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राजनीति के अपराधीकरण पर सुप्रीम कोर्ट की लगाम !


डॉ. चन्दर सोनाने

               हर बार की तरह इस बार फिर सुप्रीम कोर्ट ने अपनी जिम्मेदारी निभाई है । पिछले दिनों एक ही दिन दो आदेश देकर उसने देश की राजनीति के तेजी से हो रहे अपराधीकरण कर लगाम कसने का अभिनंदनीय कार्य किया है । सुप्रीम कोर्ट ने एक अपील पर अपना निर्णय देते हुए आदेश दिया है कि अब लोकसभा और विधानसभा के चुनाव के समय प्रत्येक प्रत्याशी को अपने नामांकन दाखिल करने के 48 घंटे के भीतर उसके विरुद्ध दर्ज सभी आपराधिक मामलों की पूरी जानकारियों को सार्वजनिक करना जरूरी है ! पहले इसकी अवधि ज्यादा थी । उम्मीदवारों की सभी आपराधिक जानकारियों को क्षेत्र के समाचार पत्रों में प्रकाशित करना भी अनिवार्य कर दिया गया है । उसे वेबसाइट पर भी डालना आवश्यक किया गया है । इससे एक सामान्य मतदाता को प्रत्याशी के सभी आपराधिक मामलों की जानकारी मिल सकेगी । सुप्रीम कोर्ट ने अपने पूर्व के आदेश के अनुरूप प्रत्याशियों को खुद पर दर्ज मामले सार्वजनिक नहीं करने पर भाजपा, कांग्रेस सहित 9 राजनैतिक दलों पर जुर्माना लगाकर अपनी मंशा स्पष्ट भी कर दी है । सुप्रीम कोर्ट ने अपने दूसरे आदेश में यह फैसला दिया है कि सांसदों और विधायकों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले केंद्र सरकार या राज्य सरकार बिना उच्च न्यायालय की अनुमति से वापस नहीं ले सकती ! सुप्रीम कोर्ट के उक्त दोनों आदेशों के कारण अब निश्चित रूप से देश की राजनीति के अपराधीकरण पर लगाम कसी जा सकेंगी !
               एसोसिएशन फ़ॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने हाल ही में अपनी एक रिपोर्ट पेश की है । उस रिपोर्ट के अनुसार देश की राजनीति में तेजी से अपराधीकरण हो रहा है। वर्ष 2004 के चुनाव के समय दागी उम्मीदवारों का प्रतिशत 24 था । यह वर्ष 2009 में 33 प्रतिशत , वर्ष 2014 में 34 प्रतिशत और वर्ष 2019 में बढ़कर 43 प्रतिशत हो गया । सितंबर 2020 तक मौजूद और पूर्व सांसदों और विधायकों पर कुल 4,859 केस दर्ज थे । पिछले लोकसभा चुनाव वर्ष 2019 में जीते हुए भाजपा के 39 प्रतिशत ,कांग्रेस के 57 प्रतिशत , द्रविड़ मुनेत्र कडगम के 43 प्रतिशतऔर तृणमूल कांग्रेस के 41 प्रतिशत लोग दागी थे । यानी इन पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज थे । एडीआर ने एक खास बात यह भी बताई कि साल 2019 के चुनाव में आपराधिक मामलों वाले उम्मीदवारों के जीतने की उम्मीद जहाँ 15.5 प्रतिशत थी , वहीं जिन प्रत्याशियों के खिलाफ कोई भी मामले दर्ज नहीं थे , उनके चुनाव जीतने की उम्मीद केवल 4.7 प्रतिशत ही थी । यह अत्यंत चिंताजनक बात है । इस पर सभी राजनैतिक दलों के साथ - साथ एक आम मतदाता को भी जरूर सोचना चाहिए !
               एडीआर ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि वर्ष 2019 से 2021 तक 543 लोकसभा सदस्यों और विधानसभा के 1953 विधायकों के हलफनामों की जांच की गई । इनमें से 363 ने घोषित किया है कि अदालतों ने उनके विरुद्ध गंभीर आरोप तय किये हैं । इसी के साथ मोदी सरकार में शामिल 78 मंत्रियों में से 42 प्रतिशत ने उनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज होना बताया है ! जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8 के तहत दर्ज मामलों में दोषी पाए जाने पर उसी तारीख से उसे अयोग्य घोषित किए जाने का प्रावधान है! इसी के साथ यह भी प्रावधान है कि रिहाई के बाद भी वह आगामी 6 साल तक कोई भी चुनाव लड़ नहीं सकता है ! इसके बावजूद इस कानून के बनने बाद भी उंगली पर गिने जा सकने वालों को ही सजा मिल पाई है !
               ऐसी स्थिति में फिर क्या किया जाए ? सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही के उक्त दोनों आदेशों से आशा तो जगाई है । अब सुप्रीम कोर्ट को ही आगे भी कुछ करना होगा । इस दिशा में और यह किया जाना चाहिए कि प्रत्येक राज्य में राजनैतिक अपराधियों के लिए ही विशेष कोर्ट हो ! इस कोर्ट में दर्ज मुकदमों को अधिकतम दो साल में अपना निर्णय देना सुनिश्चित किया जाना चाहिए । इसकी अपील संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय में की जा सकती है । इसके लिए उच्च न्यायालय में भी एक विशेष जज की नियुक्ति की जानी चाहिए ! यहाँ अधिकतम एक वर्ष में ही उस प्रकरण का निराकरण किया जाना तय किया जाना जरूरी है । बाहुबली यहाँ भी हारने पर सुप्रीम कोर्ट में अपील करेगा । तो वहाँ भी एक विशेष जज की ऐसे ही प्रकरण की सुनवाई के लिए तैनाती की जानी चाहिए । यहाँ पर भी अधिकतम एक वर्ष में ही प्रकरण का निराकरण किया जाना निश्चित किया जा सकता है ! इससे यह होगा कि किसी भी सांसद या विधायक के आपराधिक मामलों का निराकरण अधिकतम 4 साल में सर्वोच्च न्यायालय तक किया जा सकेगा और उसे अपने कार्यकाल पूरा होने के पहले ही सजा मिलना तय हो जाएगा । अभी तो यह हो रहा है कि किसी के भी विरुद्ध मुकदमा दर्ज होने के बाद सुनवाई में ही वर्षों निकल जाते  हैं । हार जाने पर उच्च न्यायालय में अपील ! और वहाँ भी सालों तक केवल सुनवाई ही होती है ! और यदि उसे वहाँ भी हार मिलती है तो सुप्रीम कोर्ट है ही ! वहाँ भी सालों केस चलता है ! नतीजा वही शून्य ! 
               देश में राजनैतिक अपराधियों पर सही मायने में लगाम तभी लगाई जा सकती है जब हर राज्य , उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में ऐसे अपराधियों के लिए विशेष अदालत हो और वहाँ केस के निराकरण ले लिए एक निश्चित समय सीमा तय हो ! यदि ऐसा होगा तो राजनैतिक अपराधियों पर निश्चित रूप से लगाम कसी जा सकेगी । अन्यथा अभी जो हो रहा है , ऐसा ही होता रहेगा ! और ऐसे लोग राज्यों में विधायक बन कर मंत्री भी बनेंगे तथा लोकसभा चुनाव में चुनाव जीत कर सांसद भी बनेंगे और मंत्री भी बनेंगे ! और कोई भी चाहने पर भी कुछ नहीं कर पाएगा ! जैसे कि अभी कुछ नहीं कर पा रहें हैं !!!
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