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कुपोषण के अभिशाप के खात्मे के लिए जरूरी है जनभागीदारी


  डॉ. चन्दर सोनाने

            हमारे देश की आजादी के 75 साल होने जा रहे हैं । इस साढ़े सात दशक के दौरान अनेक महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हमारे खाते में हैं । इसके बावजूद बच्चों के कुपोषण के मामले में हम बहुत ही बुरी हालत में हैं । देश के पाँच राज्यों मध्यप्रदेश , छत्तीसगढ़ , असम , राजस्थान और मेघालय में सबसे ज्यादा शिशु मृत्यु दर हमें बहुत कुछ सोचने के लिए मजबूर करती है ।
              आइए , कुपोषण की पूरी हालात पर एक नजर डालते हैं । केंद्र सरकार द्वारा ही जारी सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (एसआरएस) बुलेटिन के अनुसार  एक साल तक के शिशु की मृत्यु दर के मामले में देश भर में मध्यप्रदेश की स्थिति सबसे खराब है । यहाँ 1000 बच्चों में से 46 बच्चों की मौत एक साल के भीतर ही हो जाती है ! यह स्थिति देश में तो सबसे खराब है ही , विश्व मानक में भी मध्यप्रदेश की स्थिति 150 देशों से भी ज्यादा खराब है ! इस राज्य के शहरी क्षेत्रों में शिशु मृत्यु दर जहाँ 32 है , वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में 50 है ! यानी गाँवों में 1000 बच्चों में से 50 बच्चे एक साल की आयु से पहले ही दम तोड़ देते हैं ! इस मामले में देश के सबसे खराब और चार राज्यों में से छत्तीसगढ़ में 40 , असम में 40 , राजस्थान में 35 और मेघालय में 33 बच्चों की असमय ही मौत हो जाती है । यह हालत बहुत की दुखद और हम सबके लिए शर्मनाक है ! 
               नेशनल फैमिली हैल्थ सर्वे - 5 (एनएफएचएस) की रिपोर्ट उन हालातों पर भी रोशनी डालती है , जो यह बताती है कि वे कौन से प्रमुख कारण है , जिसकी वजह से हमारे शिशुओं की एक साल के भीतर ही जान चली जाती है । देश में सबसे खराब हालत वाले मध्यप्रदेश के उदाहरण से हम इसे समझते हैं ।यह रिपोर्ट पहली वजह यह बताती है कि कुपोषण के तीनों पैमाने पर मध्यप्रदेश सबसे कमजोर 10 प्रदेशों में शामिल है। ये तीनों पैमाने बताते हैं की 42 प्रतिशत बच्चे कम कद के , 25.8 प्रतिशत बच्चे निर्बलता के और 42.8 प्रतिशत बच्चे कम वजन के होते हैं । दूसरी वजह यह है कि मध्यप्रदेश में 52.4 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं में खून की कमी रहती है । इस कारण से आने वाली संतान में भी स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें ज्यादा हो जाती है । तीसरा कारण यह बताया गया है कि इस राज्य में जन्म के एक घंटे में सिर्फ 36 प्रतिशत बच्चों को ही माँ का पहला दूध मिल पाता है , जो बच्चों के लिए सबसे जरूरी होने के साथ ही अमृत के समान होता है । चौथा कारण यह है कि इस राज्य में अभी भी 18.4 प्रतिशत लड़कियों की शादी 18 साल से पहले ही हो जाती है । इस कारण वे जल्दी माँ भी बन जाती है । पाँचवाँ और अंतिम कारण यह है कि मध्यप्रदेश के ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों पर 298 और आदिवासी क्षेत्रों में 85 शिशु रोग विशेषज्ञों की कमी है । इन प्रमुख पाँच कारणों से इस प्रदेश में बच्चों की एक साल के अंदर ही मौत हो जाती है । मध्यप्रदेश जैसी कमोबेश हर राज्यों की भी यही हालत और कारण है , जिसके कारण बच्चे एक माह के होने के भी पहले दम तोड़ देते हैं । देशभर में केवल केरल ही एक ऐसा राज्य है , जहाँ 1000 बच्चों में से केवल 6 बच्चों की ही एक साल के भीतर मौत हो पाती है । इस बारे में अन्य राज्यों को केरल की योजना , कार्य और सेवा भावना से सीखने की जरूरत है ! 
