टीकाकरण : पहले डोज और दोनों डोज की संख्या में अंतर है बड़ा खतरा !
डॉ. चन्दर सोनाने
हांलाकि पहले की तुलना में अब देश में टीकाकरण की तेज रफ्तार ने जहाँ काफी उम्मीद बढ़ाई है , वहीं देश के 18 साल से अधिक उम्र वाले लोगों को लगे पहले डोज की संख्या की तुलना में अभी तक केवल एक तिहाई से भी कम लोगों को लगे दोनों डोज की संख्या ने चिंता बढ़ाई भी है ! यह एक अत्यंत गंभीर मामला है , किंतु दुखद है कि मोदी सरकार का इस ओर अभी तक विशेष ध्यान गया ही नहीं है ! यदि केंद्र सरकार का इस ओर ध्यान गया होता तो वह लोगों को दोनों डोज लगाने की दिशा में अभी तक विशेष कार्य योजना बना कर उस पर क्रियान्वयन शुरू कर चुकी होती !
आइए , हम सिलसिलेवार इस बात पर गौर करते हैं । हमारे देश में 16 जनवरी 2021 से लोगों को टीके लगाने का कार्यक्रम शुरू किया गया था । तब से 4 सितंबर 2021 तक करीब साढ़े सात माह के दौरान पहले डोज और दोनों डोज के टीकाकरण के आँकड़ों में बड़ा अंतर चिंताजनक हैं । देश भर में शुरू से 4 सितंबर 2021 तक 52 करोड़ 38 लाख 12 हजार 268 लोगों को पहला डोज लगा है । यह कुल आबादी 130 करोड़ का 40.29 प्रतिशत है । इसी प्रकार 15 करोड़ 99 लाख 16 हजार 790 लोगों को ही दोनों डोज लग पाए हैं । यह कुल आबादी का केवल 12.30 प्रतिशत ही है । यानी पहले डोज की तुलना में दूसरा डोज एक तिहाई से भी कम लोगों को लगा है !
यहाँ देखने वाली बात यह है कि देश के सभी लोगों को कोरोना से बचाव के लिए दोनों डोज लगना जरूरी है । इस प्रकार देश की पूरी आबादी 130 करोड़ लोगों को दोनों डोज के लिए कुल 260 करोड़ डोज लगना है । अभी लोगों को कुल 68 करोड़ 37 लाख 29 हजार 058 डोज ही लग पाए हैं । कुल डोज 260 करोड़ का यह केवल 26.29 प्रतिशत ही है ! यानी अभी बहुत काम बाकी है ! एक और चिंताजनक बात यह भी है कि 16 जनवरी 2021 को टीकाकरण के प्रथम चरण के समय ही केंद्र सरकार ने स्पष्ट रूप से कहा था कि सबसे पहले हम हेल्थ वर्कर्स और फ्रंट लाइन वर्कर्स को टीके लगाएँगे , किन्तु साढ़े सात माह से अधिक समय बीत जाने के बाद भी हम इस लक्ष्य को अभी तक प्राप्त नहीं कर सके हैं ! रोज इन दोनों वर्गों के लोगों को टीके लगाए जा रहे हैं । 4 सितंबर को भी हेल्थ वर्कर्स में से 408 लोगों को पहला डोज और 19 हजार 157 लोगों को दूसरा डोज लगा है । इसी प्रकार फ्रंट लाइन वर्कर्स में से 625 को पहला डोज और 77 हजार 784 लोगों को दूसरा डोज लगा है । इसे आप क्या कहेंगे ?
