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स्कूलों में प्रार्थना का अभिनव प्रयास


                                               संदीप कुलश्रेष्ठ
                   सरकारी स्कूलों के शिक्षक भी यदि कुछ नया करने का ठाने तो वह असंभव नहीं है। यह करके दिखा दिया है राजस्थान राज्य के हनुमानगढ़ के मालारामपुरा गांव के सरकारी स्कूल के शिक्षकों ने। यह स्कूल अपनी तरह का पहला स्कूल है, जहाँ सुबह की प्रार्थना लाईन में लगकर नहीं की जाती है, बल्कि सूर्य चक्र, धरती माता, भारत का नक्शा, ओम, स्वास्तिक, फूल की पंखुड़ियों आदि के आकार की मानव श्रृंखला बनाकर की जाती है। इससे बच्चों में जहाँ रोज स्कूल आने की रोचकता बनी रहती है , वहीं उनमें उमंग और उत्साह का भी संचार होता है। इस अभिनव पहल को सारे देश के सभी सरकारी व निजी स्कूलों को अपनाने की आवश्यकता है।
इस पहल की शुरूआत की कहानी -
                    इस पहल की शुरूआत स्कूल के शिक्षक श्री रमेश जोशी ने की। उन्होंने बताया कि मालारामपुरा गांव के इस सरकारी स्कूल में ये सिलसिला पिछले दो साल से चल रहा है। इस कारण स्कूल में सुबह की होने वाली प्रार्थना हर दिन शानदार होती है। इससे बच्चें अनुशासन में रहना भी सीख गए है। खास बात यह है कि शिक्षक का आदेश मिलने पर बच्चे मात्र 5 मिनट में ही किसी भी आकृति की आकर्षक पॉजिशन ले लेते हैं और शुरू हो जाती है प्रार्थना। स्कूल में बच्चों की संख्या और उपस्थिति बढ़ी -
                     स्कूल के इस अभिनव पहल से जहाँ स्कूल में बच्चों की संख्या बढ़ गई है, वहीं प्रतिदिन की उपस्थिति में भी उल्लेखनीय बढ़ोत्तरी हो गई है। इस स्कूल में 385 विद्यार्थी है। आश्चर्य की बात यह है कि जो छात्र लेटलतीफी थे, वे भी अनुशासन में रहते हुए समय पर स्कूल पहुँचने लगे हैं। शिक्षकों की इस पहल से ग्रामीणजन और बच्चों के माता-पिता भी खुश हैं। यहीं नहीं इस स्कूल के आसपास के स्कूल भी इस अभिनव पहल को अपनाने की कोशिश कर रहे हैं। 
देश के सभी स्कूलों में अपनाने की है जरूरत -
                   हनुमानगढ़ के मालारामपुरा गाँव के इस सरकारी स्कूल की अभिनव पहल की जितनी तारीफ की जाये कम हे। मजेदार बात यह है कि इसमें एक रूपया भी खर्च नहीं होता है और रूचि नित बनी रहती है। इसके लाभ देखते हुए सारे देश के सभी सरकारी और प्रायवेट स्कूलों को इस अभिनव पहल को अपनाने की आवश्यकता है। इसके लिए केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों को संयुक्त रूप से पहल करने की आवश्यकता है। इससे यह कहावत चरितार्थ होती है कि “हींग लगे न फीटकरी और रंग चौखा आए“।
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