               यह भी सही है कि देश की आजादी के समय की तुलना में देश में शिशु मृत्यु दर में बहुत कमी आई है । किंतु अभी भी बहुत काम करना बाकी है । इसके लिए केंद्र और राज्य सरकारों को अपना - अपना वार्षिक बजट बड़ाकर दो गुना करने की सख्त जरूरत है । इससे कुपोषित बच्चों को और अधिक पोषण सामग्री और सुविधाएँ उपलब्ध कराकर उन्हें कुपोषण से बाहर लाया जा सकेगा । किन्तु यह काम केवल सरकारों के भरोसे पर छोड़ना भी सही नहीं  है ! केंद्र की सरकार हो या राज्यों की सरकार , उनकी अपनी सीमाएँ हैं । इसलिए देश और राज्यों से कुपोषण का अभिशाप के खात्मे के लिए जनभागीदारी भी अत्यंत ही जरूरी है ! और यह हो सकता है , यदि दृढ़ संकल्प कर लिया जाए ! 
               और करना सिर्फ यह है कि देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी बच्चों की जिंदगी बचाने के लिए सभी राज्यों से इस पुनीत कार्य के लिए जनभागीदारी की अपील करें । इसमें उन्हें क्या करना है , उसकी पूरी योजना भी बताई जाए । योजना यह है कि देश के हर राज्यों के प्रत्येक जिलों को इकाई बनाया जाए । प्रत्येक जिलों में जनभागीदारी समिति का गठन कर कलेक्टर को उसका समन्वयक बनाया जाए । इस समिति में उस जिले के सभी जनप्रतिनिधियों , प्रमुख उद्योगपतियों , व्यवसायियों , स्वयंसेवी संस्थाओं , राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों , सभी धर्मों के प्रमुखों , रोटरी और लायंस क्लब जैसे सभी सेवाभावी संगठनों , सभी संबंधित विभागों आदि को समिति का सदस्य मनोनीत करते हुए बैठक आयोजित की जाए । बैठक में उनसे सिर्फ एक निवेदन किया जाए कि प्रत्येक संगठन उस जिले की महिला एवं बाल विकास विभाग की किसी भी एक परियोजना को गोद लें । और वह उस परियोजना की समस्त आंगनबाड़ी केंद्रों के सभी कुपोषित बच्चों को कुपोषण के अभिशाप से बाहर निकालने में तन , मन और धन से सहयोग  करें ! इसके साथ ही यदि कोई व्यक्तिगत रूप से किसी एक ही आंगनवाड़ी को गोद लेना चाहें तो वह उस आंगनवाड़ी के सभी कुपोषित बच्चों को कुपोषण से बाहर निकालने की भी जिम्मेदारी ले सकता है । इसमें यह भी प्रावधान किया जाए कि यदि कोई व्यक्ति किसी आंगनवाड़ी का कोई एक ही कुपोषित बालक गोद लेना चाहें , तो यह भी किया जा सकता है । 
               कुछ वर्षों पहले मध्यप्रदेश के महिला एवं बाल विकास विभाग भोपाल द्वारा कुपोषित बच्चों को गोद लेने की अनुपम योजना प्रदेश भर में शुरू की गई थी । उस योजना में कोई भी व्यक्ति कुछ माह तक हर माह  केवल पाँच सौ रुपये देकर कुपोषित बच्चों को पोषण आहार की सामग्री दे सकता है । यह योजना बहुत लोकप्रिय होकर कुपोषित बच्चों के लिए वरदान सिद्ध हुई थी । किन्तु वरिष्ठ अधिकारियों के तबादले के बाद अब वह योजना केवल कागजों में ही बची है ! उस बहुउपयोगी योजना को मध्यप्रदेश में ही नहीं , बल्कि पूरे देश में लागू किया जाना चाहिए ! यह काम छोटा नहीं है , बल्कि बहुत बड़ा है , किंतु यदि अपने बच्चों को कुपोषण के खतरे से बाहर निकालना हो तो ऐसा ही कुछ तो करना ही होगा ! ऐसे ही और भी अनेक उपाय हो सकते हैं ! देश के सेवाभावी लोगों को भी कुछ न कुछ तो करना ही होगा ! यह उनकी सामाजिक जिम्मेदारी भी है ! केवल सरकारों के भरोसे यह सब नहीं हो सकता ! देश के सेवाभावी लोगों और संगठनों को इस पुनीत काम में आगे आना ही होगा ! आना ही चाहिए ! इस बारे में आपके क्या ख्याल हैं ?
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