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दिव्यांगों के लिए आवश्यक उपकरणों से खत्म हो जीएसटी


संदीप कुलश्रेष्ठ
                 दिव्यांगों के लिए सबके मन में सहानुभूति होती है। केन्द्र सरकार और राज्य सरकार दोनों दिव्यागों के लिए विभिन्न योजनाएँ संचालित करते हैं। किन्तु जाने अनजाने ऐसा हो जाता है कि जिससे दिव्यांगों की समस्या कम होने की बजाय बढ़ जाती है। ऐसा ही एक प्रकरण सामने आया है। दिव्यांगों के लिए जरूरी उपकरण जैसे व्हील चेयर, बैसाखी, कान की मशीन आदि पर केन्द्र सरकार ने 5 प्रतिशत जीएसटी लगा दिया है। जबकि दिव्यांगों के किसी भी उपकरण पर जीएसटी लगना ही नहीं चाहिए। 
पाँचवी क्लास में पढ़ रहे छात्र ने लगाई याचिका -
                मुम्बई के हिल स्प्रिंग इंटरनेशनल स्कूल में कक्षा पाँचवीं में पढ़ रहे 11 साल के छात्र मेहान दोशी ने इस संबंध में एक याचिका लगाई है। उसने अपनी याचिका में गुहार लगाई है कि दिव्यांगों के लिए आवश्यक सभी उपकरण उनके लिए बहुत जरूरी होते है। इसलिए उनपर जीएसटी लगना ही नहीं चाहिए। दिव्यांगों के लिए जरूरी उपकरण उनकी रोजमर्रा की जिन्दगी के लिए बहुत आवश्यक होते हैं। उनकी जिन्दगी इन उपकरणों पर ही निर्भर करती है। दुर्भाग्य से आज भी इन उपकरणों पर टैक्स लगता है। इस कारण दिव्यांगों को अपने रोजमर्रा के जीवन को जीने के लिए भी अपनी जेब से और ज्यादा पैसे देने पड़ते हैं। 
दिव्यांगों के उपकरण पर लगता है पाँच प्रतिशत जीएसटी -
                  वर्तमान में केन्द्र सरकार द्वारा दिव्यांगों के सभी जरूरी उपकरणों पर पाँच प्रतिशत की दर से जीएसटी लगाया गया है। छात्र मेहान ने याचिका में भारत सरकार से अनुरोध किया है कि दिव्यांगों के लिए इस जीएसटी को पाँच प्रतिशत से जीरो प्रतिशत किया जाये। उनके रोजमर्रा के जीवन को आसान बनाने के लिए सरकार इतना तो कर ही सकती है। छात्र मेहान ने अपने स्कूल की प्रदर्शनी के लिए अपना एक प्रोजेक्ट भी तैयार किया है। इसमें उसने दिव्यांगां के साथ होने वाले भेदभाव को विषय के रूप में चुना है। वह इस विषय को लेकर कुछ स्कूलों मे भी गया है। और उसने छात्रां, शिक्षकों और समाजसेवियां से चर्चा भी कि जिन्होंने उसकी याचिका का समर्थन किया है। 
केन्द्र सरकार खत्म करे जीएसटी -
केन्द्र सरकार को चाहिए कि वह दिव्यांगों के लिए आवश्यक सभी उपकरणों पर लगाए गए जीएसटी को तुरन्त खत्म करें। इससे दिव्यांगों को बहुत मदद मिल सकेगी। केन्द्र सरकार और राज्य सरकार का यह सामाजिक दायित्व भी बनता है कि वह दिव्यांगों की हर संभव मदद करें। 

 

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