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IAS Exam की तैयारी शुरू करने से पहले, खुद से पूछे ये जरूरी सवाल


हम सभी के पास ऊर्जा का एक संचित भंडार होता है, जो हमें प्रकृति एवं अपने परिवेष से प्राप्त होता है. यह भंडार सभी में एक जैसा नहीं होता. लेकिन इसके बारे में एक बहुत अच्छी बात यह है कि यह भंडार स्थायी नहीं होता है. इसे किसी भी सीमा तक बढ़ाया जा सकता है. जी हांं, किसी भी सीमा तक. यह सीमातीत है और इसको बढ़ाने की आपकी शक्ति, इस तथ्य का फैसला करती है कि जिसमें आप अपनी ऊर्जा लगा रहे हैं, उसका अंतिम परिणाम क्या होगा.

जाहिर है कि आई.ए.एस. बनने के लिए आपको अपनी वर्तमान ऊर्जा-क्षेत्र का विस्तार करना होगा. यहांं यदि आप मुझसे यह सवाल करते हैं कि “तो ऐसा किया कैसे जाये ?”, तो मैं इसे एक सही सवाल मानूंगा, और इस बात का भी, छोटा सा ही सही, एक प्रमाण मानूंगा कि आपमें ऐसा कुछ करने की इच्छा है. माफ कीजिएगा कि आपके इस प्रश्‍न का उत्‍तर मैं सीधे-सीधे न देकर एक सच्ची घटना के जरिए देने जा रहा हूं.

यह घटना साल 1995 की उस समय की है, जब डॉ. शंकरदयाल शर्मा हमारे देश के राष्ट्रपति थे और मैं उनका निजी सचिव था. वे सुबह लगभग 4 बजे उठ जाया करते थे और फिर दिन भर व्यस्त रहते थे. रात के दस बजे भी उनका चेहरा उसी तरह दमकता रहता था, जैसा कि सुबह दस बजे, जब वे ऑफिस में आते थे.
इस समय वे 77 वर्ष के हो चुके थे. उनकी यह ताजगी देखकर हम जैसे नौजवान अफसर हैरान रह जाते थे. एक दिन जब मुझसे रहा नहीं गया, तो मैं उनसे पूछ ही बैठा कि “सर, आपको इतनी एनर्जी मिलती कहांं से है.” उन्होंने धीरे से मेरी ओर आंखें उठाईं, अपने दोनों हाथों को कुर्सी के दोनों हत्थों पर तीन-तीन बार थपथपाया और फिर मुस्कुराकर अपनी आंंखें छत पर टिका दीं. मुझे उत्‍तर मिल चुका था.

उनका उत्‍तर क्या था? उनका प्रत्यक्ष उत्‍तर तो था कुर्सी से, यानी कि अधिकारों से. लेकिन इसके वास्तविक उत्‍तर दो थे. पहला यह कि “ऊर्जा मिलती है, उस काम के दायित्वबोध से, जो आप कर रहे हैं.” दूसरा उत्‍तर था कि ‘ऊर्जा मिलती है उस लक्ष्य से, जिसे पाने के लिए फिलहाल आप कर्म कर रहे हैं.' यानी कि ऊर्जा केवल हममें ही नहीं होती, बल्कि उसमें भी होती है, जिसके लिए हम लगे हुए हैं.

यानी कि आपके पास ऊर्जा के दो श्रोत हैं - एक आप स्वयं और दूसरा-आपका लक्ष्य आई.ए.एस. बनना.

अब मैं इस बारे में बात करने जा रहा हूं कि आई.ए.एस. बनने का लक्ष्य कैसे आपके लिए ऊर्जा के भंडार के रूप में काम करेगा और वह भी शारीरिक एवं मानसिक ऊर्जा से आगे ऊर्जा के तीसरे एवं अत्यंत महत्वपूर्ण चरण के रूप में, जिसे आप ‘भावनात्मक ऊर्जा' के नाम से जानते हैं.

समाज और बाजार किसी भी वस्तु की मात्र मालिकाना कीमत का निर्धारण करते हैं. आप इसके लिए इतना चुका दीजिये, वह वस्तु आपकी हो जायेगी. सही कीमत का तो निर्धारण करते हैं आप और आपके द्वारा निर्धारित कीमत ही इस बात का निर्धारण करती है कि इस वस्तु से आपको कितनी मात्रा में ऊर्जा मिलेगी. इसे आप इस उदाहरण से अच्छी तरह समझ सकेंगे कि एक करोड़पति पिता की संतान के लिए एक किलो सोने के खो जाने का कुछ भी दुख नहीं होगा, जबकि एक गरीब व्यक्ति की पत्नी अपने कान की बालियों के खो जाने पर ही अपनी कई रातों की नींद खो देगी.

अब मैं आता हूंं असली मुद्दे पर. आप आई.ए.एस. बनना चाह रहे हैं. आपका स्वागत है और आपका उद्देश्‍य प्रशंसनीय है. लेकिन बनना क्यों चाह रहे है? यदि आप इसलिए बनना चाह रहे हैं कि इसमें आपको एक अच्छी तनख्वाह वाली सरकारी नौकरी मिल जायेगी, तो मैं कहूंगा कि ऐसा करके आप एक विशाल वृक्ष को मात्र एक सूक्ष्म बिन्दु में तब्दील कर दे रहे हैं. स्पष्ट है कि ऐसा करके आप ऊर्जा के अपने संभावित भंडार को छोटा कर रहे हैं और यह लक्ष्य को पाने की दिशा में उठाया गया आपका पहला गलत कदम है. तो आपको करना क्या चाहिए, इसके बारे में मैं अगले ब्लाॅग में चर्चा करूंगा.

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