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वल्लभ भवन की कुछ पुरानी यादें।


रविवारीय गपशप
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कुछ दिनों से मैं पाँचवीं मंज़िल पर बतौर ओ एस डी बैठ रहा हूँ | वल्लभ भवन (मंत्रालय) में मेरा आने का ये दूसरा मौक़ा है | इस बार भोपाल और वल्लभ भवन के बारे में कुछ पुराने अनुभवों को याद करते हैं |
प्रशासनिक सेवाओं में आने वाले व्यक्तियों का ये आखिरी स्थान होता है , सो सभी को कभी न कभी यहाँ आना ही पड़ता है | प्रदेश के नीति निर्धारण समेत अनेक महत्वपूर्ण गतिविधियों का केंद्र होने से यहाँ बड़ी गंभीरता से काम करना होता है , पर हमारी गपशप तो हलके फुलकी बातों की होती है सो आज वैसी ही कुछ यादें |
कई बरस पहले की बात है , तब मैं ग्वालियर में परिवहन मुख्यालय पर उपायुक्त प्रशासन हुआ करता था , और किसी शासकीय कार्य से वल्लभ भवन आया था | प्रमुख सचिव श्री एम के रॉय लंच से लौटे नहीं थे सो उनके पी ए प्रजापति के कक्ष में बैठे प्रतीक्षा करते करते पी ए महोदय से बातें कर रहे थे | मैंने बातों बातों में प्रजापति से यूँ ही पूछ लिया कि कभी वल्लभ भवन में पोस्टिंग हो जाये और डिप्टी सेक्रेटरी बनना हो तो कौन सा विभाग अच्छा रहेगा ? भिंड के रहने वाले प्रजापति जी थोड़ी देर तक तो सोचते रहे फिर धीरे से बोले "साहब मेरे हिसाब से तो आप में जब तक जरा सी भी ताकत है आप यहाँ पोस्टिंग मत कराना और हो जाये सो फिर सब बराबरई है" |
ख़ैर सीख का क्या , वल्लभ भवन आना तो अवश्यम्भावी है , सो पिछले दौर में वल्लभ भवन में बतौर अपर सचिव “सामान्य प्रशासन विभाग” में पदस्थ हुआ | कुर्सी पर बैठते ही जो पहला काम आया , वो ये था कि मेरे साथी आशीष सक्सेना जो तब राजधानी परियोजना के उप प्रशासक और उप सचिव आवास व पर्यावरण थे , मुझे ढूंढते हुए आये और कहा कि वल्लभ भवन के नवीन निर्माणाधीन भवन के बीच जी ए डी का पुराना पुस्तक गोडाउन आ रहा है , इसे अस्थाई रूप से शिफ्ट करना होगा | मैंने कहा चलिए देख लेते हैं , हम सम्मिलित रूप से निकले और थोड़ी ही देर में ही गोडाउन और उसे अस्थाई रूप से स्थानांतरित करने वाले स्थल का चयन-अवलोकन कर लिया | हम लौटने लगे तो मैंने सक्सेना जी से कहा कि ठीक है फिर ये तय हो गया है तो अब बस इसकी प्रोसिडिंग लिख लो | हम दोनों दस्तखत कर देते हैं , और जल्द इस काम को आरम्भ कर दो | आशीष बोले अरे सर ऐसा थोड़े होता है यहाँ | अभी तो मैं नोट लिखूंगा , फिर उसे अपने विभाग के प्रमुख सचिव को दूंगा फिर वे आपके प्रमुख सचिव को देंगे फिर आप के पास आएगा फिर आप एफर्मेशन नोट दोगे , फिर दोनों विभाग के प्रमुख की सहमति की एक संयुक्त बैठक होगी और तब ये फाइनल होगा | मैंने हैरानी से उन्हें देखा और सोचा मैदानी इलाक़ों में तो हम फटाफट जो समझ आए निर्णय ले लेते हैं और उसे क्रियान्वित भी कर देते हैं पर यहाँ काम बड़े धीरज से ही करना होगा |
ऐसी ही एक और पुरानी मज़ेदार घटना है तब मैं नरसिंहपुर जिले से स्थानांतरित हो कर सीहोर में पदस्थ हो चुका था | एक बार किसी कार्य से भोपाल आने का मौका मिला तो मैंने सोचा कि नरसिंहपुर के तत्कालीन कलेक्टर श्री मंडलेकर सर से मुलाकात कर ली जाये | वल्लभ भवन पहुंच कर मंडलेकर साब के कमरे में पहुंचा तो संयोग से वे व्यस्त नहीं थे | मंडलेकर जी मुझे देख कर खुश हुए , हालचाल जाने , इसी बीच कोई उनके एक और परिचित सज्जन आ गए | मंडलेकर सर ने उन्हें भी प्रेमपूर्वक बिठाया और हालचाल पूछे | उन सज्जन ने पानी वानी पीने के बाद मंडलेकर साहब से पूछा "साहब आपके पहले जो सिंघल साब कलेक्टर थे वे आजकल कहाँ हैं ?" मंडलेकर जी ने कहा "यहीं हैं वल्लभ भवन में" सज्जन ने फिर पूछा " और उनके पहले जो फलां मैडम थीं वे कहा हैं ? मंडलेकर जी फिर कहा वे भी यहीं हैं , सज्जन ने फिर अपनी जिज्ञासा को आगे बढ़ाया , बोले और उसके पहले जो फलां साब थे वे कहाँ हैं ? मंडलेकर जी ने बड़ी गंभीरता से कहा वे भी यहीं है और मध्यप्रदेश में जितने भी जिले में जो भी कलेक्टर थे वे सब यही हैं |

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