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धारा 370 हटने के दो साल : कश्मीरी पंडितों की कब होगी घर वापसी ?


  डॉ. चन्दर सोनाने

               केंद्र सरकार द्वारा जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 और 35 ए को निष्क्रिय करने को 5 अगस्त को दो साल पूरे हो गए हैं । निःसंदेह मोदी सरकार का यह एक ऐतिहासिक और बहुप्रतीक्षित निर्णय था । इससे घाटी में बहुत सकारात्मक परिणाम भी मिले हैं , किन्तु अभी तक करीब पाँच लाख कश्मीरी पंडितों की घर वापसी पर कोई भी ठोस नीति नहीं बनी है ! यह अत्यंत ही दुखद है ! 
               जम्मू कश्मीर के अनेक शहरों में इस  दिन भाजपा , शिव सेना और स्थानीय लोगों ने तिरंगा झंडा फहरा कर जश्न मनाया । मनाया भी जाना चाहिए । धारा 370 हटाते समय मोदी सरकार द्वारा यह कहा गया था कि इससे राज्य में शांति और समृद्धि आएगी । साथ ही यह भी कहा गया था कि घाटी से जबरदस्ती भगाए गए करीब पाँच लाख कश्मीरी पंडितों की घर वापसी की राह भी आसान होगी। लेकिन कश्मीरी पंडितों का यह कहना है कि केंद्र और राज्य सरकार घाटी में उनकी घर वापसी में अभी तक विफल रही है । कश्मीरी पंडितों के अधिकारों के लिए लड़ने वाले संगठन रिकॉन्सिलेशन रिटर्न एंड रिहैबिलिटेशन ऑफ माइग्रेंट्स के अध्यक्ष श्री सतीश महालदार का इस संबंध में यह कहना है कि " सभी सरकारें कश्मीरी पंडितों को दोबारा घाटी में बसाने में विफल रही है । सरकार कश्मीर में 50 हजार मंदिरों के जीर्णोद्धार की बात करती है । वे मंदिर अब है ही कहाँ ? जब पंडित यहाँ नहीं रहेंगे तो इन मंदिरों में प्रार्थना कौन जाकर करेगा ? सरकार अनेक वर्षों से हुई कश्मीरी पंडितों , मुसलमानों या सिखों की हत्याओं की जाँच कराने में विफल रही है। 5 अगस्त 2019 को जो कहा गया था , वह अभी तक धरातल पर नहीं उतरा है । " उनकी बात में सत्यता है ! इससे कोई इंकार नहीं कर सकता ! मोदी सरकार को इस विफलता पर भी गंभीरता से सोचना , विचारना और कोई ठोस कदम उठाने की सख्त जरूरत है ! धारा 370 हटाने की दूसरी वर्षगांठ के जश्न मनाने के साथ - साथ इस गंभीर समस्या पर भी ठोस निर्णय लेने और उस पर जल्द क्रियान्वयन करने की भी सख्त जरूरत है !
               धारा 370 हटाने की दूसरी वर्षगांठ पर जब जश्न मनाया जा रहा था , उस समय कश्मीर के नेता श्री उमर अब्दुल्ला ने केंद्र सरकार से यह प्रश्न पूछा है कि कश्मीर से धारा 370 हटाने के दो साल बाद भी कितने कश्मीरी पंडित कश्मीर लौटे हैं ? उनका यह कहना है कि अगर अब तक बड़ी तादाद में वे कश्मीरी पंडित , जिन्हें आतंकियों ने हिंसा का सहारा लेकर अपने घर बार छोड़कर राज्य से बाहर जाने के लिए मजबूर किया , वापस नहीं लौटे तो इसका मतलब विशेष राज्य का दर्जा खत्म करना गलत था । अब्दुल्ला का यह मानना है कि लिहाजा इसे फिर से बहाल किया जाना  चाहिए । देशवासी उसका उत्तर तो यही देंगे कि वापस 270 बहाल नहीं किया जाना जाहिए ! अब कभी भी ऐसा नहीं होना चाहिए ! किन्तु मोदी सरकार को कश्मीरी पंडितों के संगठन और अब्दुल्ला द्वारा उठाये गए प्रश्न पर गंभीरता से चिंतन ,  मनन कर कश्मीरी पंडितों हक में शीघ्र निर्णय लेना ही होगा ! यह प्रश्न कुछ हजारों को नहीं , बल्कि करीब पाँच लाख कश्मीरी पंडितों के अपनी माटी से जबरन दूर कर दिए गए इंसानों के जीवन - मरण का प्रश्न है ! 
