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आखिर दलितों के प्रति दबंगों की कब बदलेगी मानसिकता ?


डॉ. चन्दर सोनाने
                         देश को आजाद हुए 72 वर्ष हो गए हैं,किन्तु अभी भी दलितों के प्रति दबंगों की मानसिकता में विशेष बदलाव नहीं आया है। विशेषकर गाँवों में हालात बहुत गंभीर है। आईये, देखते हैं पिछले एक महिने में तीन प्रमुख उदाहरणां से गाँवों में दलितों के प्रति दबंगों की मानसिकता कैसी है ?
                         मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले की पिपलिया मंडी के पास के ग्राम रसुड़िया राठोर में मेघवाल समाज के शादी समारोह में लड़कियांं द्वारा राजपूतानी पोशाख पहनने के कारण गाँव के ही राजपूत समाज के लोगों ने खून की होली खेली। उन्होंने शादी में शामिल दलित लोगों के साथ ओर जिन लड़कियों ने राजपूतानी पोशाख पहनी थी, उनके साथ लट्ठ से मारपीट की और बुजुर्गों सहित महिलाओं को गंभीर रूप से     घायल कर दिया। हुआ यह था कि रसुड़िया राठोर में पिछले दिनों दशरथ मेघवाल की बेटी की षादी थी। शाम को बारात आई। बिंदौली के दौरान दलित समाज की लड़कियों ने राजपूतानी ड्रेस पहन ली । रात को जब शादी समारोह में शामिल होकर लदुसा निवासी नाथूलाल, देवीलाल, बद्रीलाल आदि लौट रहे थे तो गाँव के ही दबंगों टिकमसिंह, अंतरसिंह और अन्य ने शादी में लड़कियां के राजपूतानी ड्रेस पहनने पर नाराजी जताते हुए उन पर लाठियों के साथ हमला कर दिया। यही नहीं, जिन लड़कियां ने राजपूतानी पोशाख पहनी थी, उनके साथ भी मारपीट कर उन्हें गंभीर रूप से घायल कर दिया।
                           दूसरा प्रकरण सामने आया है, उज्जैन जिले के नागदा के पास ग्राम रोहलकला में हनुमान मंदिर के सामने से एक दलित की बारात निकलने पर आक्रोशित दबंगों ने बारात पर पथराव कर दिया। उस गाँव की कुल आबादी 1042 है। इसमें 700 स्वर्ण और 342 दलित समाज की जनसंख्या है। पथराव में एक युवक को गंभीर चोट आई है। इस गाँव के राकेश पिता मदनलाल परमार के नागदा स्थित युवराज धर्मशाला में बरथून ग्राम निवासी वधु से शादी होनी थी। शाम को दलित समाज के राम मंदिर में दर्शन कर प्रोसेशन निकालकर परिजन राकेश की बारात को नागदा की ओर लेकर आ रहे थे। रास्ते में ही हनुमान मंदिर आता है। गाँव से बाहर जाने का यही एकमात्र रास्ता है। प्रोसेशन के मंदिर के समीप पहुँचते ही 4 दबंग युवकां शंकरलाल, विक्रम , चंदरसिंह और कमल ने मंदिर के सामने से निकलने की बात को लेकर बारात पर पत्थर फेंकना शुरू कर दिया। पथराव में अनेक लोग घायल हुए, जिसमें दुनालजा निवासी दीपक को सिर में गंभीर चोट आई। क्षेत्र में यह पहली घटना नहीं है। जब बारात में दलित समाज के साथ मारपीट या घोड़ी से उतारा न गया हो। इसके पहले भी गाँव रतन्याखेड़ी में ऐसे ही दो मामले हो चुके हैं, जिसमें मंदिर के सामने से बारात को गुजरने नहीं दिया गया और कुछ समय पहले ही चन्द्रवंशी समाज की बारात में भी ऐसी ही विवाद की स्थिति बनी थी। उल्लेखनीय है कि नागदा के ही निवासी केन्द्रीय मंत्री श्री थावरचंद गेहलोत हैं, जो स्वयं दलित समाज के है। इसके बावजूद उनकी ओर से कोई बयान सामने नहीं आया और न ही वे पीड़ित लोगां से मिलने पंहुचे । 
                            ऐसा ही एक और तीसरा उदाहरण है। मध्यप्रदेश के ही शाजापुर जिले के कालापीपल विधानसभा के ग्राम अरनियाकलां में हनुमान मंदिर परिसर में हुए भंडारे के दौरान जातिगत आधार पर सार्वजनिक रूप से दलितों के साथ छुआछूत का मामला सामने आया है। यहाँ दबंगों ने भंडारे के दौरान महाप्रसादी लेने में ही खुलकर जातिगत भेदभाव दिखाया। यहाँ ऊँची ओर निचली जातियों के आयोजकों ने अलग-अलग 100 मीटर दूर टेंट लगाये। बाकायदा जातियां का नाम ले-लेकर अलग-अलग बैठाने संबंधी लगातार अनाउंसमेंट भी होता रहा। जब कुछ दलितों के युवाओं ने इसका विरोध किया तो कुछ ऊँची जाति के लोगों ने गाली गलोच और मारपीट की धौंस देकर उन्हें वहाँ से भगा दिया। 
ये तीन-चार उदाहरण यह बताने के लिए पर्याप्त है कि अभी भी विशेषकर गाँवों में दलितों के प्रति दबंगों की मानसिकता में विशेष बदलाव नहीं आया है। इस स्थिति में बदलाव के लिए आवश्यक है कि जहाँ ऐसी घटनाएँ घटित होती है, वहाँ क्षेत्र के प्रभावशाली लोगों को बिना राजनैतिक भेदभाव के लोगों में समरसता पैदा करने के लिए प्रभावी पहल करना चाहिए। और ऐसे घटना वाले क्षेत्रों में प्रभावशाली लोगों को आगे आकर गाँवो में स्वयं उपस्थित रहकर समरसता के आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए, तभी दबंगों की मानसिकता में परिवर्तन आएगा और दलित भी आत्मसम्मान पूर्वक जीवन जी सकेगा। 
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