कैसे सुधरेगी उच्च शिक्षा की हालत ?
संदीप कुलश्रेष्ठ
आये दिन यह रिपोर्ट आती रहती है कि विश्व के श्रेष्ठ 100 विश्वविद्यालयों में से भारत का एक भी विश्वविद्यालय उसमें जगह प्राप्त नहीं कर पाया है। ये हालत इसलिए है कि शिक्षा में गुणवत्ता का स्तर तभी सुधर सकता है, जबकि वहाँ शिक्षकों के सभी पद भरे हुए हों। हमारे देश में ऐसी हो नहीं रहा है। इसी कारण उच्च शिक्षा में गुणवत्ता का स्तर सुधर नहीं पा रहा है।
शिक्षकों के 36 प्रतिशत पद है खाली -
केन्द्र सरकार के मानव संसाधन विकास विभाग ने हाल ही में लोकसभा में जानकारी दी कि देश भर केकेन्द्रीय विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के कुल 6,688 पद खाली पड़े हुए हैं। जबकि शिक्षकों के लिए कुल 18,243 पदमंजूर पड़े हुए हैं। यानी 36.6 प्रतिशत पद शिक्षकों के खाली है। ऐसी हालत में उच्च शिक्षा की हालत सुधरने की उम्मीद करना बेमानी है। किसी भी शिक्षण संस्थान में शिक्षा की गुणवत्ता का स्तर उनके शिक्षकों के कारण ही होता है। जब केन्द्र शासन के ही अधीन केन्द्रीय विश्वविद्यालयों की हालत ये है, तो भगवान ही मालिक है।
नॉन टीचिंग के पद भी खाली है 35 प्रतिशत -
केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के पद खाली होने के साथ-साथ गैर शिक्षकीय पदों की भर्ती में भी कोई अच्छी हालत नहीं है। यहाँ गैर शिक्षकीय पदां की स्वीकृति के आंकड़े हैं 34,928। इन केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में कुल स्वीकृत पदों में से 12,323 पद खाली पड़े हुए है। इसके मायने है कि केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में गैर शिक्षकीय पदों में 35 प्रतिशत पद खाली पड़े हुए हैं। यानी कुल स्वीकृत पदों की तुलना में 35 प्रतिशत पद खाली पड़े हुए हैं। यहाँ भी एक तिहाई पद खाली होना कोई अच्छी बात नहीं कही जा सकती।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय करें शीघ्र पहल -
केन्द्रीय विश्वविद्यालयों का सीधा नियंत्रण मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अर्न्तगत रहता है। इसलिए उसे इस दिशा में शीघ्र पहल करना चाहिए। और देश के सभी केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में सर्वोच्च प्राथमिकता के आधार पर शिक्षकों की पूर्ति करने के लिए इस्तहार निकालना चाहिए, ताकि शीघ्र रिक्त पदों की पूर्ति की जा सके। विभाग को यह भी प्रयास करना चाहिए कि जैसे ही किसी भी केन्द्रीय विश्वविद्यालय में पद रिक्त हो, वैसे ही उस रिक्त पद की पूर्ति करने के लिए स्वयंमेव भर्ती की कार्रवाई शुरू हो जाए ,ताकि लम्बे समय तक शिक्षकों के पद खालीपड़े नहीं रहे। क्योंकि शिक्षकों की पद स्थापना से शिक्षा की गुणवत्ता सीधे-सीधे जुड़ी हुई है।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय को शीघ्र यह भी पहल करना चाहिए कि देश के समस्त केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में गैर शिक्षकीय रिक्त पदों की भी भर्ती हो, ताकि इस कारण भी विश्वविद्यालय का काम किसी प्रकार प्रभावित नहीं होने पाए।
हम आशा करते है कि केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय प्राथमिकता के आधार पर अपने सीधे नियंत्रण वाले केन्द्रीय विश्वविद्यालयों पर तो ध्यान देगा ही और वहाँ शिक्षकीय और गैर शिक्षकीय सभी खाली पदों की भी पूर्ति करेगा।
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