विश्व के अनेक देशों अमेरिका , ब्रिटेन , इजराइल आदि देशों ने तेजी से टीकाकरण कर कोरोना महामारी पर लगभग नियंत्रण सा कर लिया था , उन देशों में भी अगस्त माह से तेजी से मरीज बढ़ने लगे हैं । इसका प्रमुख कारण यह बताया जा रहा है कि इन देशों ने अपने - अपने देशों को समय से पहले ही मास्क फ्री कर लिया था । वहाँ के लोग कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए की जाने वाली सावधानी को लेकर अत्यंत लापरवाह होने लगे थे । हाल ही में आने वाले कोरोना के नए - नए वैरिएंट के कारण भी संक्रमण बढ़ा । हमारे देश में भी यही हो रहा है । करीब तीन माह बाद अपने देश में भी फिर से तेजी से कोरोना का संक्रमण बढ़ने लगा है । देश में सबसे ज्यादा मरीज एक राज्य केरल में मिल रहे हैं । देश के 76 प्रतिशत केस इसी राज्य में मिल रहे हैं । केरल के बाद अन्य प्रभावित राज्य महाराष्ट्र , तमिलनाडु ,आंध्र प्रदेश , कर्नाटक है । अन्य राज्यों में भी खतरा अभी बरकरार है ।
विश्व में सबसे अधिक संक्रमित देश अमेरिका और अन्य देशों में , जहाँ तेजी से टीकाकरण किया गया है , उन देशों में भी फिर से बढ़ रहे मरीजों के बावजूद एक बात राहत वाली यह है कि जिन लोगों को कम से कम एक या दोनों टीके लग गए हैं , वे गंभीर रूप से बीमार नहीं हुए हैं । और इससे भी अधिक सुखद बात यह है कि ऐसे संक्रमित लोगों में मौतें पहले की तुलना में बहुत कम हो रही है । अमेरिका में न्यूयॉर्क सिटी हेल्थ अस्पताल श्रंखला की वरिष्ठ निदेशक और अमेरिका के कोविड रिस्पॉन्स टास्क फोर्स की सदस्य डॉ सायरा मडाड का इस बारे में कहना है कि जिन देशों में वैक्सीन लगाने की दर तेज है , वहाँ भी संक्रमण फैल रहा है । लेकिन अस्पतालों में भर्ती होने के मामलों या मौतों में भारी कमी आई है । ये कमी वैक्सीन के असरदार होने का सबूत है । बिना वैक्सीन के शरीर में प्रतिरोधक क्षमता विकसित होने में लंबा वक्त लगता है । इस दौरान मौतों की संख्या अप्रत्याशित रूप से बढ़ती है । यह देखा जा रहा है कि वैक्सीन मौतें रोक रही है । वैक्सीन कार की सीट बेल्ट जैसी है । वो एक्सीडेंट तो नहीं रोकती , पर उससे लगने वाली चोट रोकती है । अर्थात अब यह सिद्ध हो चुका है कि तेजी से टीकाकरण और कोविड प्रोटोकॉल का पालन करने से ही कोरोना से बचा जा सकता है । टीकाकरण एक दिन का विशेष अभियान नहीं होना चाहिए , बल्कि रोज ही सतत अभियान का प्रक्रिया बनना चाहिए । टीकाकरण को अभियान तक ही सीमित करने के अनेक दुष्परिणाम भी देखने में आ रहे हैं । हाल ही में देश में एक दिन 27 अगस्त को रिकार्ड रूप में कुल 1.07 करोड़ टीके लगे , किन्तु उसके अगले दो दिन में 79 लाख और केवल 34 लाख टीके ही लगे । ऐसे विशेष अभियान के पूर्व के दिनों में भी यही स्थिति रही । गत 21 जून को रिकार्ड 87 लाख टीके लगे , किन्तु अगले दिन 22 जून को ही यह संख्या गिरकर 58 लाख हो गई थी । ऐसे अभियान से बचने और सतत तेज गति से टीकाकरण की ही आज सख्त जरूरत है ।
आज समय आ गया है कि केंद्र सरकार एक बार फिर से अपने टीकाकरण कार्यक्रम और उसकी कमियों की खुलकर चर्चा करें । कमियों को माने और उसमें व्यवहारिक सुधार करें ।अब अव्यवहारिक प्रयोग करने से बचें । देश के 60 हजार टीकाकरण केंद्रों में सप्ताह के सातों दिन 100 से 200 तक टीके लगाने के लिए दो सप्ताह पहले से पर्याप्त टीके का स्टॉक राज्यों को पहले से मुहैया कराएँ । टीके की कमी से कभी भी कोई भी केंद्र बंद नहीं करना पड़े , यह सुनिश्चित किया जाए । सभी केंद्रों में कोई भी व्यक्ति आनलाइन पंजीयन करवाकर या मतदान के समय जरूरी 18 पहचान पत्रों में से किसी को भी लाकर अपना पहला या दूसरा टीका लगवा सकें, यह सुनिश्चित किया जाए । किसी भी केंद्र पर किसी भी कारण से यदि कम टीके उपलब्ध हो तो कम लोगों को टीके लगाए जाएँ , किन्तु केंद्र को बंद नहीं किया जाए । किसी केंद्र पर पहला और किसी केंद्र पर दूसरा टीके लगाने की अत्यंत अव्यवहारिक व्यवस्था को तत्काल बंद किया जाए । समय पर दूसरा टीका लग ही जाए इसके लिए उसे बार - बार याद दिलाया जाए । विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षकों , समाज के जागरूक लोगों , गणमान्य नागरिकों , सामाजिक क्षेत्रों और विभिन्न धर्मों के प्रमुखों का भी सक्रिय सहयोग प्राप्त किया जाए , ताकि सभी लोगों को पहला और दूसरा टीका अनिवार्य रूप से लगाया जा सकें । इसी प्रकार यदि तेज गति से रोज एक करोड़ से अधिक लोगों को टीके लगा सकें तो यह निश्चित है कि भले ही व्यक्ति संक्रमित हो जाये किन्तु वह गंभीर हालत में नहीं पहुँच पायेगा तथा उसे मौत के मुँह में जाने से बचाया जा सकेगा !!!
---------०००---------