स्कूलों में संविधान की प्रस्तावना का वाचन : सराहनीय प्रयास
संदीप कुलश्रेष्ठ
हाल ही में मध्यप्रदेश में राज्य सरकार ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। इस निर्णय के अनुसार प्रदेश के सभी सरकारी प्राथमिक , माध्यमिक, हाई स्कूल और हायर सेकेण्डरी स्कूलों में प्रत्येक सप्ताह हर शनिवार को हमारे देश के संविधान की प्रस्तावना का वाचन किया जायेगा। इस संबंध में राज्य सरकार के शिक्षा विभाग द्वारा प्रदेश के सभी जिला शिक्षा अधिकारियों को निर्देश जारी कर दिये गए हैं। सरकार का यह निर्णय अत्यन्त सराहनीय है।
प्रत्येक शनिवार को होगा वाचन -
प्रदेश के सभी सरकारी प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों में प्रधान अध्यापक अथवा शिक्षक द्वारा प्रत्येक शनिवार को प्रार्थना के बाद संविधान की प्रस्तावना का वाचन किया जायेगा। उसे उपस्थित सभी विद्यार्थियों द्वारा दोहराया जायेगा। इसी प्रकार प्रदेश के सभी हाई स्कूल और हाई सेकेंडरी स्कूलों में भी संबंधित संस्था के प्राचार्य द्वारा शनिवार को बालसभा के दौरान विद्यार्थियों द्वारा संविधान की प्रस्तावना का वाचन कराया जायेगा।
संविधान की प्रस्तावना -
प्रस्तावना, संविधान के लिए एक परिचय के रूप में कार्य करती है। 1976 में 42वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा इसमें संशोधन किया गया था, जिसमें तीन नए शब्द समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और अखंडता को जोड़ा गया था। संविधान की प्रस्तावना का निर्माण भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणराज्य करने के लिए किया गया। यह भारत के सभी नागरिकों के लिए न्याय, स्वतंत्रता, समानता को सुरक्षित करती है और लोगों के बीच भाई चारे को बढावा देती है।
क्या है प्रस्तावना ?
भारत का संविधान
उद्देशिका
हम,भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व-सम्पन्न, समाजवादी, पंथ निरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को :
सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय,
विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म
और उपासना की स्वतंत्रता,
प्रतिष्ठा और अवसर की समता
प्राप्त कराने के लिए, तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और
राष्ट्र की एकता और अखंडता
सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए
दृंढसंकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई. ( मिती मार्गशीर्ष शुक्ला सप्तमी, संवत् दो हजार छह विक्रमी ) को एतद्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।
प्रस्तावना के घटक -
प्रस्तावना के चार घटक इस प्रकार हैं :
1. यह इस बात की ओर इशारा करता है कि संविधान के अधिकार का स्त्रोत भारत के लोगों के साथ निहित है।
2. यह इस बात की घोषणा करता है कि भारत एक, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और गणतंत्र राष्ट्र है।
3. यह सभी नागरिकों के लिए न्याय, स्वतंत्रता, समानता को सुरक्षित करता है तथा राष्ट्र की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए भाईचारे को बढ़ावा देता है।
4. इसमें उस तारीख (26 नवंबर 1949) का उल्लेख है जिस दिन संविधान को अपनाया गया था।
प्रस्तावना के मूल शब्दों की व्याख्या -
संप्रभुता :
प्रस्तावना यह दावा करती है कि भारत एक संप्रभु देश है। सम्प्रुभता शब्द का अर्थ है कि भारत किसी भी विदेशी और आंतरिक शक्ति के नियंत्रण से पूर्णतः मुक्त सम्प्रुभता सम्पन्न राष्ट्र है। भारत की विधायिका को संविधान द्वारा तय की गयी कुछ सीमाओं के विषय में देश में कानून बनाने का अधिकार है।
समाजवादी :
’समाजवादी’ शब्द संविधान के 1976 में हुए 42 वें संशोधन अधिनियम द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया। समाजवाद का अर्थ है समाजवादी की प्राप्ति लोकतांत्रिक तरीकों से होती है। भारत ने ’लोकतांत्रिक समाजवाद’ को अपनाया है। लोकतांत्रिक समाजवाद एक मिश्रित अर्थव्यवस्था में विश्वास रखती है जहाँ निजी और सार्वजनिक दोनों क्षेत्र कंधे से कंधा मिलाकर सफर तय करते हैं। इसका लक्ष्य गरीबी, अज्ञानता, बीमारी और अवसर की असमानता को समाप्त करना है।
