शनिश्चरी अमावस्या : शिप्रा के शुद्धिकरण के क्यों नहीं होते स्थायी उपाय ?
डॉ. चन्दर सोनाने
कुछ दिनों बाद फिर 11 मार्च को महाशिवरात्रि और 13 मार्च को शनिश्चरी अमावस्या के पर्व आ रहे हैं । इन दोनों त्यौहारों का उज्जैन और प्रदेश ही नहीं बल्कि देश के हजारों श्रद्धालुओं के लिए विशेष महत्व होता है । श्रद्धालु महाशिवरात्रि पर्व पर प्रसिद्ध दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग बाबा महाकालेश्वर मंदिर के दर्शन के पूर्व पतित पावन शिप्रा नदी में डुबकी लगाकर और पुण्य प्राप्त कर बाबा महाकाल के दर्शन कर धन्य हो जाते हैं । इसी प्रकार शनिश्चरी अमावस्या के पावन पर्व पर उज्जैन के त्रिवेणी संगम में स्न्नान कर शनि महाराज के दर्शन करने के लिए हजारों श्रद्धालु विशेषकर दूर - दूर से उज्जैन आकर पुण्य कमाते हैं ।
किन्तु इस बार फिर , हर साल की तरह राम घाट और त्रिवेणी पर शिप्रा नदी का पानी साफ नहीं है और न ही स्न्नान के योग्य है । त्रिवेणी संगम पर तो और भी हालत खराब है । यहाँ पानी बहुत कम है और जो है भी , वह स्नान के योग्य नहीं है । आपको वर्ष 2019 की शनिश्चरी अमावस्या का ध्यान होगा । उस वर्ष त्रिवेणी पर पानी के नाम पर कीचड़ था ! और जिला प्रशासन ने घाट पर पाइप लाइन के जरिये श्रद्धालुओं के स्नान की जो व्यवस्था की थी , उसका पानी भी स्नान के योग्य नहीं था ! श्रद्धालुओं में भारी रोष , दुःख और आक्रोश को देखते हुए उस समय के कांग्रेसी मुख्यमंत्री श्री कमलनाथ ने श्रद्धालुओं के लिए माकुल व्यवस्था नहीं करने के कारण तुरंत तत्कालीन संभागायुक्त श्री एम पी ओझा और कलेक्टर श्री मनीष सिंह को उज्जैन से हटा दिया था । यही नहीं उस समय मुख्यमंत्री ने अपने मुख्य सचिव श्री एस आर मोहंती को उज्जैन भेजकर श्रद्धालुओं के लिए शिप्रा नदी में साफ पानी के स्थायी इंतजाम करने के निर्देश दिए थे । मुख्य सचिव उज्जैन आये भी । उन्होंने स्थल निरीक्षण के बाद त्रिवेणी पर कच्चे मिट्टी के बाँध की जगह पक्का बाँध बनाने के भी निर्देश दिए थे । उन निर्देशों का कभी भी और अभी तक कोई भी पालन नहीं हुआ और फिर त्रिवेणी पर कच्चा बाँध ही बनाया गया , जो पहले की ही तरह रिस रहा है तथा खान नदी का गंदा पानी शिप्रा नदी में सबके सामने मिल रहा है । यही नहीं उज्जैन के आसपास के सभी बड़े नालों का गंदा पानी शिप्रा नदी में मिलते हुए कोई भी कहीं भी आसानी से आज भी देख सकता है ! और श्रद्धालु उसी शिप्रा के गंदे और प्रदूषित पानी में पिछले अनेक वर्षों से पर्वों पर स्नान करने के लिए अभिशप्त हैं !
और वर्तमान कलेक्टर श्री आशीष सिंह भी महाशिवरात्रि और शनिश्चरी अमावस्या पर्व के पहले हमेशा की तरह जैसा होता रहा है , वैसा ही करने जा रहे हैं । उन्होंने उक्त पर्वों के पहले नर्मदा का पानी शिप्रा नदी में लाने की कार्रवाई शुरू कर दी है । संबंधित सभी विभागों को निर्देश जारी कर दिए हैं । एक बार फिर राम घाट और त्रिवेणी पर शिप्रा नदी का गंदा पानी आगे बहा दिया जाएगा और नर्मदा का साफ पानी शिप्रा नदी में डाल कर श्रद्धालुओं को पुण्य सलिला पतित पावन शिप्रा नदी में स्नान की सुविधा जिला प्रशासन उपलब्ध करा देगा ! और निपटा दिया जाएगा इस साल के महाशिवरात्रि तथा शनिश्चरी अमावस्या के पर्व को ! अगले साल जो रहेगा , वो देखेगा !
