नकली दूध और मावा बनाने वालों को हो मौत की सजा
डॉ. चन्दर सोनाने
पिछले कुछ दिनों से देश और प्रदेश के अन्य जिलों से नकली दूध, मावा, पनीर और घी बनाने वालों की रोजाना खबर आ रही है। रासयनिक और सिन्थेटिक पदार्थां से नकली दूध और मावा तथा अन्य खाद्य सामग्री बनाने वाले व्यक्तियों द्वारा लोगों के स्वास्थ्य के साथ खुला खिलवाड़ किया जा रहा है। वे इन नकली पदार्थां के माध्यम से आम लोगां को धीमा जहर दे रहे हैं। किसी व्यक्ति द्वारा किसी अन्य की हत्या करने पर उसे जब मौत की सजा देने का प्रावधान है तो धीमा जहर देकर तिल-तिल कर मौत के मुहाने तक पंहुचाने वाले व्यक्ति को क्यों नहीं मौत की सजा दी जाये? जहरीले पदार्थों से बनाए जा रहे नकली दूध, मावा, पनीर, घी आदि बनाने वालो को अब मौत की सजा का प्रावधान दिया जाना चाहिए।
मध्यप्रदेश के भिन्ड और मुरैना में सिन्थेटिक दूध के कई कारखानों पर पिछले दिनों छापे मारने से कई जगह नकली दूध बनाने की फैक्ट्रियाँ पकड़ी गई। इसके बाद मध्यप्रदेश के अन्य स्थानों से भी नकली दूध, मावा, पनीर, मक्खन, घी आदि की मिलावट की खबर आ रही है। यही नहीं राजस्थान और उत्तरप्रदेश के पड़ोसी प्रान्तों की सीमाओं पर भी रासायनिक और सिन्थेटिक दूध की फैक्ट्रियाँ चलने की खबर आ रही है। यही नहीं फलों तथा सब्जियों को भी चमकदार और आकर्षक बनाने के लिए उन पर भीरंग-रोगन कर दिया जाता है। फलोंऔर सब्जियों में भी तरह-तरह की दवाईयों के इंजेक्शन दिये जाते है, ताकि उनकी पैदावार बढ़े। ये सब धीमा जहर होते हैं। इससे प्रदेश और देश में प्रतिवर्ष लाखों लोग बीमार पड़कर धीरे-धीरे मौत के मुँह में समा जाते हैं। जहरीले पदार्थों से खाद्य सामग्री बनाने वाले लोगों के विरूद्ध सख्त से सख्त कार्रवाई किए जाने की आज बहुत आवश्यकता है।
वर्तमान में केन्द्र और राज्य सरकार के द्वारा नकली दूध, मावा आदि बनाने वाले लोगों को नाममात्र की सजा देने का प्रावधान है। आश्चर्य और दुखद यह है कि यदि किसी मिलावटी व्यापारी का दोष सिद्ध भी हो जाये तो उसे 6 माह से अधिकतम 3 साल की सजा और 1 लाख रूपए तक का जुर्माना होने का प्रावधान है। यह पर्याप्त नहीं है। ऐसे लोगों को तो मौत की सजा दी जानी चाहिए। इसके लिए देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्ध्दन संसद में एक विधेयक पारित करें जिसमें जहरीले पदार्थ बेचने वाले लोगों को कड़ी से कड़ी और अधिकतम मौत की सजा का प्रावधान दिया जाना चाहिए। केन्द्र सरकार यदि इस दिशा में पहल करेगी तो निश्चित रूपसे संसद में पक्ष-प्रतिपक्ष सभी इस विधेयक का समर्थन ही करेंगे।
मध्यप्रदेश में खाद्य और औषधि प्रशासन विभाग को नकली और मिलावटी चीजों के निरीक्षण तथा उस पर नियंत्रण की जिम्मेदारी है। किन्तु यह विभाग सामान्यतः सोया रहता हैै। शिकायत आने पर कभी कभार वह नींद से जागता है और जांच कर सेम्पल लेने की औपचारिकता कर अन्य कार्रवाई करना भूल जाता है। इस संबंध में दो उदाहरण देना पर्याप्त होंगे। मध्यप्रदेश के इंदौर शहर की आबादी 24 लाख है। यहाँ 15 माह में केवल 214 सेम्पल ही विभाग ने लिए। इनमें