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गोवर्धन सागर से सीख लेने की जरूरत


                 डाॅ. चन्दर सोनाने
                    उज्जैन के प्रसिद्ध पौराणिक सप्तसागरों में से एक गोवर्धन सागर हाल ही में चर्चा का विषय बना हुआ है। यह गोवर्धन सागर 1927 के सरकारी रिकाॅर्ड के अनुसार 36 बीघा 18 बिस्वाजमीन पर फैला हुआ था। इस रिकाॅर्ड के अनुसार इस तालाब की पूरी जमीन सरकारी घोषित थी। लेकिन इसके बाद साल दर साल इस सरकारी सप्तसागर पर लोगों का कब्जा होता चला गया । और यही नहीं हुआ सरकारी रिकाॅर्ड में भी जमीन मालिकों के नाम भी जुड़ते चले गए। यह आश्चर्य हुआ, सबकी मिली भगत से। आज 2020 में तालाब के नाम पर उसका आकार मात्र साढ़े तीन बीघा है। यानी तमाम सरकारी जमीन पर लोगों का कब्जा हो गया है। कमोबेश जो हालत गोवर्धन सागर की है,बस उसी तरह उज्जैन के प्रसिद्ध अन्य सप्तसागरों की भी है। सागरों पर कब्जेधारियों की संख्या कम ज्यादा हो सकती है। गोवर्धन सागर की इस स्थिति से शासन और प्रशासन को सीख लेनी चाहिए। और ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के इन पौराणिक तालाबों का रिकाॅर्ड खंगालकर वहाँ से भी तमाम अवैध कब्जाधारियों को बेदखल कर स्थायी सीमांकन किया जाना चाहिए।
                शहर के मध्य में स्थित इस गोवर्धन सागर की जमीन पर अनेक लोगों की नजर थी। इसलिए यहाँ सबसे ज्यादा अतिक्रमण और कब्जा हो गया। ये मामला इसलिए उजागर हुआ कि उज्जैन तहसीलदार की जाँच रिपोर्ट के अनुसार इस तालाब के सर्वे क्रमांक 1281 में जमीन खरीदने वाले तमाम लोगों के नाम दर्ज हो गए है। इनमें से एक श्री अनिल जोशी ने सन 2015 में केस दायर कर दिया था। इस प्रकरण में व्यवहार न्यायाधीश ने वाद को निरस्त करते हुए जमीन तालाब की मानी है। तहसीलदार ने जाँच रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा है कि सर्वे क्रमांक 1281 पूर्व से ही तालाब की ही भूमि रही है और ये तालाब गोवर्धन सागर के नाम से प्रचलित है। इसे शासकीय किया जाना उचित होगा। तहसीलदार की रिपोर्ट उज्जैन कलेक्टर को प्रस्तुत कर दी गई। 
              कलेक्टर श्री शशांक मिश्रा के पाले में गेंद आने पर उन्होंने सख्त रूख अपना लिया। और हाल ही में हुई जनसुनवाई में ही कलेक्टर ने इस प्रकरण में एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दे दिये। तहसीलदार ने कलेक्टर के आदेश पर एक पटवारी को एफआईआर दर्ज करने भेज दिया, किन्तु वहाँ एक नई मुसीबत सामने आ गई। पता चला कि गोवर्धन सागर की कुल 36 बीघा 18 बिस्वा जमीन में से अभी तक केवल 1 बीघा ही सरकारी घोषित हुई है। 35 बीघा अभी सरकारी घोषित होना बाकी है। अब यह यक्ष प्रश्न उत्पन्न हो गया है कि जब तक गोवर्धन सागर की 35 बीघा जमीन शासकीय रिकाॅर्ड में दर्ज नहीं होगी तब तक पुलिस किस आधार पर एफआईआर दर्ज करेगी। हेै ना आश्चर्य की बात ? पौराणिक महत्व के इन सप्त सागरों में से एक गोवर्धन सागर आज से नहीं बल्कि कई दशकों से सरकारी तालाब है और था। किन्तु आज उसके अनेक वारिस पैदा हो गए है। अब इस सरकारी तालाब से इन अवैध रूप से कब्जाधारियों को किस तरह हटाया जाए, यह ज्वलंत प्रश्न प्रशासन के सामने आ खड़ा हुआ है। इस पर अत्यन्त ही गंभीरता के साथ गहन विचार विमर्श करने की आवश्यकता है। और इस सप्तसागर को अवैध कब्जाधारियों से मुक्त कराने के साथ ही शेष अन्य सप्तसागरों की भी सुध लेने की आवश्यकता है। वरना एक दिन इनतमाम सप्तसागरों की हालत गोवर्धन सागर जैसी ही हो जायेगी !
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