धर्मनिरपेक्ष :
’धर्मनिरपेक्ष’ शब्द संविधान के 1976 में हुए 42वें संशोधन अधिनियम द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया। भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्ष शब्द का अर्थ है कि भारत में सभी धर्मों को राज्यों से समानता, सुरक्षा और समर्थन पाने का अधिकार है। संविधान के भाग प्प्प् के अनुच्छेद 25 से 28 एक मौलिक अधिकार के रूप में धर्म की स्वतंत्रता को सुनिश्चत करता है।
लोकतांत्रिक :
लोकतांत्रिक शब्द का अर्थ है कि संविधान की स्थापना एक सरकार के रूप में होती है जिसे चुनाव के माध्यम से लोगों द्वारा निर्वाचित होकर अधिकार प्राप्त होते हैं। प्रस्तावना इस बात की पुष्टि करती हैं कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जिसका अर्थ है कि सर्वोच्च सत्ता लोगों के हाथ में है। लोकतंत्र शब्द का प्रयोग राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक लोकतंत्र के लिए प्रस्तावना के रूप में प्रयोग किया जाता है। सरकार के जिम्मेदार प्रतिनिधि, सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार, एक वोट एक मूल्य, स्वतंत्र न्यायपालिका आदि भारतीय लोकतंत्र की विशेषताएँ हैं।
गणराज्य :
एक गणतंत्र अथवा गणराज्य में, राज्य का प्रमुख प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से लोगों द्वारा चुना जाता है। भारत के राष्ट्रपति को लोगों द्वारा परोक्ष रूप से चुना जाता है; जिसका अर्थ संसद औऱ राज्य विधानसभाओं में अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से है। इसके अलावा, एक गणतंत्र में, राजनीतिक संप्रभुता एक राजा की बजाय लोगों के हाथों में निहित होती है।
न्याय :
प्रस्तावना में न्याय शब्द को तीन अलग-अलग रूपों में समाविष्ट किया गया है- सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक, जिन्हें मौलिक और नीति निर्देशक सिद्धांतों के विभिन्न प्रावधानों के माध्यम से हासिल किया गया है।
प्रस्तावना में सामाजिक न्याय का अर्थ संविधान द्वारा बराबर सामाजिक स्थिति के आधार पर एक अधिक न्यायसंगत समाज बनाने से है। आर्थिक न्याय का अर्थ समाज के अलग-अलग सदस्यों के बीच संपति के समान वितरण से है जिससे संपति कुछ हाथों में ही केंद्रित नहीं हो सके। राजनीतिक न्याय का अर्थ सभी नागरिकों को राजनीतिक भागीदारी में बराबरी के अधिकार से है। भारतीय संविधान प्रत्येक वोट के लिए सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार और समान मूल्य प्रदान करता है।
स्वतंत्रता :
स्वतंत्रता का तात्पर्य एक व्यक्ति जो मजबूरी के अभाव या गतिविधियों के वर्चस्व के कारण तानाशाही गुलामी, चाकरी, कारावास, तानाशाही आदि से मुक्त या स्वतंत्र कराना है।
समानता :
समानता का अभिप्राय समाज के किसी भी वर्ग के खिलाफ विशेषाधिकार या भेदभाव को समाप्त करने से है। संविधान की प्रस्तावना देश के सभी लोगों के लिए स्थिति और अवसरों की समानता प्रदान करती है। संविधान देश में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समानता प्रदान करने का प्रयास करता है।
भाईचारा :
भाईचारे का अर्थ बंधुत्व की भावना से है। संविधान की प्रस्तावना व्यक्ति और राष्ट्र की एकता और अखंडता की गरिमा को बनाये रखने के लिए लोगों के बीच भाईचारे को बढावा देती है।
प्रस्तावना में संशोधन :
1976 में, 42 वें संविधान संशोधन अधिनियम (अभी तक केवल एक बार) द्वारा प्रस्तावना में संशोधन किया गया था, जिसमें तीन नए शब्द-समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और अखंडता को जोड़ा गया था। अदालत ने इस संशोधन को वैध ठहराया था।
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