नालों और गटरों में मौतों का कौन है जिम्मेदार ?
डॉ. चन्दर सोनाने
आपको याद है , जब भी हमारे घर के सामने की गटरों और नालों में गंदा पानी एवं गंदगी जमा हो जाती है तो हमारे क्या हाल होते हैं ? बदबू और दुर्गंध के मारे हमारा जीना हराम हो जाता है ! नगर पालिका हो या नगर निगम हम अपने पूरे परिवार के साथ उन्हें हजारों लानत भेजते हैं और जितनी भी गालियाँ आती है वे सभी दे डालते हैं जिससे कि वह गटर या नाले की तुरंत सफाई कर दें , ताकि दुर्गंध से आपका छुटकारा हो सकें ।
किन्तु आपने जब कभी भी नालों और गटरों की सफाई करते सफाई कर्मचारियों को देखा होगा तो मारे दुर्गंध के आप तुरंत अपनी नाक पर रुमाल रख कर वहाँ से हट गए होंगे ! किन्तु उनका क्या हाल होता होगा जो गंदगी और दुर्गंध से भरे उन गटरों और नालों में सफाई के लिए पूरे डूब जाते हैं ? आपने इस बारे में कभी सोचा है ? नहीं सोचा तो सोचें , जरूर सोचें कि वे हमारे लिए यह सब कैसे करते हैं !
देश के हर एक संवेदनशील व्यक्ति को यह सब सोचने के लिए मजबूर किया मैगसायसाय पुरस्कार से सम्मानित श्री बैजवाड़ा विल्सन ने । पिछले दिनों कौन बनेगा करोड़पति के कर्मवीर एपिसोड में आये श्री विल्सन ने वहाँ पर जो जानकारी दी , वह रोंगटे खड़े करने वाली थी। उन्होंने बताया कि देश भर में मैला ढोने और नालों एवं गटरों की सफाई के लिए मेनहोल में घुस कर गंदगी निकलना गैरकानूनी है और उन पर प्रतिबंध है । इसके बावजूद देश भर में यह गैरकानूनी काम धड़ल्ले से हो रहा है ! और तो और नगर पालिका और नगर निगम द्वारा ही अपने सफाई कर्मचारियों से यह गैर कानूनी काम करवाया जा रहा है। इसके लिए उन्हें मूलभूत सुविधाएँ भी नहीं दी जारी है ।
श्री विल्सन ने और भी अनेक दुखद और आश्चर्यजनक बातें बताई । आइये , आप भी जान लें , यदि आपने वह एपिसोड नहीं देखा हो तो ! उन्होंने बताया कि मेनहोल में सफाई के दौरान हर साल अनेक सफाई कर्मचारियों की जान भी चली जाती है । इसी कारण उन्होंने सफाई कर्मचारी आंदोलन की स्थापना कर उनकी मदद की शुरुआत की और उन्हीं के आवेदन पर सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में आदेश दिया था कि सरकार युद्ध स्तर पर कार्रवाई कर इस जानलेवा प्रथा को समाप्त करें । इसके साथ ही यह भी आदेश दिया गया था कि सरकार 1993 से अभी तक मेनहोल में सफाई के दौरान अपनी जान गवां चुके लोगों की सूची तैयार कर प्रत्येक मृतक के परिवारजनों को 10 - 10 लाख रुपये का मुआवजा राशि देंवे । किन्तु अभी तक किसी भी राज्य ने सूची तक तैयार नहीं की मुवावजा देना तो दूर की बात है । ऐसी स्थिति को देखकर ही श्री विल्सन ने देश भर में अपने आंदोलन के माध्यम से 125 दिन की भीम यात्रा निकाल कर मृतकों की सूची तैयार की । सूची बनी , कुल 1670 सफाई कर्मचारियों ने इस काम में अपनी जान गंवा दी है । उन्होंने यह सूची सरकार को दी । किन्तु सरकार ने उस सूची को माना ही नहीं ! इसलिए सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार मुवावजा देने का तो सवाल ही नहीं ! यही नहीं सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को भी नहीं माना तथा अभी तक इस काम को करते हुए मर जाने वाले लोगों की जानकारी के संकलन के लिए भी कुछ भी नहीं किया !
अब यहाँ सोचने वाली बात यह है कि हमारे लिए गटरों और नालों में घुस कर सफाई करने वाले लोग इंसान है या नहीं ? 21 वीं सदी में भी हम बाबा आदम जमाने की उसी जान लेने वाली अवैध प्रथा से उन्हें कब छुटकारा दिलाएंगे ? विदेशों में जब आधुनिक युग की तकनीक से मशीनों से गटरों और नालों की सफाई अनेक वर्षों से जब की जा रही है तो हमारे देश में यह व्यवस्था कब शुरू होगी ?
हमारे देश में अब यह व्यवस्था कर दी जानी चाहिए कि जो नगर पालिका या नगर निगम अपने यहाँ के नालों और गटरों की सफाई के लिए मेनहोल में अपने सफाई कर्मचारियों को उतारेगा और उसकी यदि मौत हो जाती है तो उस नगर पालिका के सीएमओ तथा नगर निगम के आयुक्त को उसकी मौत का जिम्मेदार माना जाकर उसके विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी तभी शायद उनकी आँखें खुलेगी और हालात सुधरेगी ! किन्तु यह करेगा कौन ? कौन ? ? ?
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