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विद्यार्थियों को तनाव मुक्ति के लिए दी जाएगी काउंसलिंग


संदीप कुलश्रेष्ठ
               प्रदेश के सरकारी स्कूलों मे पढ़ने वाले विद्यार्थियों को पढ़ाई और अन्य किसी प्रकार के मानसिक तनाव से उबारने के लिए राज्य सरकार ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण और सराहनीय फैसला लिया है। इस फैसले के अनुसार प्रदेश के समस्त जिलों के प्रत्येक विकास खंड स्तर पर स्कूलों मे पढ़ने वाले विद्यार्थियों के लिए काउंसलिंग शुरू की जाएगी। इसके लिए विकास खंड स्तर पर काउंसलिंग सेंटर बनाये जायेंगे। हर विकासखंड मुख्यालय के इन काउंसलिंग सेन्टर पर दो काउंसलर द्वारा विद्यार्थियों की काउंसलिंग की जाएगी। शासकीय स्कूलों के शिक्षकां को ही उनकी योग्यता के आधार पर काउंसलर बनाया जायेगा। यहीं पर शासन को यह भी चाहिए कि जिन कारणों से विद्यार्थियों में तनाव होता है वे कारणों को भी वे दूर करें।
समय पर मिले पाठ्य पुस्तकें -
                  कई बार गरीब विद्यार्थियों को मिलने वाली पाठ्य पुस्तकें शैक्षणिक सत्र के मध्य तक या विलंब से मिलती है। इस कारण बच्चें जब ये देखते है कि दूसरे बच्चों के पास तो किताबें हैं और उनके पास नहीं हैतो वे तनावग्रस्त हो जाते हैं। इसके लिए विद्यार्थियों को मिलने वाली पाठ्य पुस्तकें शैक्षणिक सत्र शुरू होते ही प्रथम सप्ताह में ही छात्र-छात्राओं को मिल जाने की सुनिश्चित व्यवस्था की जानी चाहिए।
अन्य सुविधायें भी मिले समय पर -
                राज्य सरकार की विभिन्न योजनाओं में गरीब बच्चों, अनुसुचित जाति और जनजाति के छात्र-छात्राओं को निःशुल्क पाठ्य सामग्री और साईकिल तथा छात्रवृत्ति मिलती है। किन्तु यह पाठ्य सामग्री और साईकिल तथा छात्रवृत्ति शैक्षणिक सत्र के मध्य में या कभी-कभी तो अंत में मिलती है। यदि उन्हें दी जाने वाली पाठ्य सामग्री तथा अन्य सुविधाएँ सत्र के शुरूआत में ही मिल जाए तो बच्चें उमंग और उत्साह से अध्ययन कर पायेंगे और उन्हें किसी प्रकार का तनाव भी नहीं रहेगा। कई बार गरीब बच्चों को मिलने वाली छात्रवृत्ति तो शैक्षणिक सत्र के समाप्ति तक मिलती है, जो कदापि उचित नहीं कहा जा सकता। यदि उन्हें छात्रवृत्ति समय पर मिले तो वे अपनी जरूरी चीजे उस छात्रवृत्ति से खरीद कर तनावमुक्त रह सकेंगे।सामान्यतः राज्य सरकार का आदेश तथा दिशा-निर्देश तो यही रहता है कि गरीब बच्चों को मिलने वाली सुविधायें शैक्षणिक सत्र की शुरूआत में ही मिलें किन्तु व्यवहार में ऐसा नहीं होता है। इसको ठीक करने की जरूरत है। 
शिक्षकों का सही युक्तियुक्तकरण हो -
                सामान्यतः होता यह है कि कई स्कूलों में विद्यार्थी ज्यादा है, किन्तु शिक्षक कम है। कहीं-कहीं उल्टा भी होता है। विद्यार्थीकम है और शिक्षक ज्यादा है। राजनैतिक पहुंच से अनेक शिक्षक गाँव में नहीं जाते हुए शहरों में ही अपनी पोस्टिंग करवा लेते हैं। इस कारण ऐसे स्कूलों में विद्यार्थी कम होते है और शिक्षक ज्यादा होते है। इसलिए राजनैतिक दबाव की चिन्ता न करते हुए शिक्षकों का सही युक्तियुक्तकरण होना चाहिए। इससे शिक्षक समय पर अपना पाठ्यक्रम पूरा कर लेंगे और विद्यार्थी भी समय पर शिक्षण मिलने से तनावमुक्त रह सकेंगे। 
