलनाथ और दिग्विजय सिंह सरीखे बुर्जुआ नेताओं की बैसाखियों के जरिये कांग्रेस के नेतृत्व ने क्या-क्या किया और क्या-क्या नहीं, इस पर पृथक से चर्चा करनी होगी! इन्होंने ब्लॉक, मंडलम और बूथ स्तर तक पार्टी संगठन को मजबूत करने के क्या-क्या स्वांग रचे, उनकी पार्टी के ही अंदरखाने खूब बखिया उधेड़ी जा रही हैं! जनता के सरोकारों से जुड़े तमाम गर्मागर्म मुद्दे हाथ में होने और भाजपा की राज्य और केंद्र सरकार के खिलाफ भारी मात्रा में असला और बारूद होने की बाद-भी कोई सशक्त आन्दोलन खड़ा नहीं किया जा सका! नाथ-दिग्विजय के लिए मैदान साफ था, पर वो स्वार्थों की लड़ाई में एक्स्पोस हो गए!

 दिवाली थी, तो स्टार प्रचारकों के ज़ेहन में रामायण और महाभारत काल के प्रसंगों को दोहने के उपाय मंडरा रहे थे! हवाई मार्गों से ताबड़तोड़ चुनावी सभाएं और रोड-शो करते प्रमुख नेतागण हवाई किले बनाने में व्यस्त दिखे! प्रतीत हुआ कि समूची नेता नगरी भगवान् श्री राम के आदर्शों पर चल पड़ी है! बीच-बीच में महादेव महेश यानी शिवजी/ महाकाल जी और महर्षि नारद जैसे ईश्वरीय पात्रों के भी बखूबी दर्शन करवाए गए! जिनकी नहीं चल रही थी, उन्होंने जातीय जनगणना के अस्त्र-शस्त्र चलाने की भरसक कोशिश की! हमास युद्ध को भी लपेट लिया गया! पूरा मंज़र सत्ता पाने के निकृष्टतम पैमाने पर पहुंचा दिया गया!

 जिन प्रचार माध्यमों पर एक प्रभावी और हितकारक विमर्श खड़ा करने की जिम्मेदारी होती है और जिसके बलबूते प्रकारांतर में सत्ताएं जनता के प्रति जवाबदेह हुआ करती थीं, उनका रोल बहुत निराशाजनक रहा! मालिकों के वेस्टेड इंटरेस्ट के चलते स्वतंत्र पत्रकारिता का लोप हो गया! टीवी शो के माध्यम से तमाशाइयों ने जनभावनाओं का मज़ाक बनाकर असल मुद्दों से भटकाने के काम को फिर से अंजाम दिया! प्रिंट मीडिया के झंडाबरदार भी पैकेज की आंधियों में बह गए! इन परंपरागत माध्यमों में तेजी से आई रुकावटों और गिरावटों के इतर डिजिटल मीडिया प्लेटफार्म सीना तान कर सामने आ गए और मैदानी हालात बयां किए!

  लगे हाथ, चुनाव आयोग और उसके मातहत अमले की भी चर्चा कर ली जाए. लोग बार-बार पूछ रहे हैं कि अगर राजस्थान जैसे कमोबेश छोटे राज्य में वोटिंग दिनांक घोषित करने के अधिकृत कार्यक्रम में वो संशोधन कर सकता था, तो उसने मध्य प्रदेश में ऐसा क्यों नहीं किया? क्या दिवाली का पांच दिनी त्योहार और फिर छट पूजन सिर्फ राजस्थान में ही होता है? कांग्रेसी एजेंट चिल्ला-चिल्लाकर कह रहे हैं कि आदर्श आचरण संहिता के उल्लंघन के मामले में समूचा तंत्र खामोश हो गया है! खबरनवीस भी जिम्मेदार प्लेटफार्म पर प्रति दिन की सही जानकारी पाने से वंचित कर दिए जाने की शिकायत कर रहे हैं!

 बेशक, ये वोट देकर अपने प्रतिनिधि चुनने और हितचिंतक सरकार बनाने का सर्वोच्च मौका है, इस सूबे के निवासियों को! सीमित संसाधनों, सीमित दायरे और सीमित अनुभव के बिना पर मुझे काफी रोमांच उठ आया है, अपनी परंपराओं को कहीं ज्यादा पुष्ट करने के प्रति! सघन कवरेज के बाद मुझे ये बताने में गर्व हो रहा है कि समाज का हर घटक अपने मताधिकार को लेकर काफी सजग हो चुका है! एक और महीन बात के साथ रुखसत करना चाहता हूं: जो नमेगा, वो पाएगा! कार्य, व्यवहार और परिणाम के बलबूते ही आम मतदाता का विश्वास हासिल किया जा सकेगा! सभी के प्रति शुभेच्छाएं.....

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