लोकतंत्र के लिए खतरा बने कानून को कर देना चाहिए खत्म !
डॉ. चन्दर सोनाने
दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में 15 जून को देशद्रोह के एक केस में तीन छात्र - छात्राओं को जमानत देते हुए केंद्र सरकार के प्रति सख्त टिप्पणी की । कोर्ट ने कहा " ऐसा लगता है कि सरकार के दिमाग में विरोध के संवैधानिक अधिकार और आतंकी गतिविधि के बीच का अंतर धुंधला होता जा रहा है । अगर यह मानसिकता प्रचलित होती है तो यह लोकतंत्र के लिए दुखद दिन होगा । "
पूरा मामला यह था कि गत वर्ष फरवरी 2020 में दिल्ली में नागरिकता संशोधन कानून के समर्थकों और विरोधियों के बीच हिंसा भड़क गई थी । बाद में इसने दंगें का रूप ले लिया था । इसी मामले में इस कानून का विरोध करने वालों में से पुलिस ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्र आसिफ इकबाल तन्हा , जेनयू की छात्राएँ देवांगना कलिता और नताशा नरवाल को देशद्रोह के केस में गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया था । तब से ये तीनों जेल में ही बंद थे । इन्होंने अपनी जमानत के लिए दिल्ली हाई कोर्ट में अर्जी लगाई थी ,जिस पर कोर्ट ने उक्त तीनों को जमानत देते हुए उक्त सख्त टिप्पणी की थी ।
इसी प्रकार का एक और मामला भी हाल ही में सामने आया है । इसमें वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ द्वारा दिल्ली दंगे के ही मामले में एक स्टोरी करने और केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी पर उंगीली उठाने पर हिमाचल प्रदेश के एक भाजपा नेता की शिकायत पर पुलिस ने विनोद दुआ के विरुद्ध देशद्रोह का प्रकरण दर्ज कर लिया था । दुआ इसके विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट गए थे। कोर्ट ने दुआ के खिलाफ दर्ज राजद्रोह का मामला न केवल रद्द कर दिया , बल्कि केंद्र सरकार के प्रति सख्त टिप्पणी भी की थी । कोर्ट ने कहा था कि 1962 का केदारनाथ केस का फैसला कहता है कि सरकार की ओर से किये गए उपायों को लेकर कड़े शब्दों में असहमति जताना राजद्रोह नहीं है ! केदारनाथ केस के फैसले के आदेश से हर पत्रकार को ऐसे आरोप से संरक्षण प्रदान करता है ।
समय - समय पर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेश एवं सख्त टिप्पणी के बावजूद केंद्र और अनेक राज्य सरकारें किसी भी कानून के विरुद्ध असहमति और विरोध को दबाने तथा कुचलने में इस अंग्रेजों के जमाने के कानून धारा 124 ए तथा अन्य संबंधित धाराओं का खुलकर दुरुपयोग करती आ रही है । देश की हर सरकार ने यही किया है ! किंतु भाजपा की इस मोदी सरकार द्वारा देशप्रेम और देशद्रोह की नई परिभाषा ही बना देने के बाद इस कानून का जमकर दुरुपयोग किया जा रहा है ! मोदी राज की नई परिभाषा के अनुसार जो भी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और उनकी नीतियों तथा कार्यक्रमों के साथ हैं , वे देशप्रेमी हैं ! और जो भी विरोध में हैं , वे देशद्रोही हैं ! इस कारण केंद्र सरकार और भाजपा शासित राज्यों में खुलकर इस कानून का मनमर्जी से और निडर होकर भरपूर दुरुपयोग किया जा रहा है ! इस कानून के अंतर्गत मोदी सरकार ने अभी तक अपने सात साल के कार्यकाल में जितने लोगों के विरुद्ध कार्रवाई की , उतनी देश के किसी भी प्रधानमंत्री के कार्यकाल में कभी भी नहीं की गई !
प्रजातंत्र में प्रतिपक्ष और विरोध का सम्मान किया जाता है । इसी में लोकतंत्र का का हित और सफलता छुपी हुई है। संविधान द्वारा भी धारा 19 ए द्वारा अभिव्यक्ति की आजादी और धारा 19 बी द्वारा विरोध प्रदर्शन का मौलिक अधिकार आम जन को दिया गया है । केंद्र सरकार का नागरिकता संशोधन कानून हो या किसानों के लिए बनाए गए तीन नए कानून हो या कोई अन्य कानून हो , जब भी किसी ने भी इनका विरोध किया तो उनके विरुद्ध अंगेजों के जमाने के इस काले कानून का दुरुपयोग कर उन्हें जेल में सड़ने के लिए डाल दिया जाता है । छह महीने से भी अधिक समय से चल रहे किसान आंदोलन में भी सैकड़ों किसानों को इसी देशद्रोह की धारा में जेल में डाला जा चुका है ! अब समय आ गया है कि संसद में लोकतंत्र के लिए खतरा बन चुके इस काले कानून को ख़त्म कर दिया जाना चाहिए ! लोकतंत्र के हित में सभी राजनैतिक दलों को एक मंच पर आकर इस प्रजातंत्र विरोधी कानून को खत्म करने की ठोस पहल करनी चाहिए ! जब तक ऐसा नहीं होगा , तब तक ऐसा ही होता रहेगा और निर्दोष आमजनों को जेलों में ढूंसा जाता रहेगा ! लोकतंत्र की इसी प्रकार हत्या होती रहेगी ! होती रहेगी !!!
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