एक शिक्षक के स्कूलों की प्रथा बंद होना चाहिए -
                 विशेषकर ग्रामीण अंचलों में अभी भी ऐसे अनेक प्राथमिक विद्यालय मिल जायेंगे, जहाँ कक्षा एक से पाँचवी तक के समस्त कक्षाओं के सभी पाठ्यक्रमों को पढ़ाने की जिम्मेदारी उस स्कूल में पदस्थ केवल एक शिक्षक पर ही रहती है। इसलिए शिक्षक सभी बच्चों पर ध्यान दे ही नहीं पाता और बच्चें अपनी पढ़ाई पूर्ण नहीं होने के कारण पढ़ाई में कमजोर रह जाते है । इसी कारण वे अन्य बच्चों की तुलना में कम ज्ञान रखने के कारण तनावग्रस्त रहते हैं। इसलिए एक शिक्षक की प्रथा तत्काल गाँव से बंद कर प्राथमिक विद्यालय में कम से कम दो शिक्षक होना ही चाहिए, ताकि शिक्षक सभी बच्चों को सभी विषयों को अच्छी तरह पढ़ा सके। 
हर विकासखंड पर हो एक उत्कृष्ट विद्यालय -
                  वर्तमान में प्रदेश के प्रत्येक जिले में जिला मुख्यालय पर एक उत्कृष्ट विद्यालय है। ये उत्कृष्ट विद्यालय अपनी शैक्षणिक योग्यता के कारण सबके आकर्षण का केन्द्र है। इसी कारण अनेक प्रतिभाशाली बच्चों को उत्कृष्ट विद्यालय में पढ़ने का सौभाग्य मिलता है। ऐसे ही उत्कृष्ट विद्यालय की अब आवश्यकता है प्रत्येक विकासखंड मुख्यालयों पर । राज्य सरकार को चाहिए कि प्रदेश के प्रत्येक जिलों के हर एक विकासखंड मुख्यालयों पर एक-एक ऐसे ही उत्कृष्ट विद्यालय शुरू किया जाए। इससे उस विकासखंड के प्रतिभाशाली और गरीब बच्चों को उत्कृष्ट विद्यालय में पढ़ने की सुविधा मिल सकेगी। 

शिक्षकों को अन्य कार्य में नहीं लगावें-
                       वर्तमान में कुछ समय के अन्तराल से राज्य सरकार ये आदेश और निर्देश जारी करती रहती है कि शिक्षकों से शैक्षणिक कार्य लेने के अलावा अन्य कार्य नहीं लिए जाएं। किन्तु प्रदेश के किसी भी जिले में इसका पालन नहीं होता है। शिक्षकों से शैक्षणिक कार्यो के साथ-साथ अन्य कार्यां में भी ड्यूटी लग जाने से वे अपना शैक्षणिक दायित्व पूरा नहीं कर पाते हैं। इस कारण बच्चें पाठ्यक्रम पूरा नहीं होने से पिछड़ते है और वे तनाव से ग्रसित हो जाते हैं। इसलिए राज्य सरकार के इन आदेशों पर सख्ती से पालन सुनिश्चित होना चाहिए।
                       राज्य सरकार का विद्यार्थियों के तनावमुक्ति का यह प्रयास निःसंदेह प्रशंसनीय है। इसकी सराहना की जानी चाहिए। अब इसकी सफलता इस बात पर निश्चित होगी कि राज्य सरकार के इस निर्णय का क्रियान्वयन किस प्रकार से होता है। यदि अच्छे काउंसलर नियुक्त होंगे तो निश्चित ही विद्यार्थियों को इससे लाभ मिल सकेगा। अच्छे काउंसलर के लिए सरकार निजी स्तर पर कार्य कर रहे कांउसलर से भी सहयोग ले सकती है। इसे जनभागीदारी से भी जोड़ा जाना चाहिए।  चयनित काउंसलर को विशेषज्ञ से प्रशिक्षण भी दिया जाना चाहिए, ताकि वे अपना कार्य अच्छी तरह कर सके। किसी भी विद्यार्थी के तनाव में रहने के कई कारण हो सकते है। सरकार को चाहिए कि इसकी नियमित समीक्षा भी करें तथा जो कमी पाई जाए उसे समय-समय पर दूर भी किया जाए, ताकि जिस उद्देश्य से राज्य सरकार ने यह निर्णय लिया है वह सफल हो सके। 
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