मुख्यमंत्री एवं शासन उज्जैन में नगर पूजा एवं महारूद्राभिषेक का अनुष्ठान कोरोना महामारी के निवारण एवं सुख समृद्धि हेतु करवाएं
द्वारकाधीश चौधरी
उज्जैन। नगर पूजा चैत्र शुक्ल पक्ष की अष्टमी एक अप्रैल को होनी थी किंतु इस वर्ष कोरोना महामारी के कारण प्रशासन द्वारा नगर पूजा नहीं की गई। शहर के पुरातत्व विद्वानों, ज्योतिषियों, समाजसेवी एवं बुजुर्ग पंडितों ने बताया कि महामारी, अनिष्ट एवं अन्य प्रकार की प्राकृतिक आपदा से बचाने के लिए अद्भूत नगर पूजा का विधान उज्जैन में राजा विक्रमादित्य के समय से है, जो सुख, समृद्धि एवं शांति हेतु की जाती है किंतु इस वर्ष नगर पूजा नहीं होने के कारण कोरोना महामारी जैसी आपदा धार्मिक नगरी उज्जैन की जनता को भुगतना पड़ रहा है, जिसके कारण कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या 601 एवं मृतकों की संख्या 54 हो गई है। शासन ने शासकीय कार्यालय, उद्योग, व्यापार, व्यवसाय, मंडी, रेल, परिवहन आदि चालू किए है, उसके साथ ही मंदिरों को भी चालू किया जाना चाहिए। शासन एवं प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चैहान को चाहिए कि जिला प्रशासन को निर्देशित कर विधि विधान से नगर पूजा करना चाहिए साथ ही भगवान श्री महाकालेश्वर में महारूद्राभिषेक वैदिक मंत्रोच्चार के साथ अनुष्ठान किया जाना चाहिए जिसके कारण कोरोना संक्रमण से लोक रक्षा के लिए राहत मिल सकें।
उज्जैन नगर में अद्भूत नगर पूजा का विधान अनिष्ट निवारण एवं सुख समृद्धि के लिए की जाने वाली पूजा राजा विक्रमादित्य के समय याने विक्रम संवत प्रारंभ होने के समय से अभी तक चली आ रही है, ऐसी किवदंतियां है। नगर पूजा में नगर के विभिन्न देवी मंदिर, भैरव मंदिर, हनुमान मंदिर सहित 41 मंदिरों पर पूजा अर्चना की जाती है। पूजा के दौरान 27 किलोमीटर मदिरा की धार मार्ग पर निरंतर डालते हुए चलता है एवं मंदिरों पर बल-बाकल (पूड़ी सब्जी) का भोग अर्पित करते है, देवी मंदिरों पर माता की श्रृंगार सामग्री, हनुमान मंदिरों पर सिंदूर, लाल कपड़ा एवं भैरव मंदिरों पर तेल, सिंदूर इत्यादि अर्पित किया जाता है। नगर पूजा महालया-महामाया मंदिर में मदिरा की धार जिले के जिलाधीश द्वारा अर्पित कर पूजा-अर्चना प्रारंभ की जाती है। शहर में बढ़ रही महामारी को लेकर बुद्धिजीवियों ने मांग की कि नगर पूजा विधि विधान से की जाएं, उसी आधार पर तत्कालीन जिलाधीश शशांक मिश्र ने एक माह बाद अर्थात 3 मई को महालया-महामाया मंदिर में जाकर औपचारिक रूप से पूजा-अर्चना की किंतु नगर के अन्य देवी देवताओं की पूजा-अर्चना नहीं की गई थी, इसी मान्यता के आधार पर शहर में महामारी का प्रकोप थम नहीं रहा है।
राजा विक्रमादित्य के समय से उज्जैन में नगर पूजा का विधान है और वर्तमान में यह शासकीय रूप ले चुकी है। जनश्रुतियों के अनुसार प्राचीन समय में उज्जयिनी में चैसठ योगिनी देवियां राज किया करती थी एवं एक दिन के लिए राज्योंपभोग के लिए राजा नियुक्त करती थी तथा राज्योंपरांत रात्रि में उस राजा का भक्षण कर लिया करती थी। यह क्रम इसी प्रकार चलता रहता था, इसी क्रम में एक दिन एक गरीब माता-पिता विलाप कर रहे थे क्योंकि उनके पुत्र के राजा बनने की बारी थी। राजा विक्रमादित्य उनके यहां अतिथि बनकर ठहरे थे और उनसे उनके विलाप का कारण जानना चाहा। उन्होंने बताया कि उनके इकलौते पुत्र के राजा बनने की बारी है जिसको राज्योपभोग उपरांत देवियां भक्षण कर लेगी। विक्रमादित्य ने उन्हें आश्वस्त किया कि वे उनके पुत्र की जगह जाएंगे। राजा विक्रमादित्य ने जिस मार्ग से देवियां आती थी उस मार्ग को मिष्ठान, इत्र, वस्त्रालंकार आदि अनेक वस्तुओं से सुसज्जित कर दिया। देवियां उन सभी चीजों का ग्रहण करके प्रसन्न हुई एवं महल तक पहुंची। राजा विक्रमादित्य महल में स्वयं पलंग के नीचे छुप गए एवं पलंग पर एक मिष्ठान का पुतला रख दिया, सभी देवियां संतुष्ट हो गई