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बच्चों के कंधो से किताबों का बोझ कम करने का सराहनीय प्रयास


                संदीप कुलश्रेष्ठ
                      उज्जैन जिले के पूर्व प्राथमिक ,प्राथमिक, और माध्यमिक विद्यालयों में पढ़ने वाले छोटे बच्चों के कंधोंसे किताबों का बोझ कम करने के लिए उज्जैन जिला प्रशासन द्वारा हाल ही में इसी शिक्षा सत्र से सराहनीय प्रयास आरंभ किये गये हैं। जिले के सरकारी स्कूलों में तो नियमानुसार आवश्यक किताबों से ही बच्चों की पढ़ाई होती है किन्तु निजी स्कूलों के प्रबंधकों द्वारा निजी लाभ के लिए कमीशन का खेल खेलकर बच्चों के कंधों पर किताबों का बोझ बढ़ा दिया जाता है। शिक्षाविद्ों द्वारा हमेशा से इस प्रवृत्ति की निंदा करते हुए इस पर कठोरता से नियंत्रण रखने के सुझाव काफी समय से दिये जा रहे हैं। 
सबसे पहले नौ स्कूलों ने की पहल -
                          हांलाकि इस संबंध में राज्य शासन स्तर से कार्रवाई की जानी चाहिए, जो सामान्यतः नहीं की जाती है। इस संबंध में उज्जैन जिला प्रशासन द्वारा निजी स्कूलों को कक्षा पहली से आठवीं तक की कक्षाओं में अनावश्यक पुस्तकों का बोझ कम करने के निर्देश दिये गए। इसके अच्छ ेपरिणाम भी आने शुरू हो गये हैं। उज्जैन जिले के 9 स्कूलों में पढ़ने वाले चार हजार से  अधिक विद्यार्थियों को बस्तों के बोझ से राहत मिली है। इन स्कूलों में अलग - अलग कक्षाओं में 3 से 6 किताबें कोर्स से कम कर दी गई है। इससे छोटे बच्चों के कंधां से किताबों का बोझ कम होगा और उन्हें कक्षा के आधार पर जरूरी विषय ही पढ़ने होंगे। सबसे पहले 9 स्कूलों ने इस दिशा में सार्थक पहल की है। उज्जैन के जिन स्कूलों ने यह सराहनीय कार्य किया है उनके नाम हैं- जॉली मेमोरियल, लोकमान्य तिलक, पोद्धार इंटरनेशनल, विद्या भवन, वर्जिन मैरी, ज्ञानसागर गर्ल्स अकादमी और अक्षत इंटरनेशनल। महिदपुर के सेंट जोसफ और खाचरोद के इंपीरियल स्कूल ने भी इस दिशा में अच्छा कार्य किया। इन सभी 9 स्कूलों ने नर्सरी से कक्षा आठवीं तक की कक्षाओं से अनावश्यक किताबें कम कर दी है। इससे एक बड़ा लाभ यह भी होगा कि छोटे बच्चों पर पढ़ाई का अनावश्यक दबाव भी कम होगा। 
जिले के 53 स्कूलों मे से 17 स्कूलों ने नहीं दी जानकारी -
                            जिला प्रशासन के मुखिया कलेक्टर श्री शशांक मिश्रा द्वारा हाल ही में जिले के निजी स्कूलों के प्रबंधकों की बैठक लेकर उनसे नर्सरी से कक्षा आठवीं तक के बच्चों की किताबों का बोझ कम करने के लिए आव्ह्ान किया गया था। जिले के 53 निजी स्कूलों मे से 36 स्कूलों ने जानकारी शिक्षा विभाग को भेज दी है। इनमे से 9 स्कूलों ने किताबों की संख्या कम करने की जानकारी दी। किन्तु अभी भी 17 स्कूलों ने जानकारी नहीं भेजी है। उनको अंतिम मौका दिया जा रहा है। अभी जिन स्कूलों ने जानकारी भेजी है,उनमें से 27 स्कूलों ने अपने यहाँ किताबों की संख्या कम नहीं की है। जिन स्कूलों ने अपने यहाँ किताबों की संख्या कम नहीं की है, उन पर जिला प्रशासन द्वारा सख्त कार्रवाई करने की तैयारी की जा रही है। 
स्कूलों को आना चाहिए आगे -
                          छोटे बच्चों के बस्तों का बोझ कम होने से केवल उनके कंधों का बोझ ही कम नहीं होता है, बल्कि उन पर पढ़ाई का अनावश्यक दबाव भी कम होता है। अभी कुछ स्कूलों ने तो नर्सरी, केजी 1 और केजी 2 तक में किताबों का अनावश्यक बोझ छोटे बच्चां पर डाल दिया था, जो कदापि उचित नहीं कहा जा सकता। बच्चां के सर्वांगीण विकास में किताबों का बोझ बाधक है । इस संबंध में शिक्षाविद् अनेक वर्षों से अपनी बात कह रहे हैं। किन्तु उन पर निजी स्कूल ध्यान ही नहीं दे रहे हैं। छोटे बच्चां के हित में निजी स्कूलों के प्रबंधकों को आगे आना होगा, तभी बच्चों के कंधों से किताबों का बोझ भी कम होगा और उन पर पढ़ाई का अनावश्यक दबाव भी नहीं होगा। 
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