संघ प्रमुख भागवत जी को अपने विचार नीचे तक पहुँचाने की है जरूरत !
डॉ. चन्दर सोनाने
हाल ही में आरएसएस प्रमुख श्री मोहन भागवत ने गाजियाबाद में मुस्लिम राष्ट्रीय मंच द्वारा आयोजित डॉ ख्वाजा इफ्तेखार अहमद की मुस्लिम समाज एवं संघ के बीच समन्वय विषय पर लिखी पुस्तक "वैचारिक समन्वय" के विमोचन समारोह में यह कह कर देश भर में तहलका मचा दिया कि " सभी भारतीय हिन्दू - मुस्लिम का डीएनए एक ही है । " वे यहीं नहीं रुके , बल्कि आगे बढ़ कर उन्होंने यह भी कह दिया कि " जो यह कहता है कि मुस्लिमों को भारत में नहीं रहना चाहिए , वह हिन्दू नहीं है । "
स्वाभाविक था कि संघ प्रमुख द्वारा सार्वजनिक मंच पर कही बात से देश भर में भूचाल आ जाए ! और यही हुआ भी ! उन्होंने देश भर में पिछले कुछ वर्षों से भीड़ द्वारा पीट - पीट कर हत्या कर देने की लिंचिंग की घटनाओं का भी उल्लेख करते हुए ऐसे लोगों पर निशाना साधते हुए कहा " वे हिंदुत्व के विरोधी है । " संघ प्रमुख ने यह भी कहा कि "देश में एकता के बगैर विकास संभव नहीं है । एकता का आधार राष्ट्रीयता और पुरखों का गौरव होना चाहिए । हिन्दू - मुस्लिम झगड़ों का एकमात्र हल बातचीत है । मतभेद नहीं । "
देश की आजादी के समय से ही मुस्लिमों और पाकिस्तान के निर्माण का घोर विरोधी रहे आरएसएस की छवि देश भर में मुस्लिम विरोधी की रही है । और इस छवि का कभी आरएसएस ने विरोध भी नहीं किया , बल्कि जब भी जरूरत पड़ी तो उसने खुलकर अपनी यही बात बार - बार अपनी करनी और कथनी से दोहराई ही है ! और संघ की राजनीति की शुरुआत की शाखा जनसंघ और बाद में भाजपा ने भी चुनावों में इसे जम कर भुनाया भी है ! ऐसी पृष्ठभूमि वाले संगठन के प्रमुख का अचानक एक सार्वजनिक कार्यक्रम में खुल कर उक्त बातें बोलना सबके लिए आश्चर्य की बात थी ! सामने तो सबने संघ प्रमुख की नई विचारधारा का स्वागत किया , किन्तु राजनैतिक क्षेत्रों में सब अपने - अपने , अलग - अलग अर्थ निकाल रहे हैं। और यह स्वाभाविक भी है ।
संघ प्रमुख श्री मोहन भागवत यदि सही मायने में यही चाहते हैं , जो वे कह रहे हैं , तो उनकी बातों का हार्दिक स्वागत किया जाना चाहिए । और यदि उन्हें मुस्लिमों के एक समारोह में केवल छुपे राजनीतिक हित साधने के उद्देश्य से ही यह सब कहना और करना है , तो फिर हमें इस बारे में कुछ भी नहीं कहना है ! और यदि वे वास्तव में संघ की नई रीति - नीति और आधुनिक विचारधारा को सही मायने में नीचे तक फैलाना चाहते हैं , तो उन्हें अपनी इस बात को देश भर में फैले कार्यकर्ताओं तक सीधे पहुँचानी होगी ! और वह भी अपने परंपरागत माध्यम से ! क्योंकि मैदान में तो वे ही रहते हैं। और यह बात सभी जानतें हैं कि एक संघ का कार्यकर्ता वही करता है , जो उसे कहा और बोला जाता है ! वह पूर्ण समर्पण भाव से वह सब करता है , जो उसे कहा जाता है ! वह सवाल नहीं करता ! सही गलत पर प्रश्न नहीं उठाता , बल्कि ऊपर के आदेशों का सख्ती से पालन करता है ! और यदि यह सब वास्तव में फलीभूत हुआ तो संघ के इतिहास में यह एक क्रांतिकारी कदम होगा । इसके बड़े दूरगामी परिणाम भी होंगें !
किन्तु क्या सच में ऐसा होगा ? संघ कट्टर हिंदूवादी छवि से इतनी आसानी से बाहर निकल पायेगा ? आज देश में 2014 से भाजपा की सरकार है । प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अपने बलबूते केंद्र में दूसरी बार भाजपा की सरकार बनाई और लगातार छः साल से ज्यादा समय तक कार्य करने के बाद प्रधानमंत्री के रूप में अपना दूसरा कार्यकाल भी पूरा करने जा रहे हैं , तो वह अपनी कट्टर हिंदूवादी छवि के कारण ही देश में राज कर रहे हैं ! आज वे ऐसी स्थिति में पहुँच गए हैं कि वे जो चाहते हैं , वही करते हैं ! उन पर किसी का कोई नियंत्रण नहीं है ! संगठन तो पहले से उनकी जेब में था ही , वे सही मायने में संघ से भी ऊपर हो गए हैं ! आज हालात यह है कि उनका कोई कुछ भी बिगाड़ नहीं सकता ! देश में भाजपा के पास उनका दूर - दूर तक कोई विकल्प भी नहीं है ! प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने सफल मीडिया मैनेजमेंट के द्वारा आज देश भर में अपनी एक विशिष्ट छवि बना ली है । और वह छवि है , " मोदी है तो मुमकिन है ! " देशवासी विशेषकर हिंदूवादी मानसिकता वाले लोगों का दृढ़ विश्वास है मोदी पर ! वे मोदी पर अंध विश्वास करते हैं ! इतना ही नहीं वे उनके अंध भक्त भी बनने के लिए खुशी - खुशी तैयार रहते हैं !
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा बड़ी मेहनत और पूरी तैयारी के बाद बनाए गए उक्त प्रभा मंडल के बाद संघ प्रमुख श्री मोहन भागवत द्वारा गाजियाबाद में दिया गया उद्बोधन क्या मायने रखता है ? यह सब अभी भविष्य के गर्भ में छुपा है ! अभी कुछ भी निष्कर्ष निकालना जल्दीबाजी होगी !
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