गाँधी जी के जीवन से मिलती है फाइनेंशियल मैनेज्मेंट की सीख
महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) और 'फाइनेंस' या 'इनवेस्टमेंट' (Finance or Investment) के बीच क्या रिश्ता हो सकता है. आप कह सकते हैं कुछ भी नहीं. बापू जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी भौतिकतावाद से दूर रहकर गुजारी, उनकी जिंदगी में पैसों का कोई सीधा रोल नहीं दिखता. लेकिन इसका ये मतलब तो कतई नहीं कि पैसों की महत्ता ही नहीं.
बापू के आदर्श जिंदगी के हर पहलू के लिए प्रामाणिक हैं, चाहे वो चरित्रनिर्माण की बात हो, समाज के उत्थान की या फिर आत्म-निरीक्षण की. उसी तरह बापू का जीवन आपके वित्तीय आदर्शों के लिए भी मददगार साबित हो सकता है. महात्मा गांधी की 151वीं जयंती के मौके पर हम आपको बताने जा रहे हैं कि उनके जीवन से सीख लेते हुए कैसे आप अपने जीवन की फाइनेंशियल प्लानिंग (Financial Planning) कर सकते हैं.
फिजूलखर्ची पर लगाम
महात्मा गांधी जब कानून की पढ़ाई करने के लिए इंग्लैंड (England) गए, तो उन्होंने पूरी तरह से खुद को जेंटलमैन बनाने का फैसला किया. ल्रदन के सबसे फैशनेबल और महंगे दर्जियों से सूट सिलवाए. घड़ी में लगाने के लिए भारत से सोने की दुलड़ी चैन भी उन्होंने मंगवा ली. नाच-गाने की शिक्षा लेने लगे. सिल्की टोपी भी उन्होंने खरीद. लेकिन इस दौरान वो अपनी पाई-पाई का हिसाब रखते थे.
एक दिन उन्होंने जब अपने खर्चों को उठाकर देखा तो आभास हुआ कि ऐशो आराम की चीजें जुटाने में उन्होंने बहुत फिजूलखर्ची कर दी. उसी वक्त उन्होंने ये तय किया कि वो ये सब बंद करेंगे.
वो रहने के लिए छोटे से कमरे में शिफ्ट हो गए, आने जाने के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया और खुद से सादा और सस्ता भोजन बनाने लगे.
जितनी जरूरत हो उतना ही रखो
एक बार गांधी जी की धोती कहीं से फटी हुई थी, किसी ने उनसे कहा कि बापू आपकी धोती तो फट गई है. गांधी जी मुस्कुराए और सीधा बाथरूम में चले गए, वहां उन्होंने अपनी धोती के उस हिस्से को छिपा दिया जहां से वो फटा हुआ था, लौटकर उस व्यक्ति से पूछा अब बताओ कहां से फटी है. गांधी जी कि ये मितव्ययता हमारी जिंदगी की आज की जरूरत है, जब हम BUY 2 GET 1 FREE के चक्कर में जरूरत से ज्यादा चीजें खरीद लेते हैं. गांधी जी ने एक बार कहा था, ये दुनिया सभी की जरूरतों के लिए पर्याप्त है, लेकिन किसी एक लालची के लिए पर्याप्त नहीं.
छोटा ही सही, पहला कदम जरूरी है
निवेश को लेकर अक्सर लोग ये सोचते हैं कि पहले कुछ पैसे इकट्ठा कर लूं, फिर शुरू करूंगा, ऐसा करते करते वो या तो कभी निवेश शुरू ही नहीं कर पाते और जब करते हैं तो काफी वक्त बीत चुका होता है. महात्मा गांधी ने जब देश को आजादी दिलाने के लिए लड़ाई शुरू की थी, तो अचानक से उनके पीछे पूरा देश नहीं खड़ा हुआ था.
उन्होंने धीरे धीरे एक छोटी लड़ाई के रूप में शुरुआत की, लोग जुड़ते गए और धीरे धीरे इसने विशाल आंदोलनों को रूप ले लिया, जिसने अंग्रेजों को देश से खदेड़ दिया. मतलब ये कि ये मायने नहीं रखता कि आपका निवेश कितना बड़ा या छोटा है, मायने रखता है पहला कदम.
अनुशासन से ही कामयाबी
साबरमती आश्रम में सभी लोग एक साथ रसोईघर में बैठकर खाना खाते थे और सबके साथ गांधीजी भी खाते थे. भोजनालय का एक नियम था कि जो भी भोजन शुरू होने से पहले भोजनालय में नहीं पहुचता था उसे अपनी बारी के लिए बरामदे में इंतजार करना पड़ता था. क्योंकि भोजन शुरू होते ही रसोईघर के दरवाजे को बंद कर दिया जाता था ताकि समय से न आने वाला व्यक्ति अन्दर न आने पाए.
एक दिन गांधी जी खुद भी लेट हो गए. रसोई का दरवाजा बंद था तो वो भी बाहर खड़े होकर इंतजार करने लगे. ये देख एक व्यक्ति उनके पास आया और बोला, बापू आप के लिए क्या नियम है, आप अंदर जाएं और खाना खा लें. इस पर गांधीजी बोले - अनुशासन का पालन करना तो सबका कर्तव्य होता हैं तो मेरा क्यों नहीं, मैंने अनुशासन का उलंघन किया है इसलिए मुझे भी सजा पूरी ही भुगतनी चाहिए.
गांधी जी कहते थे कि जीवन में अनुशासन है तो सबकुछ हासिल किया जा सकता है. इसलिए अगर आपके जीवन में कोई वित्तीय लक्ष्य है. तो उसे हासिल करने के लिए भी अनुशासन बेहद जरूरी है. जैसे अगर आपने निवेश की शुरुआत की है तो उसे नियमित रूप से करते रहें, चाहे हालात कैसे भी हों, निवेश जारी रहना चाहिए.