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सत्ता छिनने के डर से नहीं की जाती जातिवार जनगणना !


  डॉ. चन्दर सोनाने

               हमारे देश में सत्ता किसी भी राजनीतिक दल के हाथ में रही हो , किसी ने भी जातिवार जनगणना कराने की हिम्मत कभी भी नहीं की ! प्रत्येक दल सत्ता पर जमे रहने के लिए इस महत्वपूर्ण निर्णय लेने से बचता ही रहा । विशेषकर पिछले तीन दशक से देश में जाति के नाम पर पाखंड ही चल रहा है । वर्ष 1990 में वीपी सिंह की सरकार ने देश में पहली बार मंडल आयोग की सिफारिशें लागू कर केंद्र सरकार की नौकरियों में पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण लागू कर तहलका मचा दिया था। उसके दो साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी इस फैसले और केंद्र सरकार की नीति पर अपनी मोहर लगा दी थी । पिछले तीन दशक से भी ज्यादा समय से केंद्र सरकार की नौकरियों में और पिछले 15 सालों से केंद्रीय विश्वविद्यालयों और अन्य उच्च शिक्षा संस्थानों में यह आरक्षण लागू है । इस सब के बावजूद आज तक कोई भी सरकार यह बताने को तैयार नहीं है कि देश में पिछड़े वर्ग की जातियों की संख्या कितनी है ? देश की बाकी जातियों और वर्गों की तुलना में पिछड़ी जातियों की शैक्षणिक और आर्थिक स्थिति कैसी है ? 
               यदि हर 10 साल में होने वाली जनगणना में पिछड़ी जातियों की गणना करने को भी शामिल कर लिया जाए तो पिछड़ी जातियों की भी सही - सही संख्या हमें मिल सकती है । वर्ष 2021 में  फरवरी माह से ही यह जनगणना शुरू होनी थी , किन्तु कोरोना के कारण टल गई। अब 2022 के पहले होने की संम्भावना भी नहीं है । जनगणना में देश के प्रत्येक घर और परिवार के हर एक व्यक्ति की गणना के साथ - साथ उसके बारे में समस्त सूचना और जानकारियाँ भी इकट्ठा की जाती है । हर एक की उम्र , शिक्षा , व्यवसाय आदि दर्ज की जाती है । हर परिवार की भाषा , धर्म , संपत्ति आदि  जानकारी भी संकलित की जाती है । इस जनगणना में हर परिवार की जाति अलग से नोट नहीं की जाती । बस जाति वर्ग पूछते हैं । अर्थात जाति पूछकर उसे अनुसूचित जाति , जनजाति या सामान्य वर्ग के कॉलम में दर्ज करते हैं । केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के परिवार में ही उनकी जाति का नाम भी दर्ज करते हैं । लेकिन सामान्य वर्ग में जाति का नाम नहीं लिखा जाता । सरकार को पिछड़ी जातियों के बारे में सारी जानकारी संकलित करने के लिए करना बस यह है कि जैसे जनगणना में अनुसूचित जाति , जनजाति के लोगों की जानकारी संकलित की जाती है , ठीक उसी प्रकार पिछड़े वर्गों की जाति आदि के बारे में भी पूरी जानकरियाँ उनसे ले ली जाए ! इससे पिछड़े वर्गों की भी संख्या ,  शैक्षणिक , आर्थिक , सामाजिक  स्थिति आदि की महत्वपूर्ण जानकारी हासिल हो सकती है । 
               यह बात आज विश्व के सब देश मानते हैं कि सही सांख्यिकी आँकड़ों के ही आधार पर देश के बहुमुखी विकास की सही योजनाएँ बनाई जाती है । पिछड़े वर्गों की सही सांख्यिकी आँकड़ें उपलब्ध नहीं होने के कारण अभी तक सुनियोजित तरीके से उनके विकास की योजना भी नहीं बनाई जा सकी है। अनुमान के आधार पर यह काम नहीं हो सकते । वर्ष 2001 की जनगणना के पहले भी उस समय के सेंसस के रजिस्ट्रार जनरल ने भी पिछड़े वर्गों की जनगणना करने की अनुसंशा की थी । आरक्षण के मामले की सुनवाई कर रहे जजों ने भी ऐसे आंकड़ों की जरूरत रेखांकित की थी । वर्ष 2011 की जनगणना से पहले तो लोकसभा ने भी सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर पिछड़े वर्ग सहित हर जाति की जातिवार जनगणना का समर्थन किया था । वर्ष 2018 में तो तत्कालीन गृह मंत्री श्री राजनाथसिंह ने औपचारिक घोषणा भी कर दी थी कि वर्ष 2021 की जनगणना में पिछड़े वर्ग की भी गिनती होगी । संसद की सामाजिक न्याय समिति भी इसकी संस्तुति कर चुकी है । राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने भी केंद्र को इसकी सिफारिश भेज दी है । देश के अनेक राज्यों ने भी इसका प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेज दिया है । 
              इस सब के बावजूद सत्ता के कान पर जूं नहीं रेंगती ! हर बार जनगणना के पहले हर सरकार यह प्रस्ताव ठुकरा देती है। प्रधानमंत्री श्री अटलबिहारी वाजपेयी की सरकार ने जहाँ रजिस्ट्रार जनरल के प्रस्ताव को ठुकराया , वहीं श्री मनमोहन सिंह की सरकार ने तो संसद के सर्वसम्मत प्रस्ताव को ही ठोकर मार दी । और इस मोदी सरकार ने तो अपनी ही घोषणा से मुँह मोड़ लिया ! इस सरकार ने हाल ही में संसद में उत्तर देते हुए यह फिर स्पष्ट किया कि आने वाली जनगणना में पिछड़े वर्गों और सामान्य वर्ग की जातिवार जनगणना नहीं की जाएगी ! 
