तीनों कृषि कानून रद्द : देर आयद दुरस्त आयद !
डॉ. चन्दर सोनाने
आखिरकार एक साल से शांतिपूर्वक अहिंसक आंदोलन कर रहे किसानों के आगे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को झुकना ही पड़ा ! उन्होंने गुरुनानक देव के प्रकाश पर्व पर देश के नाम अपने संबोधन में विवादित तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने की घोषणा की । साथ ही इसी माह में आयोजित होने वाले संसद के सत्र में उन तीनों कानूनों को वापस लेने का निर्णय लेने की भी बात भी कही । केंद्र सरकार से इन्हीं तीनों कानूनों को वापस लेने के लिए ही दिल्ली सीमा पर एक साल से किसान धरना दे रहे थे । विश्व के सबसे बड़े प्रजातंत्र के प्रधानमंत्री को किसानों की समस्या और मांग समझने में एक साल लग गया ! खैर ! देर आयद दुरस्त आयद !
प्रधानमंत्री ने उक्त घोषणा करते हुए यह भी बताया कि देश में 100 में से 80 किसान ऐसे हैं , जिनके पास मात्र 2 हेक्टेयर कृषि भूमि ही है । ऐसे किसानों की संख्या 10 करोड़ से भी ज्यादा है । उनकी पूरी जिंदगी का आधार जमीन का यह छोटा सा टुकड़ा ही है । इसी सहारे वे अपना और अपने परिवार का गुजारा करते हैं । कितनी अच्छी बात कही , प्रधानमंत्री जी ने ? वे बात हमेशा अच्छी करते हैं ! वे अपनी बातों से सबको भावुक कर देते हैं ! प्रधानमंत्री जी इन्हीं 10 करोड़ छोटे किसानों के लिए तीन कानून लाए थे , जो वास्तव में उनके तो किसी काम के ही नहीं थे !
मोदी सरकार सघन कोरोना काल में ताबड़तोड़ 17 सितंबर 2020 को इन तीनों कानूनों को लेकर आई थी । किसानों ने जब इन तीनों कानूनों को देखा - परखा , तो ये तीनों कानून उनके तो किसी काम के नहीं निकले , बल्कि बड़े पूंजीपतियों द्वारा उनके शोषण के जरूर पाए ! तब उन्होंने मोदी सरकार से इन कानूनों को वापस लेने के अनेक स्तरों पर निवेदन किया ! जब उनकी कोई ठोस सुनवाई नहीं हुई तो किसानों ने दिल्ली सीमा पर 26 नवम्बर से अपना शांतिपूर्वक धरना शुरू कर दिया । वैसे किसान दिल्ली में अपना धरना शुरू करना चाहते थे किंतु उन्हें दिल्ली में जब घुसने ही नहीं दिया तो वे दिल्ली सीमा पर ही धरने पर बैठ गए । इस बीच मोदी सरकार के मंत्रियों ने बातचीत का नाटक भी शुरू किया ! कथित अनेक वार्ताओं का दौर भी चला ! लेकिन यह सब केवल नौटंकी से ज्यादा नहीं था ! क्योंकि इन वार्ताओं से कोई भी हल नहीं निकला । दोनों पक्ष अपनी बात पर अड़े रहे । किसान चाहते थे तीनों कानून वापस हों ! केंद्र सरकार ने इन कानूनों को वापस लेने से साफ मना कर दिया !
