शिप्रा की शुद्धि के लिए भागीरथ बनेंगे कमलनाथ ?
डाॅ. चन्दर सोनाने
पतितपावन शिप्रा नदी अपनी दुर्दशा पर आँसू बहा रही है। कल गुरूवार 12 दिसम्बर 2019 को पूर्णिमा का पर्व स्नान होने के कारण श्रद्धालु जब शिप्रा मईया में डुबकी लगाने आए तो शिप्रा नदी पूरी लबालब भरी थी किन्तु उसका पूरा पानी काला,दूषित और नहाने के योग्य नहीं था। सिहंस्थ 2016 में श्रद्धालुओं को शिप्रा का साफ पानी स्नान के लिए मिले और उसमें खान नदी का गंदा व दूषित पानी नहीं मिले इसके लिए राज्य सरकार ने 90 करोड़ रूपए की खान डायवर्सन योजना बनाई थी। किन्तु यह पूरी राशि पानी में बह गई। इसका लाभ श्रद्धालुओं को नहीं मिल रहा है और बदस्तूर खान नदी का गंदा, बदबूदार और दूषित पानी निरंतर शिप्रा में मिल रहा है। इसे कोई रोक नहीं पा रहे हैं।
करीब एक वर्ष पूर्व प्रदेश में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार के आने के कुछ दिनों बाद ही उज्जैन के शिप्रा तट स्थित नवग्रह शनि मंदिर के त्रिवेणी संगम पर शनिश्चरी अमावस्या का पर्व स्नान का दिन आया था, किन्तु त्रिवेणी स्थित संगम स्थल पर पानी ही नहीं था। प्रशासन ने श्रद्धालुओं के स्नान के लिए फव्वारे लगाए थे वो भी पर्याप्त नहीं थे। इस कारण हजारों श्रद्धालुओं की आस्था पर वज्रपात हुआ था। श्रद्धालु बिना स्नान किये ही हताश मन से वापस लौटे थे। कमलनाथ सरकार ने प्रशासन की विफलता मानते हुए और सख्त कार्रवाई करते हुए उज्जैन के कलेक्टर और संभागायुक्त को तुरंत उज्जैन से हटा दिया था।
कल गुरूवार 12 दिसम्बर को पूर्णिमा पर्व स्नान पर फिर वैसा ही हुआ। थोडा अंतर था तो बस यह था कि शिप्रा नदी में इस पर्व पर भरपूर पानी था। शिप्रा लबालब थी। किन्तु पूरा पानी खान नदी के दूषित पानी से प्रदूषित और बदबूदार था। इस कारण प्रशासन ने नोटिस बोर्ड लगाकर श्रद्धालुओं से यह अपील की किवे शिप्रा में स्नान नहीं करंे। ऐसा पहली बार हुआ है जब प्रशासनिक अधिकारियों को शिप्रा में पानी होने के बावजूद किन्तु काला और दूषित होने के कारण तथा स्नान योग्य नहीं होने के कारण सार्वजनिक रूपसे नोटिस लगाकर श्रद्धालुओं से यह अनुरोध किया गयाकिवे शिप्रा नदी में स्नान नहीं करंे। जिला प्रशासन द्वारा नलकूप से पानी लाकर घाटों पर फव्वारा स्नान की व्यवस्था कीगई थी। किन्तु बाहर से विशेषकर ग्रामीण अंचल से श्रद्धालु जब आये तो उन्होंने श्रद्धा से वशीभूत होकर शिप्रा में डुबकी लगाई किन्तु उन्हें फिर फव्वारा में स्नान करने के लिए बाध्य भी होना पड़ा।
ऐसा क्यो हुआ ? श्रद्धालु हर बार क्यों ठगे जा रहे हंै ? श्रद्धालुओं की आस्था और विश्वास के साथ शासन और प्रशासन क्यों विश्वासघात कर रहा है ? इन सब प्रश्नों के किसी के पास कोई ठोस उत्तर नहीं हैं। यह आज से नहीं हो रहा है बल्कि पिछले अनेक वर्षो से यह हो रहा है कि इन्दौर से आने वाली खान नदी उज्जैन में शनिमंदिर स्थित त्रिवेणी पर शिप्रा नदी से मिलती है और शिप्रा का पूरा पानी गंदा और दूषित कर रही है। शिप्रा को साफ रखने के लिए शासन प्रशासन बारबार योजना बनाता है। पिछले सिंहस्थ 2016 के पहले भी 90 करोड़ रूपए की खान डायवर्सन योजना बनाई गई थी। दिनांक 22 अप्रैल से 21 मई 2016 तक चलने वाले सिंहस्थ महापर्व के लिए तत्कालिन शिवराज सरकार ने शिप्रा को शुद्ध रखने और अन्य सुविधाएँ उपलब्ध कराने के लिए करीब 3500 करोड़ रूपए खर्च किए थे। इसमें से 90 करोड़ रूपए शिप्रा नदी को स्वच्छ रखने के लिए इन्दौर से आने वाली खान नदी को डायवर्ट करने पर ही खर्च कर दिए गए। ग्राम पिपलियाराघोै से खान नदी को पाइप लाइन के जरिये कालियादेह महल के आगे वापस शिप्रा नदी में ही जोड़ दिया गया । केवल 19 किलोमीटर लम्बे नदी के इस मार्ग के लिए 90 करोड़ रूपए खर्च किये जाकर खान नदी के गंदे पानी को वापस शिप्रा नदी में ही मिलाने की यह योजना बनाई गई।
