रविवारीय गपशप
♦ आनन्द शर्मा
कोई भी प्रोफ़ेशन हो इन्सान का उसके प्रति समर्पण कई बार उसके पारिवारिक दायित्वों पर भी असर डालता है , पर समाज के कई सँवर्गों के ऐसे लोगों के , ख़ास कर पुलिस विभाग के अधिकारियों कर्मचारियों के समर्पण के प्रति हम अनजान रहते हैं | दूसरी बात यह भी है कि पुलिस और प्रशासन के आपसी समन्वय से बड़ी से बड़ी मुसीबतों का हल भी निकल आता है | आज ऐसी ही यादों के साथ गपशप का सफ़र शुरू करते हैं |
सीहोर में 1992 में दिसम्बर का महीना हम सब के लिए बड़ा ही गहमा गहमी का रहा था | अयोध्या की घटना के बाद भोपाल के निकटस्थ शहर होने के कारण तनाव तो था ही , पर सीहोर में शांति भी थी , इसका परिणाम यह भी था की भोपाल को होने वाली सब्ज़ी और दूध की आपूर्ति का ज़िम्मा सीहोर ज़िले के ऊपर ही था | ऐसा नहीं था की ये सब आसानी से हो गया , बल्कि सीहोर के बारे में तो सब कहा करते थे कि ऐसे असंतोषों की हवा सबसे पहले और ज़्यादा सीहोर ज़िले में ही फैलती है | इसका भी एक मज़ेदार वाक़या है | असंतोष भड़कने के क़रीब दो सप्ताह बाद की बात है , भोपाल से सरकारी गाड़ियाँ दूध और सब्ज़ी के लिए सिहोर आया ही करती थीं और हमारी देखरेख में ये आपूर्ति हुआ करती थी | मैं सुबह की व्यवस्था देखने जा रहा था , तभी मेरे ड्राइवर क़ासिम ने मुझसे कहा सर यदि आपकी मेहरबानी हो तो मैं भोपाल इन सरकारी गाड़ियों से जाकर अपनी फेमली को ले आऊँ | मैंने कहा भोपाल में कहाँ गया है तुम्हारा परिवार ? क़ासिम बोला साहब बच्चों के मामू भोपाल में ही हैं वहीं गए हुए हैं | मैंने कहा क़ासिम इतने कठिन समय का अन्दाज़ तो सब को कुछ ना कुछ था तो ऐसे वक़्त में तुमने अपना परिवार भोपाल क्यों भेज दिया ? क़ासिम मासूमियत से बोला , सर सब लोग कहते थे की कहीं गड़बड़ होगी तो सबसे पहले सीहोर में होगी तो मैंने बच्चों को भोपाल भेज दिया | मुझे क्या मालूम था की सबसे शांत यहीं रहा आयेगा | सो ऐसे अनुमानों के बीच कठिन समय में गिरधारी नायक के कुशल नेतृत्व और समर्पण ने सीहोर की फ़िज़ा में अमन चैन क़ायम रखा हुआ था | पूरे महीने नायक साहब का अधिकांश समय पुलिस कण्ट्रोल रूम और ज़िले की लॉ एंड ऑर्डर व्यवस्था के रखरखाव में ही गुजरता | महीने भर प्रशासनिक महकमे के सभी अंग दिन रात अपनी ड्यूटी में मुस्तैद रहे और महीने के आख़िर में लगने लगा की अब स्थिति सुधार पर है | तब ऐसी एक शाम का वाक़या है ; मैं अपने ऑफ़िस से वापस घर को लौट रहा था तभी सीहोर टाकीज के पास वायर लेस सेट पर आवाज़ आयी , एस पी साहब के बच्चे को गिरने से आँख के पास चोट आयी है , उसे लेकर ज़िला अस्पताल आ रहे हैं ड्यूटी इंचार्ज देखें कोई डाक्टर ड्यूटी पर है या नहीं ? उन दिनों मोबाइल नहीं था और आवश्यक क़िस्म की अर्जेंट खबरें ऐसे ही वायरलेस सेट प्रसारित हुआ करती थीं | मैंने सेट पर ये ख़बर सुनी तो चिंतित हुआ , आख़िर हमारे इतने प्यारे साथी अधिकारी के परिवार के बच्चे की बात थी | अस्पताल की व्यवस्थाओं को हम ज़्यादा आसानी से ठीक ठाक ढंग से मुहैया करा सकते हैं ये सोच मैंने भी ड्राइवर से अपनी जीप को सिविल अस्पताल ले चलने को कहा | बहरहाल जब तक मैं पहुँचा तब तक श्रीमती नायक बच्चे को लेकर पहुँच चुकीं थी और डाक्टर बच्चे की अंदर जाँच और उपचार कर रहे थे | अस्पताल के स्टाफ़ से पूछताछ करने पर पता चला चोट आँख के ऊपर नहीं बल्कि माथे पर है और कोई चिंता की बात नहीं हैं | हम ये सब बातें कर ही रहे थे तभी सामने से गिरधारी नायक आते दिखे , वे कहीं बाहर के दौरे से लौट रहे थे | मैंने उन्हें नमस्कार किया और बताया कि चिंता की बात नहीं है | तभी मैडम ओ टी से बच्चे को अपनी गोद में लिए बाहर निकलीं | गिरधारी नायक साहब उनकी ओर बढ़े , और बच्चे को उसका नाम पुकार कर पुचकारते हुए उसे अपनी गोद में लेने का उपक्रम किया | बच्चे ने एक नज़र इन्हें देखा और वापस माँ से चिपट गया | श्रीमती नायक बोलीं , तुम इतनी सुबह तो उठ कर जाते हो , जब ये सोया रहता है , और देर रात तक वापस आते हो तब भी ये सो जाता है , महीने भर से इसने तुम्हारी शक्ल तक नहीं देखी है , पहचानेगा कैसे ? नायक साहब बस मुस्कुरा दिए , बोले कुछ नहीं और हम सब अवाक् इस संवाद में छिपे उलाहने और दर्द को महसूस करते खड़े रहे | नायक साहब ने अपनी जिप्सी में दोनों को बिठाया और परिवार के साथ अपने घर के लिए रवाना हो गए |