थी एवं राजा विक्रमादित्य की चतुराई से संतुष्ट हुई, इसलिए किसी ने भी उस मिष्ठान के पुतले का भक्षण नहीं किया परंतु उनमें से दो देवियां उस पुतले पर झपट पड़ी एवं उसका भक्षण कर लिया जिससे अन्य देवियां रूष्ट हो गई और उन्हें श्राप दे दिया कि आज से तुम “भूखी माता” के नाम से जानी जाओगी एवं नगर की बाहरी सीमा पर निवास करोगी। परंतु भूखी माता के अनुनय-विनय पर अन्य देवियों ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि वर्ष में होने वाली नगर पूजा से पूर्व तुम्हें तुम्हारा भोग दिया जाएगा। देवियां विक्रमादित्य से बहुत प्रसन्न हुई और उनसे वरदान मांगने को कहा तब विक्रमादित्य ने देवियों से बली प्रथा समाप्त करने का अनुरोध किया एवं विक्रमादित्य ने वचन दिया कि चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को आपकी धूमधाम से नगर पूजा होगी इससे प्रसन्न होकर देवियों ने विक्रमादित्य को उज्जयिनी का राजपाट सौंपकर यहां से प्रस्थान कर गई एवं देवियों ने भूखी माता को आशीर्वाद दिया कि आज से तुम नगर सीमा के उस पार शिप्रा तट पर विराजमान हो जाओं, तभी से यह मंदिर यहां स्थित है।
राजा महाकाल की नगरी में श्रावण-भादौ मास, कार्तिक-अगहन, दशहरा एवं हरिहर मिलन को राजा महाकाल प्रजा को दर्शन देने निकलते है कि मेरी प्रजा दुःखी तो नहीं है किंतु उनकी प्रजा कोरोना महामारी जैसे प्रकोप से परेशान है और कोरोना संक्रमित मरीज 601 एवं 54 मौते हो चुकी है और 25 मार्च से लाॅकडाउन होने के कारण तथा जिला रेड जोन में होने से जिले की जनता घर पर है तथा सभी धर्मस्थल ज्योतिर्लिंग श्री महाकालेश्वर मंदिर, राजा विक्रमादित्य की आराध्य देवी एवं शक्तिपीठ माता हरसिद्धि देवी, भगवान श्री कृष्ण की शिक्षा स्थली सांदीपनि आश्रम, मंगलग्रह की उत्पत्ति का स्थान भगवान श्री मंगलनाथ, क्रिया-कर्म का प्रमुख स्थान भगवान श्री सिद्धवट, भगवान श्री चिंतामण गणेश मंदिर, भगवान महाकाल के सेनापति भगवान श्री कालभैरव, कवि कालिदास की आराध्य देवी मां भगवती गढ़कालिका माता, मां भूखी माता मंदिर, मां चैसठ योगिनी मंदिर, वैष्णव समाज का श्रीनाथ मंदिर एवं सांदीपनि मंदिर आदि सभी धर्मस्थल बंद है, जिसके कारण धार्मिक श्रद्धालु तप, तपस्या, आराधना, साधना, मंत्रोच्चार, यज्ञ एवं पूजा-अर्चन घर पर ही बैठकर कर रहे है। श्रद्धालुओं का कहना है कि अगर मंदिरों के पट खुल जाएंगे तो श्रद्धालु द्वारा जो साधना-आधराना की जाएगी, उससे भगवान प्रसन्न होकर आशीर्वाद स्वरूप महामारी का प्रकोप कम करेंगे जिससे धर्मप्राण जनता को राहत मिलेंगी।
प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चैहान जिनकी आस्था भगवान श्री महाकाल के प्रति है और उन्होंने चैथी बार मुख्यमंत्री पद ग्रहण करने के दो माह होने आ गए है किंतु वे शिव की साधना हेतु भगवान महाकालेश्वर की पूजा-अर्चना करने नहीं आए है क्योंकि लाॅकडाउन के कारण ज्योतिर्लिंग श्री महाकालेश्वर के दर्शन आम दर्शनार्थियों के लिए प्रतिबंधित है। मंदिर में पूजा-अर्चन, श्रृंगार हो रहा है जो पुजारियों के द्वारा किया जा रहा है। शासन एवं प्रदेश के मुख्यमंत्री को चाहिए कि कोरोना महामारी जैसी आपदा को समाप्त करने के लिए जिला प्रशासन को निर्देशित कर विधि विधान से नगर पूजा कराई जाना चाहिए तथा भूतभावन श्री महाकालेश्वर मंदिर में 21-31-51 पुजारी, पुरोहितों और संस्कृत विद्वानों से महारूद्राभिषेक वैदिक मंत्रोच्चार के साथ अनुष्ठान कराना चाहिए ताकी जनता को भोलेनाथ कोरोना के प्रकोप से लोक रक्षा के लिए उनकी प्रजा को राहत मिल सकें। शासन ने शासकीय कार्यालय, उद्योग, व्यापार, व्यवसाय, मंडी, रेल, परिवहन, शराब एवं भांग की दुकानें आदि चालू किए है, उसके साथ ही मंदिरों को भी चालू किया जाना चाहिए ताकि श्रद्धालु मंदिरों में तप, तपस्या, साधना एवं आराधना करेंगे तो ही कोरोना जैसे प्रकोप से जनता को मुक्ति मिलेंगी।