हे प्रधानमंत्री, मजदूरों के लिए कुछ करो !
डॉ. चन्दर सोनाने
देश के प्रवासी मजदूरी की बेबसी, लाचारी, मजबूरी ने यह सिध्द कर दिया है कि कोरोना से भी बड़ी भूख होती है । अपने मासूम बच्चों, पत्नी और अपने परिवार के साथ मई की चिलचिलाती धूप में वे अपने सपनों की दुनिया से निकलकर यथार्थ की दुनिया में आ गए हैं । उन्हें किसी से कुछ नहीं चाहिए ! बस वे केवल ये चाहते हैं कि फिर से अपने घर, अपने गांव , अपनी जन्म भूमि पहुँच जाएँ ।
बेबस, लाचार और मजबूर मजदूरों का यह चाहना क्या पाप है ? उन्होंने बस ढूंढी, रेल तलाशी , अन्य साधन देखें ! अपनी कर्मभूमि की सरकार की ओर आशा भरी निगाओं से देखा, केंद्र की सरकार से आस रखी , किन्तु जब उनकी आशा निराशा में बदल गई तो वे निकल पड़े पैदल !
इन मजदूरों की मजबूरी को केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी समझ ही नहीं पाये । प्रधानमंत्री ने कोरोना की रोकथाम के लिए समय पर लॉक डाउन किया, इससे कोई भी इंकार नहीं कर सकता । किन्तु हमारे देश के प्रधानमंत्री प्रवासी मजदूरों की समस्या को समझ ही नहीं पाए । यहीं उनसे सबसे बड़ी चुक हो गई । किन्तु अभी भी वे इस मानवीय समस्या को पूरी तरह समझ नहीं पाए हैं । यदि समझ पाते तो अपनी भूल को सुधारने की कोशिश करते। किन्तु लॉक डाउन - 4 के शुरू हो जाने के बावजूद उन्होंने मजदूरों को अपने अपने घरों तक पहुंचाने की ठोस कार्यवाही नहीं की है ।
इन मजबूर मजदूरों को अपनी अपनी जन्म भूमि और अपने अपने घर पहुंचाने ले लिए क्या केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री क्या ये नहीं कर सकते थे कि बेबस मजदूर जहाँ जाना चाहे वहाँ तक पहुंचाने के लिए केवल बस की ही व्यवस्था कर देते ।
पिछले दिनों केंद सरकार ने इतना जरूर किया है कि प्रवासी मजदूरों को अपने अपने घर जाने के लिए विशेष रेल चला दी । किन्तु ये पर्याप्त नहीं है । यदि ये पर्याप्त होती तो हजारों की तादात में अभी भी बेबस मजदूर पैदल निकलने ले लिए बाध्य नहीं होते !
इन लाचार मजदूरों को कृपया कोई 20 लाख करोड़ रुपये की लॉलीपाप नहीं दिखाएं । इन्हें ये सब यही चाहिये , बस उन्हें अपने परिवार के साथ अपने घरों को पहुँचा दीजिये । ये वहाँ अपने पुरूषार्थ , सामर्ध्य और अपनी मेहनत से अपने और अपने परिवार के लिए दो जून की रोटी का जुगाड़ कर ही लेंगे । हे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ! कृपया इन बेबस, लाचार, मजबूर मजदूरों के लिए कुछ करो ! कुछ करो !! कुछ करो !!!