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मुजफ्फरपुर में 135 बच्चों की मौत, देश में हर रोज 3500 बच्चों की मुत्यु


संदीप कुलश्रेष्ठ
               बिहार के मुजफ्फरपुर में एक्यूट एंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) के कारण अभी तक 135 से ज्यादा बच्चों की मौत ने देश को झकझोड़ दिया है। इतनी बड़ी संख्या में बच्चों की मौत ने देश की स्वास्थ्य व्यवस्था पर प्रश्न चिह्न खड़ा कर दिया है। बच्चों की असामयिक मौत के मामले में हमारे देश की स्थिति बहुत खराब रही है । दुनिया में मरने वाला हर छठा बच्चा भारत का है। हमारे देश में हर रोज 3500 बच्चों की असामयिक मौत हो जाती है। यह आंकड़ा विश्व में सबसे ज्यादा है। 
यूनिसेफ की चौंकाने वाली रिपोर्ट -
             भारत में बच्चों की मौत के मामले में यूनिसेफ की रिपोर्ट चौंकाने वाली है। रिपोर्ट के अनुसार देश में 2017 में 14 वर्ष की उम्र तक के 12 लाख 63 हजार बच्चों की अलग-अलग कारणों से मौत हो गई है। अर्थात् दुनिया में मरने वाले कुल बच्चों का यह 18.37 प्रतिशत है। इन बच्चों की मौत का सबसे बड़ा कारण डायरिया और निमोनिया है। बिहार के मुजफ्फरपुर में बच्चों की मौत के संबंध में हाल ही में चर्चा में आई बीमारी एईएस पिछले 40 सालों में 25 हजार से ज्यादा बच्चों की जान ले चुकी है। देश में एईएस का पहला मामला 1956 में मद्रास प्रेसीडेन्सी में सामने आया था। सन् 1978 में यह बीमारी यूपी में फैली। वहाँ 2005 में इसी बीमारी से 1300 बच्चों की जान चली गई थी। 
स्वास्थ्य के लिए जीडीपी का केवल 1.5 प्रतिशत -
              हमारे देश में कभी भी स्वास्थ्य को प्राथमिकता की दृष्टि से नहीं लिया गया है। वर्तमान हालात में देश के कुल बजट का करीब 1.2 प्रतिशत से 1.3 ही स्वास्थ्य को मिलता है। जीडीपी में पिछले 10 सालों से स्वास्थ्य के लिए करीब 1.5 प्रतिशत की ही हिस्सेदारी बनी हुई है। सन 2014-15 में तो यह हिस्सेदारी एक प्रतिशत से भी कम 0.98 प्रतिशत थी। वर्ष 2017-18 के लिए भी स्वास्थ्य के लिए बजट में जीडीपी का केवल 1.28 प्रतिशत ही रहा। 
केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री श्री हर्षवर्धन ने इसे बढ़ाकर 2.5 प्रतिशत करने की बात कही है। उनका यह आश्वासन वैसा ही है, जैसा कि उन्होंने सन् 2014 में बिहार में इसी एईएस बीमारी से 379 बच्चों की मौत हो जाने पर बच्चों के लिए 100 बेड वाला अस्पताल बनाने की घोषणा की थी। यह अस्पताल अभी तक शुरू ही नहीं हुआ है। दूसरे देशों से यदि तुलना करें तो अमेरिका स्वास्थ्य सेवाओ पर जीडीपी 18 प्रतिशत और ब्रिटेन 10 प्रतिशत खर्च करता है। भारत की स्थिति अत्यन्त ही सोचनीय है ।
भारत हर मामले में आगे-
                    दुनिया में बच्चों की मृत्यु की संख्या और भारत में बच्चों की मृत्यु की संख्या की तुलना करें तो भारत हर मामले में आगे दिखाई दे रहा है। दुनिया में वर्ष 2017 में 5 वर्ष से कम आयु के 58.46 लाख बच्चों की मृत्यु हुई थी। भारत में इसी अवधि में 10.92 लाख बच्चों की असामयिक मौत हो गई । इसी प्रकार 5 वर्ष से 14 वर्ष की आयु वाले 10.29 लाख बच्चों की मौत हुई थी। वहीं भारत में 1.70 लाख बच्चों की मौत हुई। यहीं नहीं इसी अवधि में दुनियाभर में 43.35 लाख नवजात बच्चों की मृत्यु हुई, वहीं हमारे देश में 8.75 लाख नवजात बच्चों की मौत हुई । अर्थात् दुनिया में हुई नवजात बच्चों की मृत्यु में करीब 20 प्रतिशत बच्चे भारत के थे। यह अत्यन्त दुःखद स्थिति है। 
जीडीपी में स्वास्थ्य के लिए दोगुनी राशि देना जरूरी-
                     दुनिया में भारत की इस दयनीय स्थिति को बदलने के लिए और नवजात बच्चों तथा 14 वर्ष से छोटी आयु के बच्चों की असामयिक मौत पर नियंत्रण पाने के लिए जरूरी है कि हमारे देश भारत में जीडीपी का करीब 3 प्रतिशत राशि का प्रावधान स्वास्थ्य के लिए किया जाए। इससे पूरे देश में विशेषकर ग्रामीण अंचलों में तथा पिछड़े इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ किया जा सकेगा। इससे देश के प्रत्येक प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर पर्याप्त चिकित्सकों के साथ ही चिकित्सा की समस्त सुविधाओं की उपलब्धता सुनिश्चित हो सकेगी। इसी से हम हमारे देश में बच्चों को असामयिक मौत के मुँह में जाने से बचा सकेंगे। 
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