से केवल 15 व्यापारियों पर ही 3 लाख 90 हजार का अर्थदंड लगाया गया। किसी को भी सजा नहीं दी गई। दूसरा उदाहरण यह हैकि विभाग द्वारा पिछले 5 सालों में मात्र 50 मिलावट के केस जिला कोर्ट में ले जाया गया। इनमें से किसी को भी सजा नहीं हुई। केवल 20 केस में ही अर्थदंड लगाया गया। दोषी व्यक्ति अर्थदंड देकर फिर से लाखों रूपये कमाने के चक्कर में लग जाता है। इस कारण प्रभावी नियंत्रण नहीं हो पाता है। वर्षां से यही सबकुछ चल रहा है।
हम सब बचपन से यह देखते और सुनते आ रहे हैं कि दूध बेचने वाला दूध में पानी मिलाता है। किन्तु यह सब बातें अब पुरानी हो गई। कम लागत में लाखों कमाने के चक्कर में अब दूध में मिलावट नहीं की जाती बल्कि रासयनिक और सिन्थेटिक पदार्थों से नकली दूध बनाने की फैक्ट्रियाँ लगभग हर शहर में लग गई है। मजेदार बात यह भी है कि यदि संबंधित विभाग का कर्मचारी या अधिकारी सिन्थेटिक दूध या मिलावटी दूध, मावा,घी आदि पकड़ता है तो उसका नमूना लेकर जिलों में जांच की कोई सुविधा ही नहीं है। विभाग के अधिकारी इन नमूनों को भोपाल स्थित प्रयोगशाला में भेजते है। प्रदेश की इस एकमात्र प्रयोगशाला में दूध में केमिकल,एन्टी बायोटिक और सिन्थेटिक मिलावट की जांच की कोई व्यवस्था ही नहीं है। ईदगाह हिल्स स्थित इस स्टेट फूड लेबोरेटरी में सभी मिलावटों की जांच के साधनही उपलब्ध नहीं होने से वहाँ पर सेम्पल की अधूरी जाँच कर रिपोर्ट भेज दी जाती है। प्रदेशभर में इस एकमात्र प्रयोगशाला में नमूनों के ढेर लग जाते हैं। और कई दिन और महिनों के बाद जाँच की रिपोर्ट भेजी जाती है। तब तक मामला ठंडा हो जाता है।
प्रदेश में भिन्ड मुरैनामें नकली दूध बनाने की फैक्ट्रियाँ पाई जाने पर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री कमलनाथ और स्वास्थ्य मंत्रीश्री तुलसीराम सिलावट ने प्रदेश में सभी जगहों पर नकली और मिलावटी दूध, मावा, पनीर, घी, मक्खन आदि बेचने वाले व्यक्तियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के निर्देश दिए है। यही नहीं ऐसे व्यक्तियों के खिलाफ रासुका लगाने के भी निर्देश दिये गये हैं। इसके बाद प्रदेश के लगभग हर जिले से नकली और मिलावटी दूध, मावा, पनीर, घीआदि बनाने की फैक्ट्रियाँ पकड़ी जा रही है। राज्य सरकार का यह प्रयास सराहनीय है। किन्तु इन नमूनों की जाँच अकेले भेपाल में कैसे संभव है? इसके लिए राज्य सरकार को चाहिए किवह मध्यप्रदेश के प्रत्येक जिला मुख्यालय पर आधुनिक संसाधनों से युक्त प्रयोगशला नियुक्त करें । इन प्रयोगशालाआें में जांच करने वाले पर्याप्त विशेषज्ञों की भी तैनाती करें, जो नमूना प्राप्त होते ही उसी दिन जांच की रिपोर्ट दे दें, ताकि नमूनों में फेर बदल होने की संभावना भी समाप्त हो सके। सरकार अब चेत गई है तो उसे पूरी तरह से सजग और सक्रिय रहकर कार्य करना चाहिए। यही नहीं मिलावटियों के विरूद्ध सख्त से सख्त कार्रवाई करने के प्रावधान भी किये जाने चाहिए, ताकि जहर बेच रहे इन देशद्रोहियों के विरूद्ध प्रभावी नियंत्रण हो सके।
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