21 दिसंबर को होने जा रही ये खगोलिय घटना, देगी शुभ परिणाम
21 दिसंबर, सोमवार को जो गुरु एवं शनि के मिलन की अनोखी एवं दुर्लभ खगोलीय घटना होने जा रही है, उसके बहुत अर्थ निकाले जा रहे हैं। इस घटना को बहुत अहम माना जा रहा है। ज्योतिष की नजर में गुरु और शनि का योग बेहद अहम माना जाता है। सोशल मीडिया पर भी इसकी बहुत चर्चा है। गूगल सर्च इंजन ने भी इसका डूडल बनाकर इसे खास तवज्जो दी है। शनि तत्काल फल देनेवाले ग्रह हैं और शनि-बृहस्पति की युति सर्वाधिक शुभ होती है, इसलिए कोरोना महामारी जैसे वर्तमान संकट से भी देश को राहत मिल सकती है। गुरु और शनि का मिलन होना सम संबंध को दर्शाता है। यानी ये दोनों ही ग्रह एक-दूसरे से किसी प्रकार का बैर नहीं रखते। शनि को कर्मों का देवता माना जाता है, तो वहीं गुरु आपको अच्छे कर्मों का फल देते हैं और आपके कॅरियर की दशा और दिशा तय करते हैं। सौरमंडल में होने जा रही खगोलीय घटना का आकलन ज्योतिष शास्त्री भी अपने तरीके से कर रहे हैं। इस दिन बृहस्पति और शनि ग्रह एक-दूसरे के काफी करीब रहेंगे। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक इसके कारण राजनीतिक घटनाक्रम में बदलाव होगा और इसका लाभ सत्ताधीश को मिलेगा। जब शनि और बृहस्पति एक राशि और एक अंश में होंगे तो दोनों ग्रह उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में रहेंगे, जिसके स्वामी शनि हैं। दूसरी ओर यह संयोग मकर राशि में बन रहा है जो शनि की स्व-राशि है तथा बृहस्पति की नीच राशि है।
क्या कहती है ज्योतिष गणना
ज्योतिष शास्त्र में इसके प्रभाव का वर्णन किया गया है। वराह मिहिर लिखते हैं कि जब शनि-बृहस्पति की युति इतने करीब से होती है तो देश - समाज के लिए शुभ फलदायी होती है तथा समाज में अप्रत्याशित बदलाव होता है, धन-धान्य की भी वृद्धि होती है। ज्योतिष शास्त्री आचार्य पवन त्रिपाठी कहते हैं कि 21 दिसंबर, 2020 को बृहस्पति और शनि मकर राशि में छह अंश पर साथ-साथ रहेंगे। यह एक दुर्लभ संयोग है, जब दोनों महत्वपूर्ण ग्रह एक राशि में एक अंश पर रहेंगे। शनि को ज्योतिष विज्ञान में पाप (क्रूर) ग्रह माना गया है और बृहस्पति को सर्वाधिक शुभ ग्रह, लेकिन शनि भी अपना गुरु बृहस्पति को ही मानते हैं, इसलिए ज्योतिष की भाषा में कहें तो शनि बृहस्पति को पीड़ित नहीं करते हैं।
पिछली बार 1623 में हुआ था यह दुर्लभ संयोग
खगोल शास्त्रियों के अनुसार ये दोनों ग्रह इससे पहले 17वीं शताब्दी में महान खगोलविद गैलीलियो के जीवनकाल में जुलाई, 1623 में एक-दूसरे के इतना करीब आए थे, लेकिन सूर्य के नजदीक होने के कारण तब उन्हें देख पाना लगभग असंभव था। इस बार यदि मौसम अनुकूल रहे तो सूर्यास्त के बाद यह दृश्य आसानी से देखा जा सकेगा। खगोलविदों के अनुसार पृथ्वी से देखने पर अहसास होगा कि ये दोनों ग्रह एक-दूसरे के ऊपर आ गए हैं, लेकिन वास्तव में दोनों छह अंश पर होने के बावजूद एक दूसरे से 73.6 किलोमीटर दूर रहेंगे।