रविवारीय गपशप ————————————मुझे कभी कभी ये लगता है , कि…
♦ आनन्द शर्मा
रविवारीय गपशप ————————————मुझे कभी कभी ये लगता है , कि प्रशासनिक सेवाओं में इतनी विविधता ना होती , तो शायद मैं इसकी यात्रा पूरी ही ना कर पाता | एकरसता से यदि आप बोर हो जाते हैं तो प्रशासनिक सेवाएँ आपका मनपसंद मुक़ाम हो सकती हैं | प्रशासनिक सेवाओं में आने की उत्सुकता रखने वाले नवजवानों से मैं हमेशा यह कहता हूँ दो बातें यदि आपमें हैं तो ही यह क्षेत्र आपके लिए है , पहला विविधता के प्रति लगाव और दूसरा किसी ग़ैर का काम करने में ख़ुशी मिलना ; ये दो बातें ना हों तो बड़ी जल्द आप इससे हताश होकर किसी दूसरी राह पर निकल लेंगे | यहाँ आप अनेक विभागों के सम्पर्क में आते हैं और कई तरह के लोगों से आपकी वाकफ़ियत होती है पर इन सबमें आपका सबसे ज़्यादा नज़दीकी रिश्ता होता है पुलिस के साथ , जैसे चोली दामन का साथ हो वैसा ही |
आज इनमें से कुछ अधिकारियों की याद कर लेते हैं | शुरुआत करता हूँ , राजनंदगाँव ज़िले के डोंगरगढ़ अनुविभाग से जहां पुलिस के एस डी ओ पी थे बंसल साहब | मैं नौकरी में नया था , तो उनकी भूमिका एक बड़े भाई की तरह की थी | डोंगरगढ़ में माँ बमलेश्वरी का मंदिर है और नवरात्रि में व्ही आइ पी विज़िट की भरमार रहती थी | कभी कलेक्टर कभी एस पी , कभी मंत्री और कभी कभी तो मुख्यमंत्री | हर व्ही आइ पी के आने का मतलब होता था , ऊपर वाली माँ के दर्शन हेतु साथ में जाना | पाँच सौ से ज़्यादा सीढ़ियाँ चढ़ना और वो भी कई बार तो दिन में दो-दो , तीन-तीन बार | जब मैं इस क़वायद से थक जाता तो वे भाँप जाते थे फिर कहते आप नीचे रुक कर व्यवस्था देखो , मैं दर्शन करवा के लाता हूँ | कई बार सुबह सुबह उनका फ़ोन आता ; एस डी एम साहब फ़लाँ गाँव में कुछ क़ानून व्यवस्था की स्थिति थी , मैं जाकर ठीक कर आया हूँ आपके कलेक्टर का फ़ोन आए तो आप ये ये बता सकते हैं | अपने शुरुआती दिनों में ऐसा अभिभावक नुमा पुलिस का सहयोगी अधिकारी मिलना मेरे लिए बड़े सौभाग्य का प्रतीक था | मेरे वहाँ से स्थानांतरण के कुछ साल बाद , दुर्भाग्य वश नक्सलियों से मुठभेड़ में वे शहीद हो गए थे |
मेरी सीहोर पदस्थापना के दौरान जो पुलिस के अधिकारी जो मुझे याद आते हैं वे हैं , श्री एन के तिवारी जो सीहोर में मेरे साथ एस डी ओ पुलिस थे और श्री गिरधारी नायक जो तब ज़िले के एस पी थे और अब छत्तीसगढ़ में पुलिस महानिदेशक के पद से सेवानिवृत्त हो चुके हैं | तिवारी जी ग़ज़ब के जाँबाज़ अफ़सर थे | कई एक मौक़े पर मैंने देखा कि जुलूस में घोड़े पर बैठे व्यक्ति के हाथ से उछल कर उन्होंने तलवार इसलिए छीन ली थी कि , जुलूस में हथियार लेकर निकलने की इजाज़त नहीं दी गयी थी और कभी दौड़ कर नवजवान लड़कों को पकड़ लेते की प्रतिबंधित मार्ग की ओर मोटरसायकल कैसे मोड़ दी है | यह 1992 का साल था , बाबरी मस्जिद गिरने के बाद भोपाल समेत प्रदेश के कुछ शहरों में दुर्भाग्य पूर्ण दंगे शुरू हो गए थे , सौभाग्य से नज़दीक होते हुए भी सीहोर इससे सुरक्षित रहा आया | इसके पीछे दो लोगों का हाथ था सिहोर की समझदार जनता और सजग प्रशासन | घटना के दूसरे दिन के सुबह का वक़्त था , मैं अपने घर से अकेले होमगार्ड सैनिक के साथ कंट्रोल रूम की तरफ़ जा रहा था , बाज़ार में भीड़ देखी तो रुक गया , देखा सड़क के दोनों ओर दो समुदायों की भीड़ है और बीच में पुलिस खड़ी है , गौर से देखा तो एस पी साहब भी खड़े थे | मैं जीप से उतर कर नायक साहब के पास गया और उन्हें नमस्कार किया तो वो चिंतित स्वर में बोले अरे आप अकेले क्यों घूम रहे हैं , आइए मेरे पास आ जाइए | उसी समय भीड़ में से किसी ने ईंट फेंकी जो नायक साहब के पैर के पास गिरी , नायक साहब ने मेरी तरफ़ देखा और बोले लाठी चार्ज करना पड़ेगा , और फिर दूसरे ही क्षण पुलिस के दलों ने दोनों ओर खड़े लोगों को खदेड़ दिया , तुरंत हमने जीप से शहर में लाउडस्पीकर से लोगों के बीच ऐलान करना चालू किया की धारा 