दिल्ली में भाजपा की हार के मायने
डॉ. चन्दर सोनाने
और दिल्ली में विधानसभा चुनाव की तस्वीर साफ हो गई। आप पार्टी को कुल 70 में से 62 सीट प्राप्त हो गई। भाजपा को केवल 8 सीट ही मिली। कांग्रेस पूर्व की तरह अपना खाता भी नहीं खोल पाई। दिल्ली के विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार के कई मायने है।
सबसे पहले हम बात करते हैं दिल्ली के विधानसभा चुनाव में भाजपा द्वारा सत्ता प्राप्त करने के लिए जो उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम को बांटने की नीति चलाई वो पूरी तरह से फैल हो गई। इसके साथ ही हर आम सभा में भाजपा के श्री अमित शाह और अन्य स्टार प्रचारकों द्वारा बार-बार भारत-पाक मुद्दा उछालना भी मतदाता द्वारा नकार दिया गया। दिल्ली के चुनाव ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि धर्म और जाति की राजनीति ज्यादा नहीं चलती है। हर बार धर्म की बैसाखी पर सवार होकर सत्ता प्राप्त नहीं की जा सकती। दिल्ली के मतदाता अन्य राज्यों की तुलना में राजनैतिक दृष्टिकोण से अधिक जागरूक है। यह उन्होंने सिद्ध भी कर दिखाया। वहाँ के मतदाताओं ने भाजपा की प्रतिपक्ष को देशद्रोही और आतंकवादी कहने की नीति को भी स्पष्ट रूप से नकार दिया है। उन्होंने सीएए के खिलाफ शाहीन बाग और जामिया के प्रदर्शनों को मुद्दा बनाकर लड़ी भाजपा को भी उसकी हैसियत बता दी है।
अब हम आप पार्टी और उसके एकमात्र स्टार प्रचारक श्री अरविन्द केजरीवाल की बात करें तो उन्होंने अपने पूरे प्रचार के दौरान कभी भी सीधे-सीधे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के विरूद्ध कुछ भी अशालीन बाते नहीं कही। उन्होंने सिर्फ और सिर्फ विकास की बात कही। और हर जगह यही कहा कि हमने काम किया है तो वोट देना। और आपको लगता है कि हमने काम नहीं किया है तो वोट मत देना। आप ने प्रमुख रूप से शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी जैसे स्थानीय मुद्दों को ही लेकर और अपने द्वारा किये गए कार्यां पर ही वोट मांगे । और मतदाताओं ने भी उन्हें 2015 जैसा प्रचंड बहुमत देकर इतिहास दोहराया। यहीं नहीं चुनाव परिणाम आने के बाद उन्होंने यह भी कहा कि चुनाव की बात हम सब भूल जायें और केन्द्र सरकार के साथ मिलकर दिल्ली के विकास और दिल्ली की सुंदरता के लिए काम करें। यह उनका बड़प्पन ही बताता है और साथ ही प्रतिपक्ष के साथ आदर भाव भी । एक बार चुनाव के दौरान जब पाकिस्तान के एक मंत्री ने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की बुराई करते हुए जब केजरीवाल को जिताने की अपील की तो भाजपा ने ये मुद्दा लपक लिया और अपने नीति के अनुसार पाक परस्त होने का आरोप लगाते हुए केजरीवाल को आतंकवादी तक कह दिया। यहाँभी केजरीवाल ने संयम बरता और दो टूक शब्दों में पाकिस्तान को कहा कि श्री नरेन्द्र मोदी मेरे भी प्रधानमंत्री है। वो हम सबके प्रधानमंत्री हैं। यहाँ का चुनाव हमारा अंदरूनी मामला है। इसमें पाकिस्तान को दखल देने की जरूरत नहीं। हर बार की तरह फिर भाजपा को इस मुद्दे पर मुँह की खानी पड़ी और चुनाव परिणाम में भाजपा की उस नीति की धज्जियाँ उड़ा दी।
यहाँ हम एक ओैर दिलचस्प मुद्दे की बात करते हैं। वो यह कि भाजपा के हिंदू-मुस्लिम को बाँटने वाले मुद्दे को दिल्ली के मतदाताओं ने बिल्कुल नहीं चलने दिया। इसका उदाहरण यह है कि चुनाव के पहले तक भाजपा यह कहती रही थी कि दिल्ली में उसके 62 लाख 28 हजार सदस्य है, जबकि उसे केवल 35 लाख 60 हजार वोट ही मिले। यानी भाजपा के करीब आधे सदस्यों ने भी भाजपा को वोट नहीं देते हुए आप को ही वोट दिये। इसी तरह कांग्रेस भी दिल्ली में अपने 7 लाख सदस्य होने का दावा करती रही है। लेकिन उसे इस विधानसभा चुनाव में सिर्फ 3 लाख 95 हजार वोट ही मिले। यानी यहाँ भी करीब आधे मतदाताओं ने कांग्रेस को वोट नहीं देते हुए आप को वोट दिये। इसके क्या मायने है ? इस पर भाजपा को चिंतन करने की आवश्यकता है। यदि सही मायने में भाजपा चिंतन करती है तो उसे अपने हाल ही के भारत-पाक मुद्दे , हिन्दू मुस्लिम को बांटने वाली बातें,प्रतिपक्ष को देशद्रोही कहने की आदत जैसी बातें छोड़नी होगी। हमारा देश मुख्य रूप से गंगा जमुना तहजीब का देश है। इस भावना को खंडित करने वाले तत्कालिक लाभ भले ही प्राप्त करलें, किंतु वे लम्बे समय तक चलते नहीं है। यह दिल्ली के चुनाव ने भाजपा को दिखा दिया है।
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