              हाल ही में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के निर्देश पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने घोषणा की है कि राज्य सरकारों के मेडिकल कॉलेजों में भी सेंट्रल कोटे के तहत रिजर्व 15 प्रतिशत सीटों पर ओबीसी को 27 प्रतिशत और सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर विद्यार्थियों को 10 प्रतिशत आरक्षण का लाभ इसी वर्ष से मिलेगा । केंद्र सरकार के मेडिकल कालेजों में यह व्यवस्था पहले से ही लागू है । उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद वर्ष 2007 से  अनुसूचित जाति को 15 प्रतिशत और जनजाति को 7.5 प्रतिशत आरक्षण मिल रहा है ,  किन्तु पिछड़े वर्ग और सामान्य वर्ग के गरीबों को यह लाभ नहीं मिल रहा था । मोदी सरकार ने यह कर दिखाया है । इसलिए उन्हें बधाई दी जा सकती है ! किन्तु जैसे ही पिछड़े वर्ग के गरीबों को आरक्षण देने की घोषणा हुई , उसका विरोध भी शुरू हो गया है । और इस विरोध की , जिन्होंने अगुवाई की , उनका नाम देखकर दुखद आश्चर्य भी हुआ ! भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व  राज्यपाल श्री कप्तान सिंह सोलंकी ने हाल ही में दो ट्वीट कर मोदी सरकार द्वारा पिछड़े और सामान्य वर्ग को मेडिकल में दिए गए आरक्षण पर सवाल खड़े कर दिए हैं ! उन्होंने इस मुद्दे पर लोकसभा और राज्यसभा में चर्चा नहीं कराने को लोकतंत्र की रुग्णता निरूपित भी किया है ! यह तो शुरुआत है ! कोई भी राजनैतिक दल वोट और जातिगत राजनीति के कारण इसका सीधा विरोध करने का साहस नहीं कर सकेगा , किन्तु वे परोक्ष रूप से सामान्य वर्ग के ही लोगों को आगे करके यह काम जरूर करेंगे ! श्री कप्तान सिंह सोलंकी के माध्यम से इसकी शुरुआत हो भी गई है !
              हमारे देश की आजादी के समय राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी ने देश के कर्णधारों को एक मंत्र दिया था ।  उन्होंने  कहा  था " देश के लिए किए गए हर काम की कसौटी यह होनी चाहिए कि उसके द्वारा देश के सबसे गरीब और पिछड़े आदमी की आँखों के आँसू पोंछे जा सकते हैं या नहीं।" उनका यह मानना था कि जब ऐसा दिन आएगा , तभी यह माना जाएगा कि हमारा राष्ट्र , सुखी राष्ट्र हो गया है । गांधी जी के इस सपने को साकार करने के लिए यह जरूरी है कि देश के हर वर्ग से गरीबों की पहचान की जाए , चाहे वह अनुसूचित जाति का हो या जनजाति का या हो वह पिछड़े वर्ग का या सामान्य वर्ग का गरीब , उसके आँसू पोंछने और उसके सर्वांगीण विकास के लिए हर तरह से मदद की जानी आवश्यक है । आरक्षण भी एक तरीका हो सकता है । और जिस गरीब की मदद करना है , वह चाहे अनुसूचित जाति का हो या जनजाति का या हो वह पिछड़े वर्ग से या वह हो चाहे सामान्य वर्ग से , उसकी मदद केंद्र सरकार करना चाहे या राज्य सरकार , इसके लिए जरूरी है कि उसके बारे में , उसकी वास्तविक संख्या के बारे में , उसकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति की सही जानकारी होना बहुत जरूरी है ! और यह सब जानकारियाँ हम पा सकते , केवल और सिर्फ जनगणना से ही ! इसलिए आगामी जनगणना जातिवार होना ही चाहिए ! और इसके लिए केंद्र सरकार को , अपने पूर्व में लिए गए निर्णय पर पुनर्विचार कर , आगामी जनगणना जातिवार ही कराना चाहिए । जरूर कराना चाहिए !!!
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