इस बीच मोदी सरकार ने किसानों के इस धरना प्रदर्शन आंदोलन को बदनाम करने के लिए साम दाम दण्ड भेद सहित सारे हथकण्डे अपनाए ! अपनी भाजपा पार्टी के माध्यम से देश के सभी राज्यों और जिलों में इन तीनों नए कानूनों के फायदे बताने के लिए देशव्यापी कार्यक्रम चलाया ! किसानों के इस शांतिपूर्ण आंदोलन के विरुद्ध मोदी सरकार और भाजपा के आईटी मीडिया सेल ने मीडिया के हर माध्यम का दुरुपयोग कर देशव्यापी दुष्प्रचार अभियान चलाया ! उन्होंने धरना दे रहे इन किसानों को किसान मानने से ही साफ इंकार कर दिया ! उन्होंने बताया कि ये किसान ही नहीं है ! ये आतंकवादी हैं ! खालिस्तानी हैं ! देशद्रोही हैं ! गोदी मीडिया ने तो हर तरह की सारी सीमाएँ ही तोड़ दी ! किन्तु किसान उग्र नहीं हुए । उन्होंने जब - जब दिल्ली जाकर अपनी बात कहनी चाही तो हमेशा उनके साथ दुश्मनों जैसा सलूक किया गया ! दिल्ली सीमा पर अनेक अवरोध खड़े कर दिए गए ! सीमा पर कांटेदार झाड़ियाँ लगा दी गई ! और तो और सड़क पर बड़ी - बड़ी कीलें ठोंक दी गई ! भारत के प्रजातंत्र के इतिहास में कभी ऐसा नहीं हुआ , जब दिल्ली में अपने ही देश के किसानों को अपनी शांतिपूर्वक बात कहने और धरना प्रदर्शन की अनुमति नहीं दी गई ! मजबूरी में सैकड़ों हजारों किसानों को दिल्ली सीमा पर धरना देने के लिए मजबूर होना पड़ा ! ये किसान बारह महीने से ठंड , गर्मी और बारिश में खुले आसमान के नीचे शांतिपूर्ण तरीके से मोदी सरकार से अपनी बात मनवाने के लिए डटे रहे !
अब जब प्रधानमंत्री जी को लगा कि उनकी राजनीतिक यात्रा में किसान आंदोलन एक बहुत बड़ा रोड़ा बन चुका है ! पहले महाराष्ट्र और बाद में बंगाल के चुनावों में शिकस्त के बाद अगले साल 2022 में पाँच राज्यों के चुनावों के परिणामों का डर उन्हें सताने लगा ! पाँच राज्यों में से पंजाब , उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की सर्वाधिक चिंता अब उन्हें सताने लगी ! उत्तर प्रदेश में लखीमपुर खीरी हादसे में मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ ने एक केंद्रीय मंत्री और उसके बेटे को बचाने में वह सब कुछ किया , जो उन्हें नहीं करना था । जरा सोचिए , एक आपराधिक मामले में आरोपियों के खिलाफ एफआईआर तक दर्ज नहीं हो पाई ! सुप्रीम कोर्ट के आदेश देने के बाद ही केंद्रीय मंत्री के बेटे के विरुद्ध एफआईआर दर्ज की गई और उसे गिरफ्तार किया गया ! इस हादसे में अनेक किसानों को जीप से कुचलकर मार देने के बाद भी मुख्यमंत्री द्वारा आरोपियों का हर तरह से बचाव करने के कारण लोगों और खासकर किसानों में उनकी छवि नकारात्मक हो चली है !
जो प्रधानमंत्री और उनकी भाजपा पार्टी देश के हर राज्य में अपनी ही पार्टी की सरकार होने का सपना संजोए हों ! जिन राज्यों के चुनावों में अपनी पार्टी हार चुकी हो , उन राज्यों में भी जोड़ तोड़ कर अपनी पार्टी की सरकार बनाने में माहिर हो चुकी पार्टी को , आसन्न पाँच राज्यों में हार के संकेत मिलने लगे तो प्रधानमंत्री क्या करेंगे ? बस , प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने अपनी पार्टी की इसी साख को बचाने के लिए जो भी कर सकते हैं , वही तो उन्होंने किया है ! बहुत ही सोची समझी रणनीति के तहत उन्होंने बारह महीने से लंबित किसानों की मांग को गुरुनानक देव के प्रकाश पर्व पर भावुक होकर मान ली ! यदि वास्तव में उनके मन में किसानों के प्रति सही मायने में चिंता थी , तो उन्हें आंदोलन के दौरान करीब 700 किसानों की हुई मौतों पर भी दुःख जताना था ! उनके परिवारों के प्रति सांत्वना के दो शब्द कहने थे ! उनके परिवारों को आर्थिक मुआवजा देकर उनके जख्मों पर मरहम लगाना था ! किसानों के कड़कड़ाती ठंड , आग बरसाती गर्मी और तेज बारिश में भी खुली छत के नीचे और टेंट में बारह महीने बिताने के दौरान उन्हें हुए दर्द और तकलीफों के लिए माफी मांगनी थी ! किन्तु संसार के सबसे बड़े प्रजातंत्र के मुखिया ने ऐसा कुछ भी नहीं किया ! उन्होंने किसानों की मांगें मानी तो वह भी अपने राजनैतिक फायदे के लिए ही ! खैर ! कारण कोई भी हो ! आखिकार एक साल के इंतजार के बाद किसानों की मांग मंजूर हुई ! देर आयद दुरुस्त आयद !!!
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