top header advertisement
Home - आपका ब्लॉग << शिक्षक की सीख और त्याग ही इंसान को बड़े मुकाम तक पहुंचाती है।

शिक्षक की सीख और त्याग ही इंसान को बड़े मुकाम तक पहुंचाती है।


आनन्द शर्मा

उज्जैन।  भारत के द्वितीय राष्ट्रपति व विश्वप्रसिद्ध दार्शनिक सर्वपल्ली डाक्टर राधाकृष्णन का कल जन्मदिवस था , जिन्होंने यह कहा था कि उनका जन्मदिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जायेगा और इसलिए पाँच सितम्बर को हम अपने सभी शिक्षकों को याद कर उनके प्रति सम्मान और कृतज्ञता प्रगट करते हैं | कोई शिक्षक ही ये कर सकता था कि अपने लिये होने वाली चीज़ को दूसरों की कर दे | हमारे जीवन में भी शिक्षक की सीख और त्याग ही हमें इस मुक़ाम तक पहुँचाए हुए हैं |
               मुझे जहाँ तक याद है , मैंने पहली कक्षा में स्कूल जाना बुढ़ार ( ज़िला शहडोल) से आरम्भ किया था | अम्मा बताती थीं कि तुम्हें रिक्शे में एक तरफ़ से बिठाया जाता और तुम दूसरी तरफ़ से कूद कर उतर जाते थे | बमुश्किल तुम इस बात पर माने कि तुम्हारी बड़ी बहन भी साथ ज़ाया करेगी | मुझे धुंधला सा याद है कि कक्षा में बैठा मैं झाँक कर खिड़की के बाहर अपनी बड़ी बहन माया को देखा करता था , जो कक्षा की दीवार से लगे खड़ी रहा करती थी | अपने स्कूल के जिन दिनों की मुझे ठीक से याद है , वे मंडला के हैं , जहां मैं जगन्नाथ वरिष्ठ मूल विद्यालय में कक्षा तीन में पढ़ा करता था | स्कूल में हम ठाकुर मास्साब के नाम से काँपा करते थे , वजह थी उनका मोटा रूल , जो वे कक्षा में पढ़ाने पर साथ लेकर आते थे , ख़ुशक़िस्मती ये रही कि उनके रूल से मेरा सम्पर्क क़भी हुआ नहीं | कक्षा में साहू जी गणित पढ़ाते थे , कुछ विद्यार्थी उनसे ट्यूशन पढ़ा करते थे , मुझे भी शौक़ हुआ तो मैंने बाबूजी से गुज़ारिश की कि मुझे भी साहू मास्टर साहब से ट्यूशन पढ़ना है | साहूजी घर पढ़ाने आने लगे , लेकिन एक हफ़्ते बाद ही उन्होंने बाबूजी को बुलाकर कहा कि आपके बेटे को ट्यूशन की ज़रूरत है नहीं | बाबूजी बोले कि अब एक महीना तो आप पढ़ा ही दो | नतीजतन महीने के बाक़ी दिन साहू जी मुझे चक्रव्यूह बनाना , पतंग के नक़्शे से भारत का मानचित्र बनाना आदि चीजें सिखाते रहे , गणित मैं खुद कर लिया करता | बाबूजी पोस्ट ऑफ़िस में नौकरी करते थे तो हर साल दो साल में बदली हो ज़ाया करती थी , सो जगह जगह घूमते हाई स्कूल तक हम लोग जबलपुर आ गये जहाँ डिसिलवा रतनसी स्कूल में मेरा दाख़िला करा दिया गया | स्कूल के दो शिक्षक मुझे हमेशा याद रहे आये , पहले गर्ग सर जो एन.सी.सी. के इंचार्ज थे और जिन्होंने मुझे वादविवाद प्रतियोगिता , तात्कालिक भाषण प्रतियोगिता में भाग लेना सिखाया और मेरा स्टेज फ़ियर दूर किया | बोलने का ये आत्मविश्वास मुझे आगे हर क्षेत्र में काम आया | दूसरे टीचर थे श्री गोम्स जो फ़ुटबाल के बढ़िया खिलाड़ी और हमारे गेम्स टीचर थे | गोम्स सर ने मुझमें खेलों के प्रति रुझान जगाया और उनकी सीख के कारण ही मैं ढेर सारे खेल सीख पाया और अब भी अरेरा क्लब में टेनिस खेल रहा हूँ |
                    स्कूल के बाद जी.एस. कामर्स कालेज जबलपुर में दाख़िला हो गया | कक्षायें प्रारम्भ हुईं तो पता चला कि किताबें तो बड़ी महँगी हैं | लाइब्रेरी से एक बार में केवल एक किताब लेने का नियम था | कालेज के प्रिंसिपल उन दिनों दिवाकर सर हुआ करते थे जो बड़े सख़्त तबीयत के माने जाते थे | मैंने अपनी बोर्ड की अंकसूची साथ में ली और उनसे जाकर मिला | अपनी परेशानी बतायी कि बाज़ार से ख़रीद कर किताब पढ़ नहीं सकते और लायब्रेरी से एक बार में एक ही मिलती है | उन्होंने मेरी अंकसूची में प्रथम श्रेणी के नम्बरों को ध्यान से देखा और मेरे आवेदन पर लिख दिया , बी.काम.पास होने तक एक अतिरिक्त किताब लेने की पात्रता रहेगी | मेरी मुश्किल का हल हो गया था , पर मैं उनसे बीच बीच में मिलकर अपनी प्रगति बताता रहता था | वक़्त बीतता गया और एम.काम.की परीक्षा में मैं प्रायवेट परीक्षार्थी की हैसियत से विश्वविद्यालय में सातवें स्थान की मेरिट से उत्तीर्ण हुआ | उत्साहित होकर मैं जबलपुर आया और दिवाकर सर से मिलने उनके घर पहुँच गया | इतवार का दिन था , घर पहुँचने पर पता लगा कि उनके ऊपर एक दिन पहले , नक़ल पकड़ने पर हुई झंझट के कारण , किसी शोहदे ने सिविल लाइन इलाक़े में चाकू से हमला कर दिया था | ये तो ख़ैरियत थी कि चोट गम्भीर नहीं थी | मेरा नाम देख उन्होंने अंदर बुला लिया | मैं अंदर गया तो वे बिस्तर पर लेटे थे , मुझे बधाई दो , बोले आगे क्या करोगे | मैंने उत्साह में भर कर कहा , सर मैं पी.एच.डी. करके आगे कालेज में पढ़ाना चाहता हूँ | दिवाकर सर मुस्कुरा कर बोले क्या करोगे पी.एच.डी. करके , चाकू खाना है क्या ? जाओ कुछ पी.एस.सी.-वी.एस.सी. की तैय्यारी करो और डिप्टी कलेक्टर बनो | मैं घर से बाहर निकला और सीधे कटनी वापस आकर तैय्यारियों में जुट गया | वह आशीर्वाद था या सलाह पर आज उसी की बदौलत मैं यहाँ हूँ |

Leave a reply