इस योजना की आश्चर्यजनक बात यह थी कि खान नदी के गंदे पानी को फिल्टर और शुद्ध करने के बाद ही शिप्रा नदी के पानी में मिलाने की कोई योजना नहीं बनाई गई। इस योजना में यह भी मजेदार बात थी कि इस योजना में बारिश के चार महिनों में खान नदी का प्रदूषित पानी पाइप लाइन के माध्यम से डायवर्ट होकर नहीं छोड़ा जाकर सीधा ही शिप्रा नदी में मिलता है। गर्मी के चार महिनों में खान नदी में वैसे भी पानी बहुत कम रहता है। इसलिए यह योजना शेष चार महिनों के लिए ही बनाई गई किन्तु उसमें भी यह फेल हो गई। पिछले दिनों जिस खेत से खान डायवर्सन योजना की पाईप लाईन गुजरी थी वहाँ से एक जगह जमीन घंसकर कुँआनुमा बन गई। उसके सुधारने की भी कोई तत्परता नहीं दिखाई गई। खान नदी का गंदा पानी सीधा ही शिप्रा नदी में सबके सामने बहता रहा और प्रशासन ने कोई कारगर प्रयास नहीं किए।
खान डायवर्सन योजना के 90 करोड़ रूपए बेकार गए। यह योजना किसी काम की नहीं सिद्ध हुई। शुरू से ही यह योजना अव्यवहारिक थी। इस योजना के बदले होना यह थाकि इन्दौर से निकलने वाली इस खान नदी को उसके उद्गम से लेकर उज्जैन में त्रिवेणी में शिप्रा में मिलने के बीच के जितने भी उद्योग लगे हुए है,ं उन सभी उद्योगों से निकलने वाले दूषित जल को शुद्ध करके ही खान नदी में मिलाने की योजना बनाई जाती, तो यह अधिक कारगार सिद्ध होती और स्थाई प्रकृति की भी होती । इसके लिए जितने भी उद्योग लगे उन उद्योगों में प्रदूषित जल को शुद्ध करने के संयंत्र लगाने की लागत की 50 प्रतिशत राशि अनुदान के रूपमें उद्योगों को दी जाती तो वह अधिक कारगार सिद्ध होता। साथ ही प्रत्येक उद्योग को प्रदूषित जल खान नदी में छोड़ने पर उनके विरूद्ध सख्त कार्रवाई करने और ऐसे उद्योगों को बंद करने की चेतावनी देने पर नियमानुसार उद्योग के मालिक संयंत्र लगाकर ही जल को खान नदी में छोड़ते तो यह नौबत नहीं आती। किन्तु ऐसा नहीं हुआ।
प्रदेश के मुख्यमंत्री श्रीकमलनाथ एक वरिष्ठ और गंभीर राजनीतिज्ञ के रूप में जाने जाते हंै। उनसे अपेक्षा है कि पूर्णिमा पर्व स्नान पर श्रद्धालु पुण्यदायिनी शिप्रा नदी के शुद्ध जल में डुबकी नहीं लगा पाए, इसके लिए दोषी समस्त विभागों के सभी अधिकारियों के विरूद्ध सख्त कार्रवाई करें, जैसी कार्रवाई उन्होंने प्रदेश की पहली बार बागडोर संभालने के बाद करीब एक वर्ष पूर्व की थी। साथ ही शिप्रा नदी को प्रदूषित रहित और शुद्ध बनाए रखने के लिए तात्कालिक नहीं बल्कि ठोस, दीर्घकालिन और स्थायी योजना बनाएँ और उसका सख्ती से क्रियान्वयन कराए तभी शिप्रा नदी शुद्ध रह पायेगी। अभी पतितपावन शिप्रा नदी खुद अपनी शुद्धी और मुक्ति के लिए किसी भागीरथ की बांट जो रही है। क्या ये भागीरथ सिद्ध होंगे प्रदेश के मुखिया मुख्यमंत्री श्री कमलनाथ ?
................................................000...................................