सीहोर के बाद मेरा तबादला सागर हो गया | वहाँ ओंकारेश्वर तिवारी कलेक्टर थे और सुदर्शन कुमार एस पी | सुदर्शन कुमार साहब रिज़र्व तबियत के उसूल वाले इन्सान थे , अपने काम में सख़्त और ईमानदार | ऐसे लोगों के दोस्त तो कम होते हैं अलबत्ता दुश्मन जल्द बन जाते हैं और ऐसे सारे दुश्मन आपस में दोस्त | सागर में तभी घटी एक घटना ने ये साबित भी कर दिया | राहत गढ़ शहर , जो अपने खूबसूरत जलप्रपात के लिए प्रसिद्ध है में एक पुलिस एनकाउंटर में एक दुर्दान्त अपराधी राजू मुण्डा मारा गया जिसका हत्या और बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों से भरा अच्छा ख़ासा रिकार्ड था | एनकाउंटर के बाद लाश सागर के कटरा थाने लायी गयी जो शहर के बीचोंबीच स्थित है | बाज़ार में हवा की तरह ख़बर फैली और लोग लाश देखने इकट्ठे होने लगे | एक थानेदार साहब को जनता की परेशानी दूर करने की सूझी और उन्होंने लाश को वायरलेस के टावर में लटका दिया | जनता को तो क्या सुविधा हुई होगी अलबत्ता टावर में टंगी लाश की फ़ोटो खिंच गयी और फिर स्थानीय समाचार पत्रों में इस ख़बर की बावत लोकल पत्रकारों का एक गुट सुदर्शन कुमार के पीछे पड़ गया | दोस्त बने दुश्मनों के हौसले एक हुए और अख़बारों , प्रदर्शनों मानव अधिकार आयोग से लेकर विधानसभा तक मामला ज़ोर पकड़ गया | विधानसभा की एक विशेष समिति बनी जिसका मामले की सच्चाई जानने सागर आना तय हुआ | सागर के सिटी मजिस्ट्रेट एन एस परमार थे जो राजनांदगाँव से ही मेरे साथ रहे थे | कलेक्टर साहब को परमार ने बताया कि विधानसभा समिति के अध्यक्ष जो विधायक हैं वे डोंगरगढ़ के हैं जहां की आनंद शर्मा एस डी ओ रहे हैं | रात को ही मुझे तिवारी साहब का बुलावा आ गया | बंगले पर पहुँचा तो तिवारी साहब ने मुझसे परमार द्वारा दी गयी जानकारी की पुष्टि की और फिर एनकाउंटर का पूरा ब्योरा मुझे देते हुए कहा कि देखिए अख़बार में बहुत कुछ छप रहा है , पर सच्चाई तो ये है कि मरने वाला दुर्दान्त हत्यारा और बलात्कारी था , एनकाउंटर राहत गढ़ की जनता ने भी देखा है , हम केवल इतना चाहते हैं की समिति ये सच्चाई जान ले और सबको सुनकर ही मन बनाये , और इसके लिए ये अनुरोध समिति के अध्यक्ष तक पहुँचाना है | मैंने कहा क्या करना होगा , कलेक्टर ने कहा आप भोपाल निकल जाइए और अध्यक्ष को ये सब ब्रीफ़ कर दीजिए | मैंने पूछा कब जाना है ? जवाब मिला अभी ही निकलना है | मैंने पूछा कैसे ? तिवारी जी ने बोला मेरी जिप्सी ले जाओ | कलेक्टर की जिप्सी मिलना ही तब बड़ा विशेषाधिकार हुआ करता था | मैंने ड्राइवर और गाड़ी ली और घर पर पत्नी को बता कर भोपाल रवाना हो गया | तब भोपाल से सागर का रास्ता बहुत ख़राब हुआ करता था , इस कारण रात भर चल कर सुबह सुबह ही भोपाल पहुँच पाये | विधायक महोदय मुझे देख कर बड़े प्रसन्न हुए , हमने कुछ पुरानी यादें ताज़ा कीं , फिर मैंने अपने आने का उद्देश्य उन्हें बताया | उन्होंने आश्वासन दिया कि वे सभी पक्षों को सुन कर ही राय बनाएँगे और यदि एस पी का कोई दोष नहीं है तो केवल लोगों के चिल्लाने से उनके ख़िलाफ़ निष्कर्ष नहीं निकालेंगे | मेरा काम हो चुका था , चलने लगा तो विधायक जी जो छत्तीसगढ़ के मेरे सीधे सादे मित्र थे , ने बड़े संकोच से मुझसे कहा की बेटा ( जो आठवीं कक्षा में पढ़ता था ) का पर्चा बिगड़ गया है , कापी सागर जंचने गयी है , देखे यदि पास हो जाये | मैंने वहीं से कलेक्टर साहब को फ़ोन लगाया सारी बातें बतायीं और अनुरोध दुहराया , दूसरी ओर से तिवारी जी की आवाज़ आयी , उनको बता दो बच्चा फ़र्स्ट डिविज़न में पास है |
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