शिप्रा से गंदा पानी बहाया, अब निकाल दें कीचड़ और गंदगी भी
डॉ. चन्दर सोनाने
पतितपावन शिप्रा नदी में खान नदी का प्रदूषित पानी मिलने से शिप्रा का पानी स्नान योग्य नहीं रह गया था। पिछले माह 12 दिसम्बर को पूर्णिमा के पर्व स्नान के समय शिप्रा के इसी प्रदूषित, गंदे और कीचड़युक्त पानी में श्रद्धालुओं को मजबूरीवश डुबकी लगानी पड़ी थी। शिप्रा के ऐसे गंदे पानी को देखते हुए उस समय जिला प्रशासन द्वारा घाटों पर फव्वारे स्नान की भी व्यवस्था की थी ! अब 14 जनवरी को मकर संक्रांति का स्नान पर्व आने वाला है। पूर्णिमा के पर्व जैसी स्थिति नहीं बने, इसके लिए प्रदेश के मुखिया मुख्यमंत्री श्री कमलनाथ की नाराजगी के चलते शिप्रा नदी का गंदा, बदबूदार और प्रदूषित पानी बहा दिया गया है, किन्तु पानी बहा दिये जाने के बाद शिप्रा की असलियत सामने आ गई है। शिप्रा नदी में चारां तरफ कीचड़ और गंदगी दिखाई दे रही है। अब जिला प्रशासन इसे भी साफ कर दें और उसके बाद नर्मदा का पानी शिप्रा में लाये तो श्रद्धालुओं का आशीर्वाद उन्हें मिलेगा।
शिप्रा नदी में बरसां से खान नदी का प्रदूषित और गंदा पानी मिलता चला आ रहा है। जिला प्रशासन और संबंधित विभाग द्वारा हमेशा इसके लिए अस्थायी योजना बनाते हैं जो ज्यादा दिन नहीं चलती है और फिर खान नदी का गंदा पानी शिप्रा को प्रदूषित करता रहता है। इस कारण सामान्य दिनों की बात छोड़ भी दें तो महत्वपूर्ण तीज त्यौहारों पर श्रद्धालु हजारों की संख्या में जब शिप्रा में डुबकी लगाने आते हैंतो मजबूरी में गंदे और प्रदूषित पानी में डुबकी लगाकर दुखी मन से अपने घर को लौटते हैं।
सिंहस्थ 2016 के पहले एक अत्यन्त ही अव्यवहारिक योजना बनाई गई। 90 करोड़ रूपए की यह योजना भी खान नदी के पानी को 19 किमी. दूर ले जाकर फिर शिप्रा में बहा दे रही है। ये योजना फेल हो गई है। किन्तु इससे कोई सीख संबंधित विभाग और जिला प्रशासन ने नहीं ली और अभी भी वे अल्पकालिन योजनाओं के ही भरोसे हैं। अब फिर मकर संक्रांति का पर्व 14 जनवरी को आने जा रहा है। इसके लिए मुख्यमंत्री की फटकार के बाद अधिकारियों ने शिप्रा नदी के स्वच्छ पानी में श्रद्धालु स्नान कर पाये इसलिए नर्मदा का पानी लाने की योजना बनाई, किन्तु खान नदी के प्रदूषित और बदबूदार पानी को इससे पूर्व निकालना जरूरी था, इसके लिए उसे बहा दिया गया है। यहाँ तक तो ठीक है, किन्तु गंदा पानी बहा देने के बाद सबके सामने असलियत आ गई। शिप्रा नदी गंदगी, कीचड़ और कचरे से भरी दिखाई दे रही है। अब इसे हटाये बिना नर्मदा का पानी यहाँ छोड़ दिया जायेगा तो वह अधिक कारगर सिद्ध नहीं हो सकेगा। इसलिए जरूरी है और अभी मौका भी है, तुरन्त जेसीबी तथा अन्य समस्त साधनों का उपयोग कर शिप्रा की गंदगी व कीचड़ साफ कर दिया जाये तो श्रद्धालु दुआ देंगे।
किन्तु ऐसा होता दिखाई नहीं दे रहा है।यदि अधिकारियों ने तुरन्त मौके पर जाकर असलियत देखने के बजाय अपने कमरो में बैठकर ही शिप्रा का गंदा पानी बहा देने के बाद नर्मदा का पानी मकर संक्रांति के स्नान के लिए ले आयेंगे तो विशेष फायदा नहीं होगा। इसके लिए यह भी जरूरी है कि संभागायुक्त ,कलेक्टर और नगरनिगम आयुक्त मौके पर जाए और वास्तविक स्थिति देखकर तुरन्त फेसले लेकर इसे अमलीजामा पहनाये तो अधिक हितकर होगा।
शिप्रा का पानी हमेशा स्वच्छ रहे, इसके लिए सन 2000 में शिप्रा शुद्धिकरण न्यास का गठन किया गया था। इस न्यास के अध्यक्ष पदेन संभागायुक्त और सचिव पदेन निगमायुक्त है। इसके अतिरिक्त इसमें कलेक्टर और संबंधित विभागों के अधिकारी व कुछ अशासकीय सदस्य भी है। किन्तु इसकी बैठक ही नियमित रूप से नहीं हो पाती है। पिछली बैठक 19 अप्रैल 2018 को हुई थी। वर्ष 2019 पूरा निकल गया। इस साल एक भी बैठक नहीं हुई । इससे लगता है कि किसी को भी इस संबंध में कोई रूचि नहीं है। जबकि पिछले काफी समय से शिप्रा नदी मेंखान नदी का प्रदूषित और गंदा पानी मिलने के कारण शिप्रा के प्रदूषित होने की कहानी मीडिया में छाई हुई थी। इसके बावजूद न्यास की कोई बैठक नहीं हुई। पिछली बैठक में शिप्रा को साफ रखने के लिए डीपीआर बनाने का भी निर्णय हुआ था। जल संसाधन विभाग को यह डीपीआर बनानी थी, किन्तु उसने भी कुछ नहीं किया। इससे साफ सिद्ध होता है कि शिप्रा के शुद्धिकरण के प्रति न तो अधिकारियों को चिंता है न ही संबंधित विभाग के अधिकारियों को इसकी परवाह है और न ही इसके अशासकीय सदस्यों को इसकी फिक्र है।
ऐसी स्थिति में प्रदेश के मुखिया मुख्यमंत्री श्री कमलनाथ से ही अपेक्षा की जा सकती है कि वे इस दिशा में अपनी ओर से पहल करेंगे और शिप्रा को गंदगी, कीचड़ और प्रदूषण से मुक्त करायेंगे, ताकि दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालुओं को स्वच्छ और पतितपावन शिप्रा नदी में डुबकी लगाने का पुण्य प्राप्त हो सके।
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