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पेंशनरों को मंहगाई भत्ता : सरकार तो आईएएस ही चलाते हैं


         डॉ. चन्दर सोनाने

                                प्रदेश में भाजपा की सरकार चली गई और कांग्रेस की सरकार आ गई। मुख्यमंत्री भी श्री शिवराज सिंह चौहान की जगह श्री कमलनाथ बन गए। किन्तु पेंशनरों के साथ जो रवैया भाजपा के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने अपनाया, वही रवैया कांग्रेस के मुख्यमंत्री श्री कमलनाथ भी अपना रहे है। कारण साफ है। सरकार मुख्यमंत्री नहीं चलाता है। वास्तव में सरकार आईएएस ही चलाते हैं। पेंशनरों को मंहगाई भत्ता देने के मामले में एक बार फिर यह सिद्ध हो गया है। 
                                  उल्लेखनीय है कि हाल ही में राज्य सरकार ने प्रदेश के कर्मचारियों को महंगाई भत्ता 2 प्रतिशत और देने की घोषणा की है। इस प्रकार राज्य के कर्मचारियों को मंहगाई भत्ता कुल 9 प्रतिशत दिया जा रहा है। जबकि पेंशनरों को हाल फिलहाल 5 प्रतिशत ही मंहगाई भत्ता मिल रहा है। 
                                  मध्यप्रदेश के कर्मचारियों को जनवरी 2018 और जुलाई 2018 में दो-दो प्रतिशत मंहगाई भत्ता देने के लिए राज्य सरकार द्वारा आदेश जारी किए गये है। किन्तु अभी तक पेंशनरों को उक्त दोनों महंगाई भत्ते देने के आदेश ही जारी नहीं किये गये हैं। इस प्रकार पेंशनर राज्य कर्मचारियों से 4 प्रतिशत कम मंहगाई भत्ता प्राप्त करने के लिए मजबूर हैं।                      