               यह भी सही है कि जम्मू कश्मीर से धारा 370 और 35 ए को निष्क्रिय किये जाने तथा राज्य को दो केंद्र शासित राज्यों जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख में बांट देने के दो साल बाद 9 महत्वपूर्ण बदलाव भी हुए हैं ! पहला खास बदलाव तो यह हुआ है कि पत्थरबाजी की घटनाओं में करीब 85 प्रतिशत की कमी आई है । वर्ष 2019 में पत्थरबाजी की 1990 घटनाएँ हुई थी । वर्ष 2020 में ऐसी केवल 250 घटनाएँ हुई है । वर्ष 2021 में अभी तक मात्र 66 घटनाएँ ही हुई है । इतना ही नहीं 70 से ज्यादा अलगाववादियों की आर्थिक ताकत तोड़ देने में भी सफलता प्राप्त की गई है । दूसरा बदलाव यह है कि अब स्थानीय निवासी का दर्जा उसे भी मिलेगा , जिसने जम्मू कश्मीर की लड़की से शादी की हो । तीसरा , अब घाटी के बाहर के लोग भी जम्मू कश्मीर में गैर कृषि भूमि खरीद सकेंगे । चौथा , अब सभी सरकारी कार्यालयों में राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाने लगा है । पहले केवल राज्य का ही झंडा फहराया जाता था । पाँचवाँ , अब पत्थरबाजी और दूसरी राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में शामिल लोगों का पासपोर्ट जारी नहीं किया जाएगा । और सरकारी नौकरियों में भी ऐसे लोग नहीं लिए जाएंगे । छठा , वर्षों बाद राज्य में पंचायतों और बीडीसी के शांतिपूर्ण चुनाव सम्पन्न हुए हैं । इससे सत्ता का विकेंद्रीकरण संभव हो सका है । सातवाँ , राज्य के जो दल एक दूसरे के विरुद्ध चुनाव लड़ते थे , ऐसे 5 दलों ने मिलकर गुपकार संगठन बनाया है जो चुनाव लड़ रहे हैं । इसमें पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस पार्टी भी शामिल है , जिन्होंने मिलकर चुनाव लड़ा । आठवाँ , राज्य में 5 दिसंबर को शेख अब्दुल्ला का जन्म दिन सार्वजनिक अवकाश के रूप में मनाया जाता था । इससे अलगाववादियों को बल मिलता था । इसे अब बंद कर दिया गया है । और नौंवा बदलाव यह हुआ है कि अब जम्मू कश्मीर विधानसभा क्षेत्र का परिसीमन होने जा रहा है । इससे कश्मीर घाटी में आने वाली 7 सीटें जम्मू में चले जाने की संभावना है । इस कारण राज्य की राजनीति पर व्यापक असर पड़ेगा । 
               धारा 370 और 35 ए को निष्क्रिय करने की दूसरी वर्षगांठ पर जश्न मनाने के साथ - साथ मोदी सरकार को राज्य से जबरन बाहर कर दिए गए करीब पाँच लाख कश्मीरी पंडितों की घर वापसी के लिए जल्दी से जल्दी ठोस कदम उठाकर उन्हें वापस अपनी माटी में बसने का मौका दिया जाना चाहिए ! यदि अब इस कार्य में और देरी होगी तो यह भाजपा , मोदी सरकार और देश के लिए ठीक नहीं होगा ! ऐसा नहीं हो कि बहुत ज्यादा देरी होने पर सबको बाद में  पछताना पड़े ! ! !
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