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पुलवामा हमले में आतंकी कर रहे थे वर्चुअल सिम का इस्तेमाल


जम्मू। पुलवामा हमले में शामिल जैश-ए-मोहम्मद का आत्मघाती हमालवर और पाकिस्तान और कश्मीर में उसके अन्य आतंकी वर्चुअल सिम का इस्तेमाल कर रहे थे। ऐसे में अमेरिका से वर्चुअल सिम की सेवाएं लेने वालों के बारे में जानकारी मांगी गई है। इस हमले में सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हुए थे।

हमले की जांच करने के लिए जम्मू कश्मीर पुलिस और अन्य केंद्रीय एजेंसियों ने आतंकी हमले के स्थान और अन्य जगहों पर तलाश्ाी अभियान चलाया।

इसमें पाया गया कि हमला करने वाला आतंकी आदिल डार अपने पाकिस्तान स्थित जैश के आकाओं के साथ लगातार संपर्क में था। इस हमले का मुख्य मास्टर माइंड मुदस्सिर खान त्राल में हुई मुठभेड़ में मारा गया था।
अधिकारियों के अनुसार सीमा पर बैठे आतंकवादी अब हमलों के दौरान वर्चुअल सिम का इस्तेमाल कर रहे हैं। इसे अमेरिका की एक कंपनी बनाती है। इस तकनीक से कंप्यूटर के जरिए एक नंबर जनरेट किया जाता है। इसे इस्तेमाल करने वाला अपने स्मार्टफोन में कंपनी की एप डाउनलोड करता है।

इसके बाद नंबर को फेसबुक, वाट्सएप, टेलीग्राम और टि्वटर के साथ लिंक कर दिया जाता है। यह साइट वेरीफिकेशन कोड भेजती है और इसके बाद सिम काम करना शुरू कर देती है। अधिकारियों के अनुसार पुलवामा हमले में आत्मघाती आतंकी डार इसी तकनीक का इस्तेमाल करते हुए पाकिस्तान में बैठे जैश के आतंकियों और हमले के मास्टर माइंड मुदस्सिर के साथ संपर्क में था।
आतंकवादी जो नंबर इस्तेमाल कर रहे थे, उनका नंबर पहले अमेरिका के लिए इस्तेमाल होने वाला प्लस-1 मोबाइल स्‍टेशन इंटरनेशनल सब्सक्राइबर डायरेक्टरी नंबर था। अब अमेरिका से अनुरोध किया गया है कि वह इस सिम के साथ उस समय संपर्क में रहने वाले सभी नंबरों और उसे एक्टीवेट करने वालों की पहचान बताए। यही नहीं इंटरनेट प्रोटोकॉल के पते भी मांगे गए हैं।

मुंबई हमलों में भी किया था इस्तेमाल: मुंबई हमलों में भी ऐसा ही किया गया था। उस वक्त जांच में पाया गया था कि वेस्टर्न यूनियन मनी ट्रांसफर के माध्यम से कालफोनेक्स को वायस ओवर इंटरनेट प्रोटोकॉल एक्टीवेट करने के लिए 229 अमेरिकी डॉलर दिए गए थे। रुपए इटली से मदीना ट्रेडिंग से आए थे।

भेजने वाले की पहचान पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के जावेद इकबाल के रूप में हुई थी। इटली की पुलिस ने 2009 में पाकिस्तान के दो नागरिकों को हिरासत में लिया था। आरोप लगे थे कि कंपनी ने इकबाल के नाम पर 300 के करीब ट्रांसफर किए थे। इसके लिए उन पतों का इस्तेमाल किया जाता था, जिनके पहचान पत्र और पासपोर्ट चोरी हो जाते थे।

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