                             प्रदेश में पेंशनरों के साथ लगातार भेदभाव हो रहा है। राज्य सरकार ने पहले तो प्रदेश के कर्मचारियों को सातवां वेतनमान दे दिया, किन्तु पेंशनरों को सातवां वेतनमान देने के कोई आदेश नहीं दिये। जब विधानसभा चुनाव आ गये तब रूला-रूला कर पेशनरों को सातवां वेतनमान देने की घोषणा की गई। राज्य कर्मचारियों और पेंशनरां को 1 जनवरी 2016 से सातवां वेतनमान दिया गया है। राज्य के राजपत्रित अधिकारियों को सातवां वेतन मान देने के साथ ही उनका एरियर उनके जीपीएफ खातें मे जमा कर दिया जायेगा। और राज्य के तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को एरियर की राशि नकद दी गई। किन्तु राज्य सरकार ने प्रदेश के लगभग साढ़े चार लाख पेंशनरों का 18 माह का एरियर देने के बारे में कोई फैसला नहीं किया है। जरा सोचिये पेंशनर्स यूंही मात्र पेंशन पर अपना जीवन निर्वाह करता है, किन्तु उनका भी 18 माह का एरियर शिवराज सरकार खा गई। कांग्रेस के कमलनाथ सरकार से उम्मीद थी कि वे 18 माह का एरियर पेंशनरों को देगी किन्तु वह भी नहीं हुआ। 
                             मजेदार बात यह है कि इस बारे में कर्मचारियों में खुली चर्चा होती है कि भाजपा के श्री शिवराज सिंह जी चौहान और कांग्रेस के श्री कमलनाथ दोनों की यह दिली इच्छा थी कि पेंशनरों को भी राज्य के कर्मचारियों के समान पेंशनरों को भी महंगाई भत्ता मिले। किन्तु यह नहीं हो सका। इसके कारणां पर जाने की आवश्यकता है। करीब डेढ़ दशक पहले मध्यप्रदेश में एक अनोखा निर्णय राज्य सरकार के आईएएस अधिकारियों ने अपने पक्ष में करा लिया था। पहले यह नियम था कि जब-जब केन्द्र सरकार मंहगाई भत्ता बढ़ाता है तो राज्य सरकार राज्य में पदस्थ सभी आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अधिकारियों के साथ ही राज्य के सभी विभागों के अधिकारियों और कर्मचारियों का भी मंहगाई भत्ता बढ़ाने के लिए आदेश जारी करती थी। किन्तु होता यह था कि केन्द्र सरकार जब महंगाई भत्ता बढ़ाने का निर्णय लेती थी, उसके काफी समय बाद राज्य सरकार मंहगाई भत्ता बढ़ाने को निणर्य लेती थी। इसमें समय लगता था। किन्तु बडी चालाकी और शैतानी से मंत्रालय में पदस्थ आईएएस अधिकारियों ने एक चाल चली और अपने पक्ष में यह आदेश जारी करा लिया कि जब भी केन्द्र सरकार महंगाई भत्ता बढ़ाने का निर्णय लेगी, उसी दिनांक से उक्त तीनों विभागों के अखिल भारतीय अधिकारियां का मंहगाई भत्ता भी स्वतः बढ़ जायेगा। हांलाकि इन तीनों सेवाओं के अधिकारी जब किसी राज्य में पदस्थ होते हैं तो वे उस राज्य के ही अधिकारी माने जाते है। इसीलिए राज्य के लिए राज्य सरकार द्वारा अलग से आदेश जारी किए जाते हैं। यह सही भी था। किन्तु आईएएस अधिकारियों ने अपने लाभ के लिए नियमों में तोड़फोड़ की और अपने पक्ष में निर्णय करा लिया। तब से इन आईएएस अधिकारियों को राज्य सरकार के अधिकारी और कर्मचारियों तथा पेंशनरों से कोई लेना देना नहीं है। उनका मंहगाई भत्ता बढ़े या नहीं बढ़े , उन्हें कोई मतलब नहीं। उन्होंने तो अपना काम स्थायी रूप से करा लिया। 
                            पेंशनरों के महंगाई भत्ते के संदर्भ में यही बात लागू होती है। भाजपा की शिवराज सरकार हो या कांग्रेस की कमलनाथ सरकार। पहले भी और आज भी वहीं हो रही है, जो आईएएस चाहते हैं। पेंशनरों के मंहगाई भत्ते जनवरी 2018 और जुलाई 2018 से लंबित है। क्योंकि वित्त विभाग के आईएएस अधिकारियों ने मुख्यमंत्री को चालाकी से यह आंकडा बताया है कि यदि पेंशनरों को राज्य सरकार के समान मंहगाई भत्ता देंगे तो इतने हजार करोड़ का बोझ सरकार पर आयेगा। और वर्तमान में राज्य सरकार की वित्तीय स्थिति ऐसी नहीं है कि वह यह बोझ सह सके। चूंकि ऐसा आईएएस चाहते थे, इसलिए भाजपा के शिवराज भी कुछ नहीं कर पाये और काग्रेंस के कमलनाथ भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं। यदि इन आईएएस अधिकारियों पर नकेल कसनी है तो प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. श्री प्रकाशचंद्र सेठी और प्रदेश के ही पूर्व मुख्यमंत्री स्व. श्री अर्जुन सिंह की तरह मुख्यमंत्री श्री कमलनाथ को सख्त प्रशासन अपनाना होगा। श्री सेठी की प्रशासनिक क्षमता और दक्षता से पूर्व अधिकारी अच्छी तरह वाकिफ है ही। उस समय आईएएस अधिकारी उनसे घबराते थे। और श्री अर्जुन सिंह ने जब-जब जनहितकारी क्रान्तिकारी निर्णय लेने चाहे, तब तब आईएएस अधिकारियों ने अडं़गे लगाने की कोशिश की, किन्तु अर्जुन सिंह ने उनकी एक न चलने दी और उन्होंने गरीबां के हित में अनेक क्रान्तिकारी योजनाएँ शुरू की। पूर्व अधिकारी और कर्मचारी यह भलीं-भांति जानते और समझते हैं। 
                       उल्लेखनीय है कि हाल ही में कोलकाता उच्च न्यायालय ने बंगाल सरकार द्वारा की गई अपील को खारिज कर दिया, जिसमें सरकार ने मंहगाई भत्ते को सरकारी नौकरीपेशा अधिकारियों का अधिकार घोषित कर दिये जाने के कोर्ट के फैसले पर पुनः विचार करने की मांग की थी। इस फैसले के साथ ही कोलकाता उच्च न्यायालय ने यह साफ कर दिया है कि मंहगाई भत्ता पाना राज्य सरकार के कर्मचारियों का कानूनी अधिकार रहेगा। कोर्टने फैसला किया था कि बंगाल सरकार के कर्मचारियों को केन्द्र सरकार के कर्मचारियों के समान महंगाई भत्ता मिले या अन्य राज्य के कर्मचारियों के साथ, इसका फैसला राज्य प्रशासनिक प्राधिकरण करेगा। प्राधिकरण इस पर फैसला ले चुका है। और कोर्ट ने मंहगाई भत्ते को राज्य सरकार के कर्मचारियों का कानूनी अधिकार घोषित कर दिया है। 
                        तो अब क्या किया जाना चाहिए ? पहले तो समस्त कर्मचारी संगठनों और पेंशनरों के संगठनों को एकजुट होकर आईएएस लॉबी ने अपने पक्ष में जो निर्णय करा लिया है, उसे निरस्त करवायें, ताकि आईएएस अधिकारियों को भी राज्य सरकार के अधिकारियों व कर्मचारियों के समान ही मंहगाई भत्ता मिले। तभी आईएएस अधिकारियों को समझ आयेगी। किन्तु यह सब आसान नहीं है । इसके लिए सभीकर्मचारी और पेंशनरों के संगठनों को एकजुट होकर यह प्रयास करने की आवश्यकता है कि जब जब केन्द्र सरकार मंहगाई भत्ता बढ़ाये, तब तब राज्य सरकार के सभी अधिकारियों और कर्मचारियों तथा पेंषनरों को उसी तारिख से मंहगाई भत्ता मिल सके, तभी कर्मचारियों और पेंशनरों के साथ हो रहे भेदभाव को समाप्त किया जा सकेगा।
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