विश्व के श्रेष्ठ 150 विश्वविद्यालयों में भारत का एक भी नहीं !
डॉ. चन्दर सोनाने
हाल ही में दुनिया के उच्च शिक्षा संस्थानों की जारी क्यूएस रैंकिंग में एक बार फिर भारत पिछड़ गया है ! विश्वविद्यालयों की रैंकिंग में दुनिया के 100 क्या 150 में भी भारत का एक भी संस्थान स्थान प्राप्त नहीं कर सका है ! यह दुखद है , किंतु इससे भी बढ़ कर दुखद बात यह है कि केंद्र सरकार के मानव संसाधन मंत्रालय या विभाग पर , जिसके अंतर्गत देशभर के विश्वविद्यालय आते हैं , इसका कोई भी असर दिखाई नहीं दे रहा है !
दुनिया में कौन सा विश्विद्यालय अच्छा है , इसके लिए क्यूएस और टाइम की रैंकिंग बहुत मायने रखती है । पिछले अनेक सालों से एमआईटी , ऑक्सफोर्ड, स्टेनफोर्ड , हार्वर्ड , कैम्ब्रिज और कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी ने अपना - अपना आधिपत्य जमा रखा है । विश्व के शीर्ष 500 विश्वविद्यालयों की सूची में भी भारत के केवल 7 आईआईटी और बैंगलोर का इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस ही स्थान पा सके हैं । हमेशा की तरह इस बार भी यह सवाल उठता है कि हमारे देश के उच्च शिक्षा संस्थान इतने पीछे क्यों है ? वर्ल्ड रिसर्चर्स एसोसिएशंस के फाउंडर डायरेक्टर डॉ शंकरलाल गर्ग ने भारतीय शिक्षा संस्थानों के पीछे रहने के मुख्य रूप से ये तीन कारण बताए हैं - क्वालिटी रिसर्च न के बराबर , शिक्षा - विद्यार्थी अनुपात बहुत बदतर और संस्थान प्रमुखों के चयन में राजनीति - भ्रष्टाचार । शिक्षाविद डॉ शंकरलाल गर्ग ने भारत के संस्थानों की उत्कृष्टता के लिए ये 5 काम करने पर भी जोर दिया है - शोध की गुणवत्ता पर ध्यान , सरकारी संसाधन बढ़ाए जाएँ , पब्लिक - प्राइवेट पार्टनरशिप को भी बढ़ावा दिए जाने की जरूरत , चौबीसों घंटे खुलें हमारे विश्विद्यालय और बोर्ड करें कुलपतियों का चयन ! केंद्र सरकार को इन महत्वपूर्ण सुझावों पर ध्यान देने की सख्त आवश्यकता है !
दुनिया में उच्च शिक्षा संस्थानों की श्रेष्ठता को मापने के लिए क्यूएस रैंकिंग सबसे प्रतिष्ठित रैंकिंग है । इसमें दुनिया के 1000 शिक्षा संस्थाओं का आकलन किया जाता है । इनमें टॉप 100 , टॉप 500 और टॉप 1000 आदि रैंकिंग की जाती है । हाल ही में जारी इसकी रैंकिंग में टॉप 100 संस्थानों में सर्वाधिक 29 विश्वविद्यालय अमेरिका के हैं। यूके के 17 , ऑस्ट्रेलिया के 11 , दक्षिण कोरिया के 8 और चीन के 7 विश्विद्यालय है । और दुर्भाग्य से भारत का एक भी विश्विद्यालय नहीं है । भारत में यूजीसी के अंतर्गत 988 विश्वविद्यालय हैं । इसमें से केंद्र सरकार के अंतर्गत 54 , राज्यों के 429 , डीम्ड के 125 और निजी विश्विद्यालय 380 है । इनमें से एक भी टॉप 500 में शामिल नहीं है । टॉप 500 में जो 7 आईआईटी और बैंगलोर का इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस शामिल है , ये यूजीसी के अंतर्गत नहीं आते हैं । यहाँ यह बात बहुत महत्वपूर्ण है कि रैंकिंग का मुख्य आधार शोध ही होता है ।
भारत में आजादी के बाद से ही शोध पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया । स्कूली तथा उच्च शिक्षा प्रयोगशाला बना दी गई ! कोई भी सरकार इस दिशा में दीर्घकालिक योजना पर दृढ़ता से काम नहीं कर पाई । कॉलेजों और विश्विद्यालयों में शिक्षकों के सभी पदों पर कभी भी स्थायी नियुक्तियाँ नहीं की गई ! अनेक वर्षों से अनेक पद खाली पड़े रहते हैं । केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार इन खाली पदों की पूर्ति में उनकी कभी रुचि नहीं रही और न ही प्राथमिकता ही रही । आधुनिक युग के अनरूप मूलभूत संसाधनों और उपकरणों की हमेशा कमी रही । बहुत ही कम विद्यार्थियों की रुचि और प्राथमिकता शिक्षक बनने की रहती है । किसी भी विषय में स्नातकोत्तर परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद नौकरी नहीं मिलने पर छात्र - छात्रा पीएचडी करने लग जाता है । और नौकरी मिलते ही वह पीएचडी बीच में ही छोड़ कर नौकरी करने लग जाता है । हमारे देश में पीएचडी करने के बाद भी नौकरी की कोई गारंटी नहीं होने पर किसी की इस ओर कोई रुचि भी नहीं रही !
भारत में शोध के प्रति अरुचि के लिए मुख्य रूप से केंद्र और राज्य सरकारें ही दोषी है ! आज पीएचडी करने पर विद्यार्थी को माह में करीब 35 हजार रु की ही शोध छात्रवृति मिलती है ! यह बहुत कम है । इसे कम से कम इतनी राशि मिलनी चाहिए कि वह कोई भी नौकरी नहीं तलाशे बल्कि अपना सारा ध्यान उच्च गुणवत्ता के शोध पर ही केंद्रित करें । इसके किये उसे सहायक प्राध्यापक के वेतन के समान करीब 70 से 75 हजार रु की शोध छात्रवृत्ति मिलनी ही चाहिए । विश्विद्यालय अनुदान आयोग की भी इस दिशा में कोई रुचि नहीं है ! उसे देश के प्रत्येक विश्विद्यालय में हर वर्ष कम से कम 10 छात्र - छात्रा को हर माह एक लाख रु की शोध छात्रवृति देनी ही चाहिए ! इससे विद्यार्थी शोध के प्रति आकर्षित होंगे और मन लगा कर उच्च स्तरीय शोध कर सकेंगे । इसके साथ ही देश के सभी महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में रिक्त सभी पदों की तुरंत प्राथमिकता के आधार पर पूर्ति करने चाहिए । और सभी महाविद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों में सभी मूलभूत सुविधाओं एवं आधुनिक संसाधनों और उपकरणों की उपलब्धता सुनिश्चित करने की भी सख्त जरूरत है ! केंद्र और राज्य सरकारें यदि यह सब कर लें तो हमारा देश भी दुनिया के शीर्ष उच्च शिक्षा संस्थानों में शामिल हो सकेगा । बस जरूरत है सरकारों को इस दिशा में दृढ़ संकल्प लेने की ! फिर देखिए कमाल और परिणाम !
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