सशस्त्र सेना : महिला सशक्तिकरण
संदीप कुलश्रेष्ठ
लगता है आजकल हर महत्वपूर्ण कार्य सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के आदेश से ही हो पाता है। सरकार अपने स्तर पर तो कुछ नहीं करती है तब जाकर सुप्रीम कोर्ट को आगे होना होता है और वह मिसाल कायम करता है। हाल ही में ऐसा एक और प्रकरण आया है। अभी तक सशस्त्र सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन और कमांड पोस्टिंग नहीं दी जा रही थी। मजेदार बात यह है कि हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद सरकार उसके विरूद्ध सुप्रीम कोर्ट गई, तब सुप्रीम कोर्ट ने स्थायी कमीशन नहीं देने के पीछे सरकार की दलिलों को रूढ़िवादी बताते हुए मानसिकता बदलने की सलाह भी दी । कोर्ट ने आदेश दिया कि सेना में महिलाओं को स्थायी कमीश्न और पोस्टिंग आदेश तीन महीने में दिया जाये। अब सुप्रीम कोर्ट के कारण सही मायने में सशस्त्र सेना में महिलाओं का सशक्तिकरण हो पायेगा। हालांकि कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि उनका यह आदेश कॉम्बेट यानी सीधे युद्ध में उतरने वाली विंग पर लागू नहीं होगा।
17 साल लंबी कानूनी जंग जीती -
महिलाओं के हक की यह लड़ाई सन 2003 से शुरू हुई थी। तब सेना की 51 महिला अधिकारियों ने यह याचिका दिल्ली हाईकोर्ट में दायर की थी। इस पर 12 मार्च 2010 को जस्टिस श्री संजय किशन कोल ने महिलाओं के पक्ष में फैसला भी दे दिया था। किन्तु केन्द्र सरकार ने उसे नहीं माना और इस फैसले के विरूद्ध सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। इसी पर यह फेसला आया है।
सुप्रीम कोर्ट ने महिला सैन्य अफसरो की बहादुरी की सुनी कहानियाँ -
51 महिला अधिकारियों की जंग में उनकी वकील एश्वर्या भाटी भी शामिल थी। उसने सुप्रीम कोर्ट में 10 महिला सैन्य अफसरों की बहादुरी और साहस की कहानियाँ सुनाई। इन कहानियों ने भी अपना असर दिखाया और सुप्रीम कोर्ट ने महिला अफसरों के पक्ष में आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट में यह भी बताया गया कि कैसे महिला सैन्य अफसरों ने काबुल, पूर्वोत्तर क्षेत्र, जम्मूकश्मीर, बालाकोट एयर स्ट्राइक आदि में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
अब कौर कमांडर भी बन पायेंगी महिलाएँ -
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब सशस्त्र सेना की महिला अधिकारियों को कौर कमांडर बनने का भी मौका मिल सकेगा। अभी सेना में 1653 महिला अफसर है। यह कुल अफसरों की संख्या का 3.9 प्रतिशत है। वर्तमान में करीब 30 प्रतिशत महिलाएँ लड़ाकू क्षेत्र में तैनात है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के कारण सेना में पहली बार संविधान के अनुच्छेद 14 के अनुसार बराबरी का दर्जा मिल सकेगा। सही मायने में सुप्रीम कोर्ट का आदेश एक ऐतिहासिक फैसला है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अभिनंदन किया जाना चाहिए।
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