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शर्मनाक घटना : दलित महिला के शव को दाह संस्कार से रोका


    डॉ. चन्दर सोनाने
          15 अगस्त 1947 को भले ही देश आजाद हो गया हो । धर्म और जाति के आधार पर किसी से भी भेदभाव नहीं करने और सबको समानता का अधिकार देने के लिए 26 जनवरी 1950 को देश का संविधान भी बन गया हो , किन्तु आज भी एक दलित महिला के शव को गांव के शमशान में दाह संस्कार से सिर्फ इसलिए रोक दिया गया कि जो महिला मरी वह स्वर्ण समाज की नहीं थी । वह दलित थी । दलित होना ही उस महिला का और उसके परिवार का दोष था । यह सब शहर के लोगों को एक कहानी सा लगेगा , किन्तु गाँव के लोगों के लिए यह एक कहानी नही है बल्कि एक कड़वी सच्चाई है ।
           आइए , आज आपको इसी सत्य घटना से रूबरू कराते हैं ! मध्यप्रदेश के मुम्बई कहे जाने वाले शहर इंदौर जिले की देपालपुर तहसील का एक गांव है चटवाड़ा । करीब एक हजार की आबादी वाले इस गांव  में करीब 80 प्रतिशत आबादी सवर्णों की और करीब 20 प्रतिशत आबादी दलितों की है । इसी गांव में हाल ही में 10 सितंबर को सुबह करीब 65 वर्षीय महिला कमलाबाई का देहांत हो गया । परिवार के लोगों ने गाँव के ही शमशान घाट पर उसका दाह संस्कार करना चाहा तो गांव वालों ने उसका विरोध किया । उस महिला का दोष ये था कि वह दलित थी ! उसका ये दोष उनके लिए अक्षम्य था !
              मृतक महिला के परिवार के लोगों  ने सवर्ण समाज के लोगों  से लाख अनुनय विनय किया किंतु वे तस से मस नहीं हुए । किसी ने देपालपुर इस घटना की खबर कर दी । वहाँ से तहसीलदार साहेब आ गए । तहसीलदार ने सवर्णों को समझाया किन्तु, भला वे कैसे मान जाते । सवर्णों के शमशान में एक दलित महिला के शव का कैसे दाह संस्कार होने देते । उन्होंने एक नई चाल चली । उन्होंने बताया कि कई साल पहले गाँव में शमशान नहीं था तो गांव के ही पटेल साहेब ने मेहरबानी करके अपनी जमीन शमशान के लिए दी है। गांव वालों को तो शमशान मिल गया , किन्तु इस शमशान में दलितों के शव के दाह संस्कार की सख्त पाबंदी लगाई गई थी । अब चूंकि शमशान घाट निजी जमीन पर था और पटेल साहेब एक दलित समाज की महिला के अंतिम संस्कार की इजाजत नहीं देते हैं तो बेचारे तहसीदार साहेब क्या करते ? उनके हाथ बंधे हुए थे ! इसलिए उन्होंने स्वर्ण समाज के शमशान में गांव की ही एक दलित समाज की महिला के दाह संस्कार करने से अपने हाथ ऊँचे कर दिए !
               पूरे गाँव में दलितों के पक्ष में बोलने वाला केवल एक व्यक्ति स्वर्ण समाज से आगे आया ।  किन्तु उसकी भी एक नहीं सुनी गई । गांव का पूरा स्वर्ण समाज  उनके समाज के शमशान घाट पर एक दलित महिला के दाह संस्कार के लिए तैयार नहीं हुआ। इस सब में सुबह से शाम हो गई । हताश और निराश दलित समाज के लोग अपने समाज की महिला का अंतिम संस्कार गांव के बाहर जंगल में करने के लिए मजबूर हो गए । 
                 उस समय आजादी दूर खड़ी होकर आँसू बह रही थी ! देश का समानता का संदेश देने वाला संविधान खून के आँसू रो रहा था ...
इस शर्मनाक घटना के मीडिया में आ जाने के बाद अब सवाल ये उठ रहे हैं कि जिला प्रशासन क्या कर रहा है ? उसने गाँव के पटेल और जिन लोगों ने एक दलित समाज की महिला के शव को गांव  के ही शमशान घाट पर दाह संस्कार से रोका , उनके विरुद्ध अभी तक कोई भी प्रकरण दर्ज क्यों नहीं किया ? क्या यह दलित समाज के साथ स्वर्ण समाज के लोगों का भेदभावपूर्ण व्यवहार नहीं है ? अनुसूचित जाति ,  जनजाति अत्याचार अधिनियम का ये खुला उलंघन का मामला नहीं है ?
               उक्त घटना के बाद जब जिला प्रशासन ने दोषी व्यक्तियों के विरुद्ध कोई कार्रवाही नहीं कि तो डॉ. अंबेडकर राष्ट्रीय युवा संघ के अध्यक्ष राजेश सोनगरा और उनके साथियों  ने गांव जाकर और पीड़ितों से मिलने के बाद देपालपुर में एस डी एम को राष्ट्रपति जी के नाम एक ज्ञापन सौंपकर दोषियों के विरुद्ध सख्त कार्रवाही करने के लिए अनुरोध किया है ।
              मध्यप्रदेश के मुखिया मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान एक संवेदनशील मुख्यमंत्री के रूप में जाने जाते हैं । उनसे अपेक्षा है कि वे इस मामले की निष्पक्ष जाँच कराकर दोषियों को दंड देंगे । इतना ही नहीं बल्कि वे ये भी सुनिश्चित करेंगे कि भविष्य में इस गाँव में ही नहीं बल्कि प्रदेश में और कहीं भी इस प्रकार की शर्मनाक घटना की पुनरावृति नहीं होने पावें ।

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