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टीकाकरण नीति में बदलाव : सुप्रीम कोर्ट को है पूरा श्रेय !


 डॉ. चन्दर सोनाने

           और सुप्रीम कोर्ट के कारण ही देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को 7 जून को देशवासियों के सामने आना पड़ा तथा टीकाकरण नीति में बदलाव की घोषणा करने के लिए मजबूर होना पड़ा ! दूसरी बार देश की बागडोर संभालने के बाद उनमें पहले से भी ज्यादा अभिमान आ गया था ! वे किसी की भी नहीं सुन रहे थे ! मनमानी पर उतारू थे ! किंतु जब सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने स्वतः संज्ञान वाले प्रकरण में 31 मई को केंद्र सरकार को आड़े हाथों लेकर खुलकर असंतोष प्रकट करते हुए 2 जून को लिखित नोटिस थमा दिया , तब जाकर मोदी सरकार को होश आया ! उसे शायद पहली बार लगा कि अब गोलमोल जवाब देने से काम नहीं चलेगा , तब जाकर मोदी जी जनता के सामने आए और वह घोषणा की , जो देश की आम जनता चाहती थी और जिसकी पैरवी खुद सुप्रीम कोर्ट कर रहा था ! 
             देश का इतिहास गवाह है कि जब - जब देश की विधायिका या कार्यपालिका ने अपने संवैधानिक कर्तव्यों की अनदेखी की और देश के आम लोगों के संवैधानिक अधिकारों का हनन किया गया , तब - तब न्यायपालिका सामने आया और उसने अपना कर्तव्य बखूबी निभाया ! यहाँ भी यही हुआ है । देश में 16 जनवरी 2021 से जब चरणबद्ध तरीके से देश के आम लोगों को टीका लगाना आरम्भ किया गया तो लोगों ने राहत की सांस ली थी।  उन्होंने सोचा था जब भी उसका भी समय आएगा तो उसे भी टीका जरूर लगेगा । किन्तु , उन्हें 19 अप्रैल को पहली बार  लगा कि उनके साथ अन्यान्य हो रहा है । जब केंद्र सरकार ने घोषणा की , कि अब 1 मई से 18 साल से 45 साल तक के लोगों को टीके केंद्र नहीं लगाएगा , राज्य सरकार अपने खर्चे से टीके निर्माताओं से टीके खरीद कर अपने राज्य के लोगों को लगायेंगी ! केंद्र सरकार अब पहले की ही तरह केवल 45 साल से ऊपर के लोगों को ही टीके लगाएगी । मोदी सरकार ने अपनी जिम्मेदारी राज्यों पर डाल दी ! लोगों को ये भी शंका होने लगी कि इस प्रकार तो आगे केंद्र सरकार बच्चों से 18 साल तक के लोगों को भी टीके लगाने से अपने हाथ ऊंचे कर देगी ! देश की आम जनता अपने आप को ठगा हुआ सा महसूस करने लगी। किन्तु उनकी सुनने वाला कौन था ? ज्यादातर मीडिया बिकी हुई थी ! इस माहौल में भी कुछ मीडिया के लोगों ने साहस के साथ मोदी सरकार के इस अन्याय की पुरजोर ख़िलापत की ! किन्तु उनकी भी कहाँ सुनवाई होनी थी ? ऐसे माहौल में सुप्रीम कोर्ट देश की अवाम की आवाज बन कर देश के सामने आया ! सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने 22 अप्रैल को स्वतः संज्ञान लेते हुए केंद्र सरकार की टीकाकरण नीति के बारे में सवालों की झड़ी लगा दी । कोर्ट ने 30 अप्रैल को राष्ट्रीय टीकाकरण नीति और पूछे गए सवालों को जवाब देने के निर्देश दिए । किंतु मोदी सरकार ने तय तारीख को आधी अधूरी जानकारी और गोलमाल जवाब देकर बचने का असफल प्रयास किया । दूसरी तारीख को भी यही हुआ । सुप्रीम कोर्ट ने अपने स्वतः संज्ञान वाले मामले में अपनी तीसरी सुनवाई में 31 मई को सख्त रुख अपनाया । कोर्ट ने 2 जून को लिखित में आदेश देते केंद्र सरकार की टीकाकरण नीति , टीकों की खरीदी पर हुए फैसलों की पूरी जानकारी , उनसे जुड़ी फ़ाइल नोटिंग और सभी संबंधित दस्तावेज आदि जानकारी कोर्ट को दो सप्ताह में सौंपने के आदेश दे दिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि जब सरकारी नीतियों द्वारा नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा हो , तब अदालतें मूकदर्शक बनी नही रह सकती !  कोर्ट ने अगली सुनवाई 30 जून तय की है । 
             सुप्रीम कोर्ट के पहली बार इतना सख्त रुख अपनाने के कारण मोदी सरकार के सामने कोई रास्ता बचा नहीं था ! इसलिए कोर्ट के सामने जाने से पहले प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को मजबूरीवश जनता के सामने आने के लिए और टीकाकरण नीति में बदलाव करने की घोषणा करने के लिए बाध्य होना पड़ा ! प्रधानमंत्री जी को कहना पड़ा कि अब 21 जून से केंद्र सरकार ही 18 साल से 45 साल तक के लोगों को भी टीके लगाने के लिए राज्यों को देगी । अब 21 जून से राज्यों को टीके नहीं खरीदने पड़ेंगे । किन्तु यहाँ भी प्रधानमंत्री जी राजनीति पर उतर आए ! उन्होंने देश में बहुत पहले से चल रहे अत्यंत सफल अभियानों पल्स पोलियो अभियान , चेचक उन्मूलन तथा अन्य टीकाकरण कार्यक्रमों से अपने विश्व के सबसे बड़े कोरोना टीकाकरण अभियान को श्रेष्ठ बताने का असफल प्रयास किया ! उनका भाषण देश के प्रधानमंत्री की बजाय एक पार्टी के नेता के बयान जैसा स्तरहीन भाषण था ! खैर ! आम जनता और सुप्रीम कोर्ट जो चाहता था , वह हो गया ! और जो सवाल बचे हैं , उनके जवाब मोदी सरकार को 2 जून से दो सप्ताह बाद और अगली सुनवाई तारीख 30 जून को देने ही पड़ेंगे ! सुप्रीम कोर्ट को देश के 130 करोड़ अवाम की आवाज बनने के लिए सलाम और आभार !
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