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साम्प्रदायिकता किसी समाज के लिए कोढ़ की बीमारी से कम नहीं होती-इरफ़ान अहमद


नई दिल्ली:  वरिष्ठ समाज सेवक राष्ट्रवादी विचारक, देशभक्ति को अपने जीवन में अंगीकार करने वाले इरफ़ान अहमद ने आज कहा कि साम्प्रदायिकता किसी समाज के लिए कोढ़ की बीमारी से कम नहीं होती, साम्प्रदायिकता को अधिकांश लोग धर्म से जोड़कर देखते है, क्योंकि साम्प्रदायिक लोगों के चेहरों पर धर्म का नकाब होता है, जैसे रावण ने सीता जी को धोखे से छल के साथ साधु के भेष में हरण किया, ठीक यही काम एक साम्प्रदायिक व्यक्ति करता है। साम्प्रदायिक व्यक्ति सच्चे अर्थ में अधर्मी होता है, जिसके कारण लोग धर्म को ही घृणा की दृष्टि से देखने लगते हैं। सभी धर्म सदाचार, कर्तव्य परायणता, संयम, लोक सेवा, देश सेवा, उदारता आदि उच्च मानवीय गुणों की मानव हृदय में स्थापना को अपना एक मात्र उद्देश्य मानते हैं। कार्य प्रणाली पृथक-2 होते हुए भी सब धर्मों में समानता है। तरीके, विश्वास, विधान अलग-2 होते हुए भी वे सब मनुष्य को सच्चे अर्थों में मनुष्य बनाने का प्रयत्न करते हैं।
                       सब धर्मों में इतनी अन्तरंग एकता होते हुए भी आज हम देखते हैं कि धर्म के नाम पर भारी विद्वेष और रक्तपात फैल रहा है। इसे देखकर स्थूल दृष्टि वाले लोग ऐसा सोचने को विवश होते हैं कि सारे झगड़ों की जड़ यह धर्म ही है। जब तक इसे जड़मूल से नष्ट नहीं कर दिया जायेगा तब तक ये दुनिया चैन से न बैठ सकेगी। परन्तु यह विचार बहुत ही उथला है।
धर्म का पालन किये बिना न व्यक्ति की, न समाज की अथवा किसी की भी शान्ति और सुव्यवस्था स्थिर नहीं रह सकती, इसलिए धर्म की धारणा उतनी ही आवश्यक मानी गई है जितनी कि जलवायु और अन्न का सेवन। लोगों को धार्मिक बनाने के लिए प्रायः सभी विचारवान व्यक्ति अपने प्रयत्न जारी रखते हैं। यही प्रयत्न सामूहिक रूप से भी विविध प्रक्रियाओं द्वारा किये जाते हैं। सदाचारी, कर्तव्यपरायण, सच्चे नागरिक, देशभक्त, लोक सेवक, धर्मवान्, राष्ट्रवाद एवं ईश्वर भक्त का एक ही अर्थ है।
                         दो पैर के पशु को सच्चे अर्थों में मनुष्य बनाने के लिए धर्म की अभिभावना की गई है। इस धर्म भावना को जीवन में भली भाँति, अन्तस्थल में अधिक गहराई तक धारण किया जा सके, इस दृष्टि से धार्मिक प्रथायें, परिपाटियाँ कर्मकाण्ड, विश्वास, सिद्धान्त, पूजा, उपासना, संस्कार, शास्त्र आदि की व्यवस्था की गई। यह सब बातें मिलकर एक धर्म बनता है।
धर्म मानवता को उसके उच्चतम शिखर पर बिठाने का नाम है, जो प्राकृतिक नियम है वही दीन या धर्म है, धर्म के नियम परमेश्वर द्वारा निर्धारित किए जाते हैं जिससे समाज में सुख शान्ति बनी रहती है। लेकिन कुछ लोग धर्म को अपने स्वार्थ के लिए उपयोग करते हैं और यही लोग साम्प्रदायिक होते है इन्हे पहचानना बहुत आवश्यक है वरना समाज का पतन होने से कोई नहीं बचा सकता।
आज धर्म व्यवसाय बन चुका है, आज धर्म नफरत फैलाने का माध्यम बन गया है यही साम्प्रदायिकता है, लेकिन हमें इनकी पहचान आवश्यक है जो करनी होगी, हम सबको एक नजर से नहीं देख सकते और न सबको बुरा बोल और समझ सकते हैं, रावण ने साधु बनकर अगर सीता जी का हरण किया तो इसका अर्थ यह नहीं कि सारे साधु गलत हैं, ठीक इसी प्रकार आज बहुत से साधु के भेष में भी है और मौलवी के भेष में भी है। 
                         कोई चोर कम्बल ओढ़े हुए चोरी करने जाता है तो क्या यह मान लिया जाय कि चोरी का दोष कम्बल पर है। वेश्याएं भी दूध पीती हैं क्या इसलिए यह मान लिया जाय कि दूध पीने वाले व्यभिचारी होते हैं..?इसलिए सावधान रहें, सतर्क रहें, अगर कोई धर्म के नाम पर आपको बांट रहा है, घृणा फैला रहा है तो सावधान हो जाएं ऐसे व्यक्ति से।
सबका मालिक और पालनहार एक है, उसके हर भाषा में अच्छे नाम है वही अल्लाह है वही परमेश्वर है, जो एक अकेला है अजन्मा है जन्म मरण के बंधन से मुक्त, कोई उसके जैसा नहीं कोई उसके समकक्ष नहीं है, न उसकी कोई प्रतिमा बन सकती है वह मानवीय सोच में ही समाहित नहीं हो सकता और केवल वही एक उपासना के योग्य है !! चाँद, सितारे, समन्दर, पहाड़, नदी, झरने और समूची प्रकृति और ब्रह्माण्ड उसकी असीम शक्ति से परिचित करवा रही है और यह सब उसकी निशानियाँ है, रात के बाद दिन और दिन के बाद रात, मौसमों का बदलना इत्यादि..!!
सारे मनुष्य एक माता पिता की सन्तान है सारे मनुष्य भाई भाई है अमीर गरीब, गोरा काला, संसार के किसी भी भूभाग पर रहने वाला सब समान है, श्रेष्ठता का पैमाना केवल सदाचारी और ईशपरायणता है, इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं।
                             सच्चे धार्मिक बने, धर्म को बदनाम करने वाले साम्प्रदायिक व्यक्ति से समाज और स्वयं को बचाये उससे उचित दूरी बनाकर रखने में ही बुद्धिमानी है !! 
वसुधैव कुटुंबकम ही हमारा संदेश है !!

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