निर्भया के दोषियों को फांसी : ऐसों का केस कोई भी वकील नहीं ले तो ?
डॉ. चन्दर सोनाने
सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्भया के चारों दोषियों को 22 जनवरी को फांसी देने के आदेश देने के बाद वकीलों के कानून की बंद गलियों का उपयोग करने के बाद एक बार फिर उनकी फंासी टल गई है। अब एक बार फिर से 1 फरवरी 2020 की तारीख तय की गई है। किन्तु अब भी यह कोई निश्चित नहीं है कि उन दुर्दांत दोषियों को 1 फरवरी को फांसी दे ही दी जायेगी ? दिल्ली में 23 वर्षीय निर्भया के साथ 16 दिसम्बर 2012 की रात सामूहिक बलात्कार की घटना हुई थी। छात्रा की 29 दिसम्बर 2012 को ईलाज के दौरान सिंगापुर के अस्पताल में मौत हो गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने 5 मई 2017 को चारों दोषियों को फांसी की सजा सुनाने का फैसला देने के बावजूद अभी तक ये सभी कानूनी दाव पेंज लगाकर फांसी से बचते रहे हंै। आखिरकार इन दोषियों की पैरवी करने वाले वकील कौन है ? वे क्या मात्र पैसे कमाने के लिए या खबरों में रहने के लिए ही दोषियों की वकालात कर रहे हंै ? दोषियों के सभी वकीलों की माँ, बहन, बेटी नहीं है, जो दोषियों को बचाने के लिए कानून की बारिकियों का दुरूपयोग कर रहे हैं और लगातार इन दोषियों को बचा रहे हैं।
22 जनवरी को फांसी का दिन मुकर्रर होने के बावजूद इन्ही दोषियों के वकीलों ने कानून की अंधी गलियों का उपयोग करते हुए फिर उन्हें बचा लिया ! पीड़िता की माँ और पूरे देशवासी कोर्ट द्वारा दी जा रही तारीख पे तारीख, तारीख पे तारीख के कारण दुखी और परेशान है। पूरा सिस्टम अंधा हो गया है। यहाँ सहज ये प्रश्न उत्पन्न होता है कि यदि सारे वकील ये तय कर लें कि ऐसे जघन्य अपराधों में दोषी पाये गए मुजरिमों की वे किसी भी हालात में पैरवी नहीं करेंगे, तो क्या ऐसे मुजरिम फांसी के फन्दे से बच सकते हंै ? ऐसा हो सकता है। बस जरूरत है, वकीलों के ऐसोसिएशन को यह निर्णय लेने की। सब जानते हैं, वकीलों का पेशा कैसा है ? सच को झूठ और झूठ को सच बनाने में वे माहिर होते हंै। कानून की गलियों का उपयोग कर वे अपने मुजरिम को बचाने का प्रयास करते है। वकिलों के लिए फौजदारी के तमाम केस है। वे पैसे कमाने के लिए क्या कम है ? वे लडं़े, किन्तु बलात्कार में दोषी पाये गए और फांसी की सजा पाये मुजरिमों को तो कम से कम बचाने को प्रयास नहीं करंे।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एसए बोबडे़ ने फांसी की सजा को कानूनी दांव पेच में उलझाने पर सुप्रीम कोर्ट में सख्त टिप्पणी की है। उन्होंने कहा कि मृत्यु दंड के खिलाफ अपीलों का एक छोर पर अन्त जरूरी है। दोषी को कभी नहीं लगना चाहिए कि इसका सिरा खुला रहेगा और सजा को चुनौती देने की लड़ाई अन्तहीन चलती रहेगी। निर्भया के दोषियों द्वारा फांसी टालने के लिए अपनाये जा रहे हथकंडों के बीच सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस का यह रूख बहुत महत्वपूर्ण है। निर्भया के गुनाहगारों की ओर इशारा करते हुए उन्होंने यह भी कहा कि फांसी को अन्तहीन मुकदमों में फसाने की इजाजत नहीं दे सकते। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश ने जो कहा है उस पर अमलीजामा पहनाने के लिए सरकार को और न्यायालय को शीघ्र कार्रवाई करने की आवश्यकता है।
मौत की सजा पाये दोषियों को डैथ वारंट जारी होने के बावजूद फांसी नहीं होने देने के इस प्रकरण में केन्द्र सरकार के कानून मंत्रालय को और न्यायालय को यह तय करना चाहिए कि इस प्रकार के फांसी के मामले में पुनर्विचार याचिका, क्यूरेटिव पिटीशन और दया याचिका दायर करने की तथा उसके संबंध में निर्णय लेने की भी समय सीमा तय की जाना जरूरी है। इसके साथ यह भी ध्यान रखने की आवश्यकता है कि एक ही प्रकरण में एक से ज्यादा दोषी हो तो सबकी अलग अलग फांसी दिया जाना संभव हो। किसी भी दोषी की एक भी याचिका लंबित रहने पर दूसरा सजा से बचने नहीं पाये। संविधान के अनुच्छेद 21 की आड़ में दोषी न्यायिक प्रक्रिया से लगातार खेलते हंै। भयानक, क्रूर, घृणित, भीषण अपराधों के दोषियों को कानून से खिलवाड़ करने की इजाजत नहीं देना चाहिए।
अब निर्भया की माँ ही नहीं बल्कि देश के सभी संवेदनशील व्यक्ति इंतजार कर रहे हैं कि इन दुर्दांत दोषियों का शीघ्र से शीघ्र अंत हो। इसके लिए केन्द्र सरकार को और न्यायालय को जो भी जरूरी निर्णय लेने हों, उसे तुरंत लिया जाकर उसका तुरंत क्रियान्वयन भी किया जाना बहुत ही जरूरी है। साथ ही सभी वकीलों से भी निवेदन है कि वे ऐसे अपराधियों की किसी भी हालत में पैरवी नहीं करें तो सभी माँ, बहन, बेटियाँ उन्हें दुआएँ देंगी।