मुस्लिमों पर आबादी बढ़ाने का ठीकड़ा फोड़ना किया जाए बंद !
डॉ. चन्दर सोनाने
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे - 5 की हाल ही में जारी ताजा रिपोर्ट काफी चौंकाने वाली और राहत देने वाली आई है । इस रिपोर्ट के अनुसार देश के पाँच राज्यों में प्रजनन दर , प्रतिस्थापन दर के बराबर या उससे भी ज्यादा है । इसके साथ ही देश के 20 प्रतिशत से ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले पाँच राज्यों में भी प्रजनन दर गिर कर प्रतिस्थापन दर 2.1 के नीचे आ गई है । प्रतिस्थापन दर वह दर है , जब आबादी नहीं बढ़ती है । यानी जितने लोगों की मृत्यु होती है , लगभग उतने पैदा होते हैं । इस सरकारी सर्वे की रिपोर्ट ने इस धारना को अब ध्वस्त कर दिया है , जो काफी समय से कहती आ रही थी कि , देश की आबादी बढ़ाने में सबसे ज्यादा योगदान मुस्लिमों का है !
इन दिनों जनसंख्या नियंत्रण कानून की मांग तेजी से उठ रही है । राज्य सभा में हाल ही में भाजपा सांसद राकेश सिन्हा जनसंख्या नियंत्रण पर निजी बिल लेकर आये हैं । और हाल ही में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार अपने राज्य में विधानसभा चुनाव के पूर्व जनसंख्या नियंत्रण नीति लागू करने जा रही है । इसमें रियायतें और सख्ती दोनों है । देश भर में इस नीति की चर्चा , विरोध और समर्थन भी शुरू हो गया है । देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी अपने प्रधानमंत्री के कार्यकाल की शुरुआत से हाल तक के अपने सार्वजनिक भाषणों में देश की विशाल आबादी को विकास के लिए संभावना बताते आए हैं , वहीं उनकी ही पार्टी के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बोझ बताते हैं ! इन दोनों के अपने - अपने निहितार्थ हैं ! इसी बीच नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे - 5 ने माहौल गर्मा दिया है । इस रिपोर्ट के अनुसार देश के पाँच मुस्लिम बहुल राज्यों में से लक्षद्वीप में 96 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है । यहाँ प्रजनन दर केवल 1.4 ही है । देश के अत्यंत संवेदनशील राज्य जम्मू कश्मीर में मुस्लिम आबादी 68 प्रतिशत है । इस राज्य की प्रजनन दर भी केवल 1.4 ही है । असम में 34 प्रतिशत आबादी मुस्लिमों की है । इस राज्य में प्रजनन दर 1.7 है । पश्चिम बंगाल में मुस्लिम आबादी 27 प्रतिशत है । यहाँ प्रजनन दर 1.6 प्रतिशत है । और केरल राज्य में 26 प्रतिशत आबादी मुस्लिमों की है । इस राज्य की प्रजनन दर 1.8 प्रतिशत है । उल्लेखनीय यह भी है कि प्रजनन दर का राष्ट्रीय औसत 1.8 है । उक्त सभी पाँचों मुस्लिम बहुल आबादी वाले राज्यों की प्रजनन दर राष्ट्रीय औसत से भी कम है !
पॉपुलेशन फांउण्डेशन ऑफ इंडिया के ज्वाइंट डायरेक्टर आलोक बाजपेयी के अनुसार प्रजनन दर का सीधा संबंध धर्म से नहीं , बल्कि शिक्षा , सामाजिक - आर्थिक स्थिति , स्वास्थ्य सुविधा आदि से है । बाजपेयी इस ताजा सर्वे रिपोर्ट को उत्साहजनक बताते हुए कहते हैं कि यदि दो बच्चों की नीति आई तो बेटे की चाह में लिंगानुपात बढ़ सकता है । चीन और जापान इसके उदाहरण हैं । बुजुर्ग आबादी बढ़ने पर चीन को एक बच्चे की नीति को बदलने पर मजबूर होना पड़ा । प्रतिस्थापन दर ज्यादा नीचे जाना भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए घातक है । जाहिर है प्रजनन दर कम होने से जनसंख्या वृद्धि दर भी कम होती है ।
ताजा सर्वे रिपोर्ट के अनुसार देश के 9 राज्यों में फर्टिलिटी रेट 2 से अधिक है । लेकिन आने वाले 15 सालों में इन 9 राज्यों में से केवल बिहार को छोड़कर सभी राज्यों में 2 से नीचे आ जायेगी । इनमें से बिहार में देश में सबसे ज्यादा 3.23 फर्टिलिटी रेट है । यहाँ 2.38 रेट होने की संभावना है । उत्तर प्रदेश में अभी यह रेट 2.76 है जो 1.85 हो जाएगी । मध्यप्रदेश में अभी रेट 2.64 है जो 1.96 होने की संभावना है । राजस्थान में अभी रेट 2.51 है जो 1.87 हो जाएगी । इसी प्रकार झारखंड में अभी यह रेट 2.46 है जो 1.87 हो जाने की संभावना है । इन 5 राज्यों के अतिरिक्त 4 और राज्यों हरियाणा , असम , गुजरात और छत्तीसगढ़ में भी अभी फर्टिलिटी रेट 2 से अधिक है , लेकिन 15 साल बाद 2036 तक इन सभी राज्यों में भी यह रेट 2 से नीचे हो जाने की संभावना है । नेशनल फैमिली सर्वे के अनुसार देश के 13 बड़े राज्यों में वर्तमान में फर्टिलिटी रेट 2 से कम है । इसलिए इनमें आबादी का वर्तमान स्तर 15 साल बाद और घट सकता है। इसमें दक्षिण के सभी राज्य शामिल है । ये 13 राज्य है , जम्मू कश्मीर , पंजाब , आंध्र प्रदेश , तमिलनाडु , तेलंगाना , हिमाचल , उत्तराखंड , दिल्ली , बंगाल , ओडिसा , महाराष्ट्र , केरल और कर्नाटक । इन सभी राज्यों में भी वर्तमान में फर्टिलिटी रेट 2 से कम है । उक्त समस्त आँकड़े भविष्य के लिए शुभ संकेत भी है ।
देश में लगभग आजादी के समय से ही हिंदूवादी संगठन , पहले जनसंघ और बाद में भाजपा आबादी बढ़ाने का ठीकड़ा मुस्लिमों पर फोड़ते आये हैं ! नेशनल फैमिली सर्वे के हाल ही में जारी ताजा आँकड़ें स्वतः यह सिद्ध करते हैं कि अब देश में शिक्षा , सामाजिक और आर्थिक स्थिति , स्वास्थ्य सुविधाओं आदि ने देश के सभी लोगों , चाहे वे हिन्दू हो , या मुस्लिम या कोई और , सबमें बढ़ती आबादी के दुष्परिणाम को अब अच्छी तरह समझ लिया है । और उन्होंने तय कर लिया है उन्हें अपने परिवार , समाज , प्रदेश और देश के लिए अपना परिवार कितना छोटा या बड़ा रखना है ! अब परिवार नियोजन के लिए सख्ती ठीक नहीं है ! आपातकाल में परिवार नियोजन के संबंध में की गई सख्ती के दुष्परिणाम भी हम सबके सामने है । अब समय की मांग है कि आबादी बढ़ाने का ठीकड़ा मुस्लिमों पर फोड़ना बंद कर देना चाहिए !
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