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बच्चों को उनका बचपन लौटाने की गुहार


संदीप कुलश्रेष्ठ
                  यूं तो लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में जो कुछ होता है, वह अधिकतर उल्लेखनीय नहीं होकर अशोभनीय ही अधिक होता है। किन्तु कभी-कभी लोकसभा और विधानसभाओं में ऐसा भी होजाता है,जो न केवल उल्लेखनीय होता है, बल्कि सराहनीय भी होताहै । हालही में मध्यप्रदेश के विधानसभा में एक अशासकीय संकल्प सदन में सर्वानुमति से पारित हुआ। प्रदेश के जबलपुर जिले के बरगी से कांग्रेस के एक विधायक श्री संजय यादव ने अपना अशासकीय संकल्प प्रस्तुत करते हुए सदन का ध्यान बच्चों की एक बुनियादी समस्या की ओर आकर्षित किया। उन्होंने अपने अशासकीय संकल्प के माध्यम से बच्चों को उनका बचपन लौटाने का आग्रह किया है। 
विधानसभा में प्रस्तुत हुआ अशासकीय संकल्प-
                 मध्यप्रदेश विधानसभा में प्रस्तुत इस अशासकीय संकल्प में प्रदेश के स्कूलों में दशहरा, दीपावली, होली आदि जैसे त्यौहारां पर पूर्व में दी जाने वाली छिट्टयों का उल्लेख करते हुए कालान्तर में इन छुट्टियों में निरन्तर कमी कर देने पर चिंता जताइ गई। यही नहीं उक्त त्यौहारों में अब कम से कम हो गई छिट्टयों को पूर्व की तरह बढ़ाने की आवश्यकता भी बताई गई।इस अशासकीय संकल्प में यह भी मांग की गई थी कि छुट्टियों के तुरन्त बाद स्कूलों में तुरन्त कोई परीक्षा भी नहीं ली जाए। इस अशासकीय संकल्प का पक्ष-प्रतिपक्ष सबने समर्थन करते हुए सर्वानुमति से पारित भी कर दिया। यह एक सराहनीय प्रयास कहा जा सकता है। 
गर्मियों में होती थी दो माह की छुट्टियाँ-
                करीब एक दशक पूर्व तक प्रदेश में शासकीय और अशासकीय स्कूलों में बच्चों को भरपूर छुट्टियाँ मिलती थी। दशहरे और दीवाली की जहाँ 21 दिन की छुट्टियाँ मिलतीथी, वहीं दिसम्बर के अंतिम सप्ताह में भी क्रिसमस की एक सप्ताह की छुट्टी का आनन्द बच्चें लेते थे। गर्मियों के दिनों में मई-जून की दो माह की छुट्टियों का तो बच्चों में अलग ही आनन्द होता था। इन दो माह की छुट्टियों में बच्चें अपने मामा- मामी, नाना-नानी, दादा-दादी के यहाँ जाकर पढ़ाई और परीक्षा की चिंता भूलकर बचपन का भरपूर आनन्द लेते थे। इन छुट्टियों में बच्चे अपने निकट के और दूर के परिचितों के बच्चों से भी मिलकर बचपन का खुलकर आनन्द लेते थे। यहीं नहीं होली और रंगपंचमी के आनन्द की तो बात ही कुछ ओर है। बच्चे खुलकर अपने संगी साथियों के साथ होली का आनन्द लेने के लिए स्वतंत्र थे। इन सब छुट्टियों के आनन्द से बच्चे अब दूर हो गए है। उनसे उनका बचपन छीन लिया गया है। इससे वे आत्म केन्द्रीत हो गए है। अब उनकी मासूमियत खत्म हो गई है। 
हर स्कूल में हो खेलकूद का पीरियड-
                पहले हर स्कूल में स्कूल की छुट्टी होने से पूर्व खेल का पीरियड होता था। इस पीरियड में स्थानीय लोकप्रिय खेल खो-खो ,कबड्डी ,दौड़, लम्बी कूद, ऊँची कूद, चम्मच रेस, चेयर रेस, लंगड़ी दौड़, बोरा दौड़, पी टी आदि विभिन्न खेल होते थे, जिसमें बच्चे उमंग और उत्साह से भाग लेते थे और इससे वे स्वस्थ भी रहते थे। इससे बच्चों में प्रेम, सद्भाव और भाईचारें की भावना भी प्रबल होती थी। इन खेलों से बच्चों में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की भावना जाग्रत होती है। 
राज्य सरकार बच्चों को फिर से दे छुट्टियाँ-
                विधानसभा में पारित यह अशासकीय संकल्प विधानसभा में ही दफन होकर न रह जाए, इसके लिए राज्य सरकार को चाहिए कि वह इस अशासकीय संकल्प में पारित सभी बिन्दूओं पर न केवल गौर करें , बल्कि इसके क्रियान्वयन के लिए भी स्कूल शिक्षा विभाग आदेश जारी करें। यह आदेश शासकीय स्कूलों के साथ ही अशासकीय स्कूलों पर भी बंधनकारी हो, ताकि फिर से बच्चों को गर्मियों की छुट्टी मिल सके और वे होली, दीपावली ,दशहरे , क्रिसमस आदि त्यौहारों का आनन्द अपने परिवारों के साथ ले सके। और फिर से वे अपना बचपन जी सके। 
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