राज्य सरकार द्वारा कभी भी शिप्रा को हमेशा शुद्ध रखने के लिए स्थायी उपाय नहीं किए गए । राज्य शासन के मुखिया मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने एक बार 2016 के सिंहस्थ महापर्व के अवसर पर शिप्रा में खान नदी का गंदा पानी नहीं मिले , इसके लिए करीब 100 करोड़ रुपये की खान डायवर्शन योजना बनाई थी और उसे पूरी भी की थी । उस अव्यवहारिक योजना का खूब विरोध हुआ । किन्तु किसी की नहीं सुनी गई और योजना पूरी कर दी गई । आप भूल गए हों तो आपको याद दिला दिया जाए कि योजना यह थी कि इंदौर से आने वाली खान नदी के गंदे पानी को शिप्रा नदी में त्रिवेणी पर मिलने की बजाय ग्राम पिपल्याराघौ से 19 किलोमीटर दूर पाइप लाइन से ले जाकर कालियादेह महल के पास खान नदी का वैसा ही गंदा पानी वापस सीधे शिप्रा नदी में ही छोड़ दिया जाए । और यही किया गया। यानी केवल 19 किलोमीटर को छोड़कर खान नदी का गंदा और प्रदूषित पानी वैसे का वैसा ही त्रिवेणी में नहीं , बल्कि कालियादेह महल के पास शिप्रा नदी में ही वापस मिला दिया जाए । और यही किया भी गया । आगे शिप्रा नदी के किनारे वाले लोग और श्रद्धालु भगवान भरोसे ! किन्तु इस योजना का हश्र हुआ क्या ? आपको मालूम है ? नहीं पता तो आपको बता देते हैं कि जब बारिश के दिनों में खान नदी का पानी सीधा शिप्रा में मिलता लोगों ने देखा और शिकायत हुई तो जल संसाधन विभाग द्वारा बताया गया कि यह योजना बारिश के दिनों के लिए तो थी ही नहीं ! इन बारिश के दिनों में तो पाइप लाइन से खान नदी का सारा पानी जा ही नहीं सकता । और वे बरी हो गए । किसी के भी विरुद्ध कोई भी कार्रवाई नहीं हुई। अब साल के कुल 12 माह में से 4 माह गए । गर्मी के चार महीनों में खान नदी में यूँ भी पानी नहीं रहता है । इसलिए गर्मी के भी 4 माह गए । अब बचे ठंड के 4 माह । तो ये 100 करोड़ की योजना बनी केवल 4 माह के लिए । और यदि ठंड के दिनों में मावठा गिरा तो खान नदी का गंदा पानी फिर से त्रिवेणी संगम पर सीधे शिप्रा नदी में मिल जाता है ! इसमें बेचारे विभाग के अधिकारी क्या कर सकते हैं ? और योजना बनी तब से , ऐसा ही हो रहा है !
किसी ने भी , न तो राज्य शासन ने , न उज्जैन के जनप्रतिनिधियों ने , न उज्जैन संभागायुक्त ने , न कलेक्टर ने अस्थायी उपायों की बजाय स्थायी उपाय सोचने की गंभीरतापूर्वक कोशिशें की । इसका आसान सा उपाय कुछ लोगों ने बताया भी , किन्तु किसी ने भी उस सुझाव को गंभीरतापूर्वक नहीं लिया । आइये , आपको बताते हैं , ये आसान सा उपाय ! वह उपाय यही है कि खान नदी को ही प्रदूषित और गंदा होने से रोक जाए ! चूंकि खान नदी इंदौर से आती है , इसलिए इसमें इंदौर प्रशासन का भी सहयोग लिया जाना चाहिए । खान नदी के उद्गम से लेकर उज्जैन में त्रिवेणी संगम तट तक उस नदी के किनारे जितने भी उद्योग लगे हैं , जिनका गंदा और प्रदूषित पानी खान नदी में मिलता है , उन सभी उद्योगों को अपने - अपने उद्योगों के प्रदूषित पानी को शुद्ध करने के लिए संयंत्र लगाया जाना अनिवार्य कर दिया जाए । संयंत्र की स्थापना का 50 प्रतिशत अनुदान उस उद्योग को राज्य शासन देंवे। जो भी उद्योग इस नियम और निर्देश का पालन नहीं करें तो तुरंत ही उस उद्योग की ताला बंदी कर दी जाए । सख्त आर्थिक दंड का भी प्रावधान किया जाना जरूरी है । इसके साथ ही खान नदी में उसके उद्गम स्थल से त्रिवेणी तक मिलने वाले सभी नालों को भी कागजों पर नहीं बल्कि धरातल पर रोका जाए । और उज्जैन में जहाँ कहीं भी गंदे नालों का पानी शिप्रा नदी में मिलता है , उन सभी को भी वास्तविक रूप से ठोस धरातल पर ही रोका जाए । है ना कुछ स्थायी उपाय ? खान डायवर्शन योजना की 100 करोड़ रु की बेकार योजना से तो ये योजना सौ गुना ज्यादा बेहतर हो सकती है । किन्तु ये बात प्रदेश के मुखिया , जो उज्जैन के प्रति काफी संवेदनशील है , मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान को बताए कौन ? शायद वे कुछ करें ? आप बताएंगे उन्हें ?
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