144 के तहत शहर में अकारण निकलना प्रतिबंधित है और सभी लोग घरों में ही रहें | कुछ ही घण्टे में पूरा शहर कंट्रोल में था | शाम होते होते लगा सब कुछ ठीक हो रहा है | मैं और तिवारी जी शहर की गश्त में थे | कोतवाली से सिहोर टाकीज के रास्ते के बीच में एक दुकान से एक सज्जन ने आवाज़ लगाई , मैंने तिवारी जी को कहा पीछे गाड़ी लें | जीप तिवारी जी ही चला रहे थे , उन्होंने गाड़ी बैक की , दुकानदार ने भयभीत स्वर में कहा सामने मस्जिद के पास कुछ लड़के इकट्ठे हो रहे हैं , माहौल बिगड़ सकता है | तिवारी जी ने जीप को गली में डाल दिया | थोड़ी दूर जाने पर ही हमने देखा लोगों का हुजूम सामने था और तभी मुझे महसूस हुआ कि तिवारी जी और मेरे अलावा हमारे साथ दो जीपों में कुल जमा चार लोग ही थे , उनका और मेरा ड्राइवर तथा मेरा होमगार्ड सैनिक और उनका गनमेन | हम एक तरह से घिर चुके थे , पर तिवारी जी निर्द्वंद्व उतरे और भीड़ की तरफ़ बढ़ते हुए , हाथ में लिए डण्डे से भीड़ को धकेलने के अन्दाज़ में आगे बढ़े | भीड़ में कच्ची उमर के लड़के ही लड़के थे , उनमें से किसी ने तिवारी जी के लिए कुछ अपशब्द कहे , तभी पीछे से अचानक एक आदमी आगे आया और उस लड़के को ज़ोर का धक्का दिया और चिल्लाया ख़बरदार ये तो अपने तिवारी जी हैं , अक़्ल भी है की किसको क्या कहना है | उनके बीच के ही एक बुज़ुर्गवार के ऐसे व्यवहार से भीड़ के जोशीले उन्मादी सकपका गये , इस बीच ये घटनाक्रम देखता-देखता मैं सेट पर कंट्रोल रूम को बताता रहा की गड़बड़ी की सम्भावना है , फ़ोर्स भेजो | इस सब गहमागहमी में कुछ समय बीता ही था की पीछे से ट्रक भर कर फ़ोर्स आ गयी और फिर हमने भीड़ को खदेड़ दिया | मैंने उस दिन ये एक अहम बात देखी और सीखी , कि यदि आप जनता के बीच अपना व्यवहार निष्पक्ष रखते हैं तो मुसीबत के वक़्त में आपकी यही इमेज आपकी सबसे बड़ी साथी होती है |
सिहोर में अगला एक सप्ताह बहुत फ़िक्र से बीता , विभिन्न डिप्टी कलेक्टर्स भी अपने साथी पुलिस अधिकारियों के साथ गश्त करते रहे , कलेक्टर एस पी साथ साथ घूमते रहे , हालाँकि छुटपुट घटनाओं के अलावा और कुछ नहीं हुआ | एक रात मेरी ड्यूटी तिवारी जी की साथ आयी | एस.पी. साहब ने तिवारी जी को टास्क दिया की जितने भी निगरानी बदमाश हैं रात भर उनकी तस्दीक़ करो की वे घरों में ही हैं या नहीं और कुछ संदेहास्पद हो तो उचित कार्यवाही करो | तिवारी जी ने मुझे कहा की ये विशुद्ध पुलिस वाला काम है , आप चाहो तो घर चले जाओ | मैंने कहा ऐसा भी क्या , काम तो काम है , क्या पुलिस का और क्या मजिस्ट्रेट का , इन हालातों में तो हमें साथ ही रहना है | तिवारी जी बोले ठीक है और मुझे जीप में बिठा कर खुद ड्राइव करते हुए मुहल्ले मुहल्ले घूमने लगे , मुझे ये जानकर आश्चर्य हुआ की उन्हें गली गली का ज्ञान था | घूमते घूमते आधी रात बीत गयी , सुबह के चार बजा चाहते थे , मैंने तिवारी जी से कहा यार ये तुम्हारे एस पी ने तो बिना कारण थानेदार वाला काम अपने को पकड़ा दिया है और खुद मज़े से सो रहे होंगे ; कहीं चलें चाय तो पियें | तिवारी जी ने जीप सीहोर नाके तरफ़ मोड़ दी , जहां देर रात तक होटलनुमा ढाबा खुला रहता था , पर वहाँ जाकर देखा तो , चाय वाली दुकान बंद थी | तिवारी जी ने कहा अब तो कंट्रोल रूम का सहारा है चलो वहीं चलते हैं | हम कोतवाली की ओर चल पड़े जहां बाजू में उन दिनों पुलिस कंट्रोल रूम हुआ करता था | कंट्रोल रूम पहुँच कर हम सीढ़ियों से चढ़ कर ऊपर पहुँचे तो क्या देखते हैं , कंट्रोल रूम में बीच वाली टेबल पर सर रख कर गिरधारी नायक ऊँघ रहे थे | आहट सुनी तो उठ बैठे , मुझे देख कर बोले अरे एस डी एम साहब आओ चाय पिलाते हैं | मुझे मन ही मन थोड़ी देर पहले कही बात पर बड़ी शर्म आयी , जिसमें मैंने एस पी साहब के घर में आराम करने को लेकर तिवारी जी को उलाहना दिया था | भोली-भाली सूरत वाले गिरधारी नायक ने इसके बाद हमें कंट्रोल रूम में ही बढ़िया चाय पिलवाई | ( क्रमशः )