top header advertisement
Home - आपका ब्लॉग << ऑनलाइन पढ़ाई की क्या है वास्तविकता ?

ऑनलाइन पढ़ाई की क्या है वास्तविकता ?


 डॉ. चन्दर सोनाने
                कोरोना के कारण प्रदेश और देश में 1 अक्टूबर 2020 से स्कूलों और कॉलेजों में ऑनलाइन पढ़ाई शुरू की गई है । इस व्यवस्था को करीब एक माह हो रहा है । इस कारण अब हमें यह देखना चाहिए कि यह कितना उपयोगी है ? जमीनी धरातल पर इसकी वास्तविकता क्या है ?
               आइये , जानते हैं इसकी वास्तविकता ! इंटरनेट एंड मोबाईल एसोसिएशन ऑफ इंडिया तथा नील्सन की संयुक्त सर्वे रिपोर्ट बताती है कि देश के ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट उपयोग करने वालों की कुल संख्या 22 करोड़ 70 लाख है । इसके साथ ही शहरी क्षेत्रों में इसकी कुल संख्या 20 करोड़ 50 लाख है । यानी देश में इंटरनेट का उपयोग करने वाले लोगों की कुल संख्या 43 करोड़ 20 लाख है । यह सर्वे पुराना है । वे ये भी बताते हैं कि अब इसकी संख्या बढ़ कर 50 करोड़ 40 लाख हो गई है । हम यह भी मान लेते हैं । इस समय देश की आबादी देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के अनुसार 130 करोड़ है । हम इसे भी मान लेते हैं । यानी वर्तमान में देश में इंटरनेट को उपयोग करने वालों का प्रतिशत केवल 38 प्रतिशत ही है ।
                वर्ष 2011 की अधिकृत जनसंख्या के अनुसार देश की जनसंख्या 121 करोड़ 8 लाख और प्रदेश की जनसंख्या 7 करोड़ 26 लाख है । इन कुल जनसंख्या में से देश में 68.9 प्रतिशत आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में और 31.1 प्रतिशत आबादी शहरी क्षेत्रों में निवास करती है । इसी प्रकार मध्यप्रदेश में 72.36 प्रतिशत आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में और 27.63 प्रतिशत आबादी शहरी क्षेत्रों में रहती है । यानी देश की करीब दो तिहाई और प्रदेश की लगभग तीन चौथाई आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है ।
अब आते हैं असल बात पर ! उपर्युक्त स्थितियों में जब शहरी क्षेत्रों में ही सही नेटवर्क नहीं मिल पाता है । कभी भी नेट चला जाता है । ऐसी परिस्थिति में ग्रामीण क्षेत्रों के क्या हाल है ? वहाँ के तो भगवान ही मालिक है ? सही स्थिति भुक्तभोगी ही बता सकता है । ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों के शिक्षकों और कॉलेजों के प्राध्यापकों से सही एवं वास्तविकता पूछिये ! वे ही बताते हैं सही हालत ! केंद्र और राज्य सरकार को उनसे ये पूछना चाहिए कि एक माह बाद ऑनलाइन पढ़ाई की क्या है वास्तविकता ?
                वास्तविकता चोंकाने वाली है ! वे बताते हैं कि कोरोना के पहले कॉलेजों में विद्यार्थियों की उपस्थिति 20 से 60 प्रतिशत ही रहती थी । स्कूलों में जरूर अधिक रहती थी । किन्तु अब कोरोना काल में ऑनलाइन पढ़ाई में विद्यार्थियों की उपस्थिति केवल 20 से 30 प्रतिशत तक ही रहती है । ग्रामीण क्षेत्रों में तो स्थिति और भी बुरी है । गरीब विद्यार्थियों के पास स्मार्ट फोन ही नहीं है । शहरी क्षेत्र हो या ग्रामीण क्षेत्र नेटवर्क की हालत बहुत खराब है। पढ़ाते - पढ़ाते कभी भी नेट चले जाता है । कभी विद्यार्थियों को शिक्षक की आवाज सुनाई नहीं देती तो कभी विद्यार्थियों के सवाल पूछने पर शिक्षकों को ही आवाज सुनाई नहीं देती । अधिकांश शिक्षक और प्राध्यापक सरकार के आदेश का मन मारकर खानापूर्ति कर रहे हैं।स्कूलों और कॉलेजों में नेट के लिए अधोसंरचना तो अपवाद को छोड़कर कहीं है ही नहीं । शिक्षक और प्राध्यापक अपने - अपने मोबाइल फोन और लैपटॉप पर अपने ही खर्चे पर मजबूरी में नोकरी बचाने के लिए पढ़ा रहे हैं।अपवाद को छोड़कर कुल 40 मिनिट के पीरियड को वे 20 - 25  मिनिट में निपटा देते हैं ।
केंद और राज्य सरकार ने स्कूलों और कॉलेजों में ऑनलाइन पढ़ाई के आदेश तो दे दिये हैं किंतु किसी ने भी इसके लिए अधोसंरचना के निर्माण के बारे में न तो सोचा और न ही कुछ भी सुविधाएँ जुताई ! इस कारण एक अच्छी योजना औपचारिता बन कर रह गई है । केंद्र और राज्य सरकार को ऐसी स्थितियों में कम से कम कॉलेजों में तो नियमित पढ़ाई शीघ्र शुरू कर देनी चाहिए। देखते हैं , हमारी सरकार हमारे बच्चों के भविष्यों के लिए क्या करती है ?
                                                      ----